Flashback : अफसर बनने का सुखद पल और वैवाहिक जीवन की पीड़ा!

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Flashback : अफसर बनने का सुखद पल और वैवाहिक जीवन की पीड़ा!

IPS में सेलेक्शन के बाद तरह-तरह की दो वर्ष से अधिक की ट्रेनिंग के बाद ही नियमित पोस्टिंग होने पर प्रशिक्षु ( ट्रेनी) एक अफ़सर बनता है। मसूरी और हैदराबाद अकेडमी की ट्रेनिंग पूरी करने एवं नेफ़ा (अरुणाचल प्रदेश) में हिमालय पर बोमदिला सेक्टर में आर्मी अटैचमेंट करने के बाद, ज़िले की ट्रेनिंग के लिए मैं 19 दिसंबर, 1975 को लखनऊ बाम्बे एक्सप्रेस से रात तीन बजे, मध्य प्रदेश के खंडवा पहुँचा।

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खंडवा में पुलिस लाइन, कोतवाली, SP ऑफ़िस, SDOP ऑफ़िस, न्यायालय आदि में ट्रेनिंग के लिए अटैचमेंट हुआ।इसके अलावा SP खंडवा श्री एस एन तिवारी मुझे टूर अथवा सामाजिक कार्यों में सदैव अपने साथ रखते थे। मान्धाता ओंकारेश्वर में स्वतंत्र थानेदार के रूप में ट्रेनिंग का वर्णन मैं पूर्व में कर चुका हूँ।खंडवा में मेरा वेतन 1016 रु. प्रतिमाह था जिसमें 337 रु. की कटौती के बाद 619 रू. मिलते थे।

26 जनवरी,1976 की परेड को SP खंडवा श्री तिवारी के निर्देश पर मेरे द्वारा कमांड करने पर वे मुझसे बहुत प्रसन्न हुए क्योंकि मेरे पूर्ववर्ती IPS ट्रेनी ने पिछले वर्ष परेड कमांड करने से इनकार कर दिया था।लंच के लिए मैं पैदल स्टेशन स्थित एक कैंटीन में जाता था तथा हमारा डिनर श्री ख़ुशीराम, IAS ट्रेनी के घर बनता था। बीच-बीच में SP साहब के साथ अनेक स्थानों पर तथा ज़िले के विभिन्न अधिकारियों के घर या सर्किट हाउस मे लंच या डिनर का सुअवसर मिलता रहता था।

1 जनवरी, 1977 को मध्य प्रदेश के हमारे बैच की नियमित पोस्टिंग हो जाना चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।अपने विवाह के लिए मैं छुट्टी लेकर अपने घर लखनऊ चला गया तथा 17 जनवरी, 1977 को रीवा में मेरा विवाह लक्ष्मी के साथ हुआ। विवाह उपरांत हम दोनों लखनऊ कुछ दिन रूक कर शिमला चले गए। वहाँ से खंडवा आकर अपने जी टाइप के बहुत छोटे मकान में रहने लगे।

आपातकाल हटने के बाद बैतूल में इंदिरा गाँधी की चुनाव सभा और खंडवा में मतदान तथा मतगणना की ड्यूटी मैंने की।अचानक SP इंदौर, श्री आर एल एस यादव के सुझाव पर DIG इंदौर, श्री एस पी मिश्रा ने मुझे खंडवा से 15 अप्रैल ,1977 को ASP ट्रैफ़िक, इंदौर के पद पर अटैच (पदस्थ नहीं) कर दिया। मैं पुलिस की मीडियम पिकअप गाड़ी में पत्नी सहित अपनी पूरी गृहस्थी लेकर इंदौर के लिए रवाना हुआ। मार्ग में मोरटक्का तिराहे और नर्मदा नदी को आँखों से विदाई देते हुए और बड़वाह में चाय पीते हुए इंदौर पुलिस मेस पहुँचा।

इंदौर पहुँच कर अटैचमेंट का कारण पता चला कि ट्रैफ़िक के मेरे पूर्ववर्ती राजपत्रित अधिकारी DSP श्री हरि विलास योगी को छुट्टी पर भेज दिया गया था। ऐसा उनके विरुद्ध अनेक व्यापारी संगठन और ऑटो टेम्पो संगठनों के विरोध के चलते हुए किया गया था। प्रारम्भ में ही SP इंदौर श्री यादव ने मुझसे कहा कि आप एक IPS अधिकारी है और आप से तत्काल ट्रैफ़िक में सुधार की अपेक्षा की जाती है।

ट्रैफ़िक में मेरे सहयोग हेतु निरीक्षक अमोलक चन्द्र दीक्षित थे जो शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं रह सकते थे। सौभाग्यवश मेरे पास आकर्षक व्यक्तित्व के दो नौजवान और निर्भीक सूबेदार श्री रामसिंह राणावत और श्री अब्दुल मलिक थे। इन दोनों के सहयोग से मैंने इंदौर के ट्रैफ़िक में सख्ती के साथ वन वे और पार्किंग इत्यादि का पालन करवाना शुरू कर दिया।

आरक्षकों का पूरा सहयोग मिला। ट्रैफ़िक सुधार के लिये असाधारण रूप से समर्पित एवं सदैव धोती पहनने वाले स्वयं सेवक श्री जगतनारायण जोशी के साथ मिलकर मैंने इन्दौर के अनेक चौराहों व व्यस्त मार्गों के ट्रैफ़िक का अध्ययन किया और उचित निष्कर्षों का पालन करवाया। श्री जोशी जी से अगले 30 वर्षों तक उज्जैन सिंहस्थ और परिवहन विभाग आदि में भी सक्रिय सहयोग मुझे मिलता रहा।

ट्रैफ़िक की ड्यूटी के साथ सप्ताह में एक रात पूरे इंदौर शहर में रात्रि गश्त की चेकिंग का काम भी मुझे दिया गया था। पूरे शहर में ट्रैफ़िक ड्यूटी और रात्रि गश्त से मुझे इन्दौर के सभी गली कूचों की अच्छी जानकारी हो गई। लेकिन इस व्यस्तता से पुलिस मैस के एक कमरे में रह रही मेरी नव विवाहिता पत्नी को एक दिन मैंने रूआंसी हालत में देखा जब उसने यह पूछा कि यह कैसा जीवन है ?

उस ज़माने में अधिकारियों की पोस्टिंग में राजनीतिक नेताओं का हस्तक्षेप नहीं होता था। तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री वीरेन्द्र कुमार सकलेचा पुलिस मुख्यालय और गृह विभाग के प्रस्ताव को पूर्व परम्परानुसार यथावत स्वीकृत कर लेते थे और मंत्री और विधायकों के हस्तक्षेप का प्रश्न ही नहीं उठता था।

मुझे अनुभव हुआ कि पुलिस अधीक्षक श्री यादव द्वारा मेरे कार्य का बड़ी बारीकी से आंकलन किया जा रहा था। उनकी अनुशंसा पर ही राज्य शासन द्वारा दिनांक 21 सितंबर, 1977 को मुझे इंदौर में CSP के पद पर नियमित रूप से पदस्थ कर दिया गया।इंदौर में पदस्थ होना एक गौरव की बात थी।आख़िरकार मैं अफ़सर बन ही गया।