Flashback : इंदिराजी की वो इंदौर यात्रा और पुलिस की चुनौतियों की अंतहीन परीक्षा!

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पुलिस की ड्यूटी में अनुभवों की अनंत संभावना होती है।प्रत्येक घटना अथवा परिस्थिति जिसमें पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ता है, वह अनूठी होती है और उसका सामना करने का तरीक़ा भी अनूठा होता है।स्वर्गीय इंदिरा गांधी के एक बार इंदौर आगमन के समय जितनी अभूतपूर्व भीड़ इन्दौर की सड़कों पर आ गई थी, वैसी भीड़ मैंने पुनः किसी भी शहर में अपने अगले 32 वर्ष के पुलिस जीवन में कभी नहीं देखी। यद्यपि भीड़ की प्रत्याशा में व्यापक पुलिस प्रबंध किए गए थे परंतु वह दिन पुलिस व्यवस्था की परीक्षा का असाधारण दिन था।

20 दिसंबर, 1978 को भारत की संसद ने विपक्षी नेता इंदिरा गाँधी को, जो एक माह पहले चिकमंगलूर से सांसद बन चुकी थी, जीप ख़रीदी घोटाले एवं अन्य आरोपों में संसद से सीधे जेल भेज दिया। जनता पार्टी की सरकार के गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह के इशारे पर की गई यह कार्रवाई बहुत देर से की गई थी। इमरजेंसी हटने के तत्काल बाद जनता पार्टी सरकार से इमरजेंसी की ज़्यादतियों के लिए इंदिरा गांधी की गिरफ़्तारी की बहुतों को अपेक्षा थी। परंतु इंदिरा गाँधी की दृढ़ता और बेलछी नरसंहार में हाथी पर बैठकर जाने आदि से उनकी छवि निखर चुकी थी। इतनी देर से की गई उनकी गिरफ़्तारी से कांग्रेस में एक नयी स्फूर्ति आ गई और विमान अपहरण तक उनके समर्थन में किया गया। गिरफ़्तारी के बाद कोर्ट ट्रायल की नाटकीय घटनाओं से जनता में भी उनके प्रति ज़ोरदार सहानुभूति उत्पन्न हो गई।

जेल से रिहाई के कुछ ही दिनों के बाद इंदिरा गाँधी का इन्दौर में रोड शो का कार्यक्रम कांग्रेस द्वारा घोषित किया गया। पुलिस एवं प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा, जिसमें मैं भी सम्मिलित था, इंदौर एयरपोर्ट से रेजिडेंसी कोठी तक के पूरे निर्धारित मार्ग का बहुत बारीकी से निरीक्षण किया गया।व्यवस्था के लिए पूरे मार्ग को सेक्टरों में विभाजित किया गया था तथा प्रत्येक सेक्टर के प्रभारी CSP की सहायता हेतु कुछ अन्य राजपत्रित पुलिस अधिकारी तथा मजिस्ट्रेट दिए गए थे।

मुझे पहले एयरपोर्ट व्यवस्था तथा इंदिरा गाँधी के एयरपोर्ट से बाहर निकलने के उपरांत दूसरे रास्ते से निकल कर राजवाड़े से मधुमिलन टाकीज़ चौराहे तक का सेक्टर सँभालना था।इंदिरा गांधी एक प्राइवेट वाईकाउन्ट हवाई जहाज़ से उतरीं और उनके उतरते ही सारी पुलिस व्यवस्था ध्वस्त हो गई। एयरपोर्ट पर एकत्रित विशाल भीड़ सारे बैरिकेड्स तोड़ते हुए अन्दर टारमेक तक पहुँच गई। ऐसी स्थिति में उन्हें एयरपोर्ट से नियमित मार्ग से निकालना असंभव था।

