Flashback: हिम्मत कोठारी-एक अनोखे मंत्री

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30 नवंबर, 2005 को श्री शिवराज सिंह के प्रथम बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने पर श्री हिम्मत कोठारी मंत्रिमंडल में परिवहन एवं वन मंत्री बनें। वे मंत्रीमंडल में वरिष्ठतम मंत्रियों में से थे। मैं उस समय नौ माह से परिवहन आयुक्त था और श्री उमाशंकर गुप्ता के पश्चात वे मेरे दूसरे परिवहन मंत्री थे। वे रतलाम शहर से छठवीं बार विधायक चुनकर आए थे।पटवा सरकार में वे 1990 से 1992 तक पीडब्लूडी मंत्री रह चुके थे। शिवराज मंत्रिमंडल में मंत्री बनने से पहले वे छह महीने से श्री बाबूलाल ग़ौर मंत्रिमंडल में मंत्री थे।

श्री कोठारी के परिवहन मंत्री बनते ही मैं बहुत बैचेन हो गया था।उनका व्यक्तित्व एवं व्यहवार पटवा सरकार के समय से ही एक अत्यधिक सख़्त मंत्री के रूप में था। वरिष्ठ अधिकारियों पर उनके क्रोध के अनेक क़िस्से लोगों के मुँह से सुनने को मिलते थे। उनके शपथ लेने के अगले दिन मैं ग्वालियर से आकर उनके बंगले पर गया। उनके निज सहायक श्री राजकुमार गहलोत को मैंने अपना परिचय दिया। वे मुझे मंत्री जी के कक्ष में ले गए जो पूरी तरह से लोगों से भरा था।मंत्री जी से उन्होंने मेरा परिचय कराया। मंत्री जी ने मुझे देखकर कहा “अच्छा- अच्छा बैठिये“। मैंने उन्हें विभाग की जानकारी का फ़ोल्डर दिया जो उन्होंने बिना देखे निज सहायक को पकड़ा दिया।

वे फिर लोगों की बात सुनने लगे। किसी प्रकार मुझे सबसे आगे साइड की कुर्सी मिल गई। लगभग दो घंटे तक उनसे मेरी कोई बात नहीं हुई और मंत्री जी वल्लभ भवन जाने के लिए उठे और मेरी तरफ़ देखकर बोले फिर मिलेंगे। श्री राजकुमार ने मुझसे कहा कि आप शाम को आ जाइए। मैं शाम को जब गया तो वहाँ स्थिति सुबह के समान ही थी।मंत्री जी से कोई बात नहीं हुई। श्री राजकुमार ने कहा कि आप मंत्री जी से वल्लभ भवन में न मिले अपितु निवास पर जब भी वे यहाँ रहते हैं तो अवश्य आया करें। मंत्री जी से प्रत्येक व्यक्ति को भीड़ में सबके सामने अपनी बात करनी पड़ती थी। वहाँ किसी गोपनीय बात की गुंजाइश किसी को नहीं थी।अगले दो दिन तक मैं मंत्री जी के पास जाता रहा। तीसरे दिन मंत्रीजी रतलाम चले गए।

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श्री कोठारी सोमवार को रतलाम से ट्रेन से सुबह- सुबह आकर बैरागढ़ स्टेशन पर उतर कर अपने 74 बंगले स्थित निवास पर आते थे। वल्लभ भवन में वह मंत्रिमंडल की बैठक में सम्मिलित होते थे और दो या तीन दिन रुक कर रात्रि को वापस रतलाम चले जाते थे। भोपाल में यदा कदा ही कहीं और जाते थे। निवास पर सुबह और शाम खुले दरबार में बहुत देर तक क्षेत्र की जनता की बातें सुना करते थे। मुझे ऐसा लगा कि मेरा निरंतर बैठना उनको अच्छा लगता था। धीरे-धीरे मैंने उस भीड़ में लोगों की बातों के बीच अपनी प्रशासकीय बात करना प्रारंभ कर दिया। मेरे कहने पर वे शासन से आवश्यक निर्देश जारी करवा देते थे जिससे मैं विभाग का कार्य प्रभावी ढंग से कर पाता था।

उनके रतलाम जाने पर मैं ग्वालियर या अन्यत्र भ्रमण पर निकल जाता था। कुछ दिनों के बाद भीड़ की बजाय रात में वह अपने अंदर के कक्ष में बुला लेते थे।विभाग में स्थानांतरण और बैरियर पर पदस्थापना के बारे में उन्होंने मुझे पूर्ण अधिकार देते हुए कहा आप पूरा प्रस्ताव बनाकर ले आएँ।वे मेरे प्रस्ताव को अपवाद स्वरूप कुछ थोड़े परिवर्तनों के साथ स्वीकृत कर देते थे।वे शासकीय बातों के अतिरिक्त अपनी निजी बातें भी मुझ से करने लगे।बीजेपी के श्रद्धेय रहे कुशाभाऊ ठाकरे उनके एकमात्र आदर्श व्यक्ति थे जिनकी वे चर्चा करते रहे थे। श्री हिम्मत कोठारी एक ईमानदार मंत्री थे।