सौभाग्यवश मैनें अपने वरिष्ठ अधिकारी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्री रमन कक्कड़ के साथ एयरपोर्ट की पूरी चारदीवारी का अवलोकन किया था और यह देखा था कि दूसरे सिरे पर एयरपोर्ट और उससे लगे BSF कैम्पस के बीच में एक पुराना गेट था।अचानक आई उस स्थिति में हम लोगों ने तुरंत इंदिरा गाँधी को पूरी भीड़ को अचंभित कर उस गेट से निकालकर मुख्य सड़क तक निकाल दिया। इंदिरा गांधी अपनी खुली गाड़ी में खड़ी हो गई और एयरपोर्ट के सामने की भीड़ कुछ ही क्षणों में उनके पीछे आ पहुँची और उनका क़ाफ़िला शहर की ओर बढ़ गया। क़ाफ़िले के रवाना होने से पहले ही मैं दूसरे मार्ग से राजवाड़ा रवाना हो गया।वायरलेस सेट पर लगातार पूरे शहर की स्थिति ज्ञात हो रही थी।

इंदिरा गाँधी का क़ाफ़िला जब तक बड़ा गणपति से राजमुहल्ले तक पहुँचा, सड़कों पर अभूतपूर्व जनसैलाब आ चुका था।मालगंज चौराहे के पहले क़ाफ़िले को रोकना पड़ा क्योंकि मालगंज चौराहे पर इतनी अव्यवस्था हो गई थी कि आगे जाना संभव नहीं था। कारण यह था कि जनसैलाब में उपस्थित जनता पार्टी के कुछ अति उत्साही कार्यकर्ता विघ्न उत्पन्न करने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ थे।

कलेक्टर श्री नरेश नारद एवं SP श्री आर एल एस यादव स्वयं गाड़ी के लिए रास्ता बना रहे थे और फिर समग्र नियंत्रण के लिए इंदिरा गाँधी की खुली गाड़ी में पीछे खड़े हो कर वायरलेस से निर्देश दे रहे थे।उस सेक्टर के इंचार्ज CSP श्याम शुक्ला थे तथा उनके साथ युवा IAS अधिकारी, SDM महू, सुधीरनाथ थे।इंदिरा गाँधी का क़ाफ़िला जब मालगंज पहुँचा तो वहाँ से लेकर मुकेरीपुरा के बीच में छिटपुट पथराव की ख़बर आने लगी।

इन दोनों अधिकारियों ने पथराव करने वाले लोगों को तत्काल चिन्हित कर उन्हें बड़े साहस के साथ उस भारी भीड़ से दूर तक खदेड़ दिया और लगातार खदेड़ते रहे हैं।इंदिरा गांधी की उनकी खुली गाड़ी में उनके ठीक पीछे उनके निजी अंगरक्षक पूर्व पहलवान कौशल किशोर शर्मा थरमस लटकाए हुए खड़े थे और बहुत सतर्क निगाह रखे हुए थे।पुलिस की सतर्कता से कोई भी पत्थर उनकी गाड़ी के आस-पास तक नहीं आ पाया।घंटों की मशक़्क़त के बाद यह क़ाफ़िला बांबे बाज़ार चौराहे से यशवंत रोड होता हुआ मेरे सेक्टर राजवाड़ा पहुँचा।

राजवाड़े में एक वर्ग इंच जगह भी ख़ाली नहीं थी। बहुत कठिनाई से रस्सियों की सहायता से कुछ फ़ीट का रास्ता ख़ाली करा कर धीरे-धीरे क़ाफ़िले को निकलवाना शुरू किया।राजवाड़ा क्षेत्र से निकलने में लगभग एक घंटे का समय लग गया।राजवाड़े से किशनपुरा पुल, एम जी रोड होते हुए मैं फ़ोर्स की सहायता से पैदल भीड़ को हटाता हुआ मधुमिलन टॉकीज चौराहे तक पहुँचा। वहाँ से रेजिडेंसी कोठी तक CSP चाँद सिंह के सेक्टर में उनकी सहायता के लिए मैं अपना फ़ोर्स लेकर गया। हम लोगों ने रेसीडेंसी कोठी के गेट के अंदर तक इंदिरा गाँधी की गाड़ी को पहुँचा दिया। इंदिरा गांधी के रेज़िडेंसी में प्रवेश करते ही पूरे जिला और पुलिस प्रशासन ने राहत की साँस ली।