मेरे बहुत आग्रह करने पर वे विदेश यात्रा पर थाईलैंड, मलेशिया और सिंगापुर की 15 दिवसीय Australian Habitat Studies के सेमिनार के लिए तैयार हो गये। यह उनकी प्रथम विदेश यात्रा थी । मैंने प्रमुख सचिव श्री मलय राय से अनुरोध किया और उन्होंने मध्य प्रदेश व भारत सरकार से स्वीकृति ले ली। 27 मई, 2006 को नई दिल्ली से श्री एवं श्रीमती कोठारी, प्रमुख सचिव श्री मलय और मैं थाईलैंड रवाना हुए। वहाँ ईस्टिंग बैंकॉक होटल में ठहरे। होटल पहुँचते ही आधे घंटे के बाद ही मंत्री जी ने मुझे रोमिंग मोबाइल पर ( इंटर काम पर नहीं) कहा कि उनके कमरे में बाल्टी मग्गा नहीं है, भिजवा दें। मैंने काउंटर पर बात की तो उन्होंने कहा ये हमारे यहाँ उपलब्ध नहीं है।

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उसने सुझाव दिया कि सामने बाज़ार से ले लीजिए। मैं बाल्टी मग्गा ले कर आया और मंत्री जी के कमरे में पहुँचवा दिया। अगले दिन सुबह ब्रेकफास्ट हॉल की महक से ही वे वापस चले गए और पूरा दिन केवल खाकरा खाकर निकाल दिया। रात में उनका आदेश आया कि उनकी वापसी का टिकट करवा दिया जाए। उनका स्वास्थ्य गिर रहा था।अगले दिन श्री मलय ने एक शुद्ध जैन भोजनालय की खोज की और वहाँ पर हम सबने भोजन किया।अगली सुबह वापसी की टिकट का भूलकर में मंत्री जी कुर्ते के स्थान पर लाल टीशर्ट में मुस्कुराते हुए सेमिनार हॉल में प्रविष्ट हुए। बैंकॉक में हमें मेट्रो रेल और स्काई रेल का कंट्रोल रूम देखने का अवसर मिला।

बैंकॉक के फुटपाथ पर मैं श्रीमती कोठारी को ख़रीदारी के लिए ले गया जहाँ उन्होंने सामान्य मध्यम वर्गीय महिला की तरह अपने पूरे विस्तृत परिवार के बच्चों तथा अन्य के लिए साधारण कपड़े ख़रीदे। बैंकाक में नौ दिन के रहने के बाद हम लोग तीन दिन के लिए मलेशिया के क्वालालंपुर पहुँचे। वहाँ पुत्रजया राजधानी क्षेत्र देखा तथा झुग्गियों के स्थान पर बनाए गए घरों का सफल प्रयोग देखा। पिकनिक स्पॉट जेंटिंग में मंत्री जी झूला राइड पर भी बैठे।उनकी चप्पलों के कारण उन्हें कैसीनो में प्रवेश के लिए मुझे विशेष प्रयास करने पड़े। सिंगापुर में अरबन डेवलपमेंट अथॉरिटी जाने का अवसर मिला। वहाँ से लौटते समय मुंबई एयरपोर्ट पर मंत्री जी को कस्टम वालों ने रोक लिया। मेरे हस्तक्षेप से उन्हें आदरपूर्वक जाने दिया गया।

उस वर्ष रतलाम की अभूतपूर्व बाढ़ में अनेक ग़रीबों के घर गिर गये। मंत्री जी ने शपथ ली कि जब तक सबको पक्के घर नहीं दे दूँगा तब तक चप्पल नहीं पहनूंगा। श्रीमती कोठारी ने भी चप्पल पहनना बंद कर दिया।श्री कोठारी ने तीन वर्षों में बसों के परमिट या अन्य कार्यों में राजनैतिक हस्तक्षेप नहीं होने दिया। विभाग की हर समस्या हल करने के लिए वे सदैव तत्पर रहते थे। बहुत जुझारू नेता होते हुए भी उनका स्वाभाव इतना सरल था कि रतलाम से सुबह-सुबह आकर विधानसभा की ब्रीफ़िंग के लिए हमें घर के अंदर बुला लेते और पाजामा बनियान में ब्रश करते हुए जानकारी ले लिया करते थे। विधानसभा में बहुत सशक्त और आत्मविश्वास के साथ विस्तृत उत्तर दिया करते थे।

श्री कोठारी ने मेरे प्रति स्नेह के कारण रतलाम में उनके द्वारा आयोजित टेनिस बॉल क्रिकेट प्रतियोगिता के समापन में मुझे मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया। मैं तब आश्चर्यचकित हो गया जब वे अन्य आयोजकों के साथ मुझे लेने रेलवे स्टेशन पर आए। मुझे वे सर्किट हाउस तक ले गए। कार्यक्रम के लिए पुनः लेने आए और कार्यक्रम में बहुत अधिक सम्मान दिया। फिर उन्होंने मुझे उस बाल चिकित्सालय का अवलोकन कराया जिसे उन्होंने जनता के चंदे से 18 वर्ष पूर्व बनवाकर शासन को सौंप दिया था।मुझे विदा करने भी स्टेशन तक आए। किसी वरिष्ठ मंत्री से किसी अधिकारी को इतना सम्मान मिलना असंभव है।

तीन वर्ष बाद 2008 में वे सर्वश्रेष्ठ मंत्री घोषित किये गये परन्तु उसी वर्ष दिसंबर में विधानसभा का चुनाव हार गए। तीन वर्ष बाद उनके मंत्री पद से हटने का मुझे बहुत आंतरिक क्लेश हुआ। श्री हिम्मत कोठारी मे एक प्रबल चारित्रिक हिम्मत थी जो राजनेताओं में कदाचित् ही मिलती है।