Flashback: आसाम में मध्य प्रदेश SAF की सशस्त्र बग़ावत

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यह घटनाक्रम 1980 के रक्षाबंधन के दिन गुवाहाटी आसाम में मध्य प्रदेश की 13वीं बटालियन SAF की बग़ावत से संबंधित है। इस पूरी बटालियन ने हथियार उठा लिए थे और मुझे अपने सेवा काल की इस घटना में अत्यधिक तनावग्रस्त और ख़तरनाक क्षणों से गुज़रना पड़ा।

मेरे सभी बैचमेट्स को पाँच साल की सेवा पूरी करने पर मध्य प्रदेश के विभिन्न ज़िलों में पुलिस अधीक्षक बना दिया गया था, परंतु मुझे 24 वीं बटालियन का कमांडेंट बनाकर गुवाहाटी, आसाम भेज दिया गया जहाँ बहुत उग्र आन्दोलन चल रहा था। बहुत कठिन परिस्थितियों में गुवाहाटी और दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में आंदोलन का सामना करने के लिए मेरी बटालियन को लगाया गया। मेरे आसाम पहुँचने के कुछ महीनों के पश्चात मध्यप्रदेश से तेरहवीं बटालियन भी गुवाहाटी में आ गई परन्तु इसे केवल रिज़र्व के तौर पर गुवाहाटी के एक घने क्षेत्र चांदमारी के निकट FCI की गोडाउनो में रख दिया गया।

रक्षाबंधन के दिन 12 बजे भरी दोपहर को इसी तेरहवीं बटालियन की वायरलेस प्लाटून के चार जवान शराब के नशे में कैम्प से निकल कर चौराहे पर पान की दुकान पर गए। बाद में उन पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने वहाँ पर पान बेचने वाली महिला से छेड़खानी की।आंदोलन के माहौल में तुरंत वहाँ भीड़ इकट्ठी हो गई और ये चारों जवान वहाँ से भाग निकले।

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इस घटना की जानकारी मिलने पर वायरलेस की पूरी प्लाटून के लोग अपने साथियों को (जो पहले ही भागने में सफल हो चुके थे) बचाने के लिए दौड़कर चौराहे पर गये परंतु तब तक वहाँ एकत्रित और बड़ी भीड़ में पूरी प्लाटून घिर गई।इस घटना की ख़बर मिलते ही पूरी बटालियन के लोग उत्तेजित हो गये और उन्होंने अपने एड्ज्यूटेंट और अन्य अधिकारियों से वहाँ चलकर संघर्ष करने के लिये कहा। बटालियन के अधिकारियों के मना करने पर सिपाहियों द्वारा उनके साथ बुरी तरह मारपीट की गई एवं अधिकारियों के बिना ही पूरी बटालियन घटनास्थल की तरफ़ दौड़ गई।

यह भी बताया गया कि बटालियन की तरफ़ से कई हवाई फ़ायर किए गए।स्थानीय थाना प्रभारी ने उन्हें रोकने का प्रयास किया पर उसे भी घायल कर दिया गया । इसके पश्चात ADM और एडिशनल SP के पहुँचने पर उनके साथ भी मारपीट की गई। SP और कलेक्टर के पहुँचने पर उनकी गाड़ी को निकट के तालाब में गिरा दिया गया।प्रशासन द्वारा भारी संख्या में BSF को स्थिति पर नियंत्रण करने के लिए भेजा गया।BSF का यह बल जनता और SAF बटालियन के बीच में दीवार की तरह खड़ा हो गया।जनता ने आरोपियों के विरुद्ध कार्रवाई तथा 13वींबटालियन को तत्काल उस स्थान से हटाने की माँग की, जिसे बटालियन के अराजपत्रित कर्मचारी संघ ने मानने से इंकार कर दिया।

चाँदमारी चौराहे से दूर- दूर तक सड़कों पर 50 हज़ार से ऊपर की भीड़ एकत्रित हो गई और असम आंदोलन के AASU के बड़े नेता भृगु फुकन और प्रफुल्ल कुमार महंत भी वहाँ पहुँच गये और तत्काल बटालियन को हटाने की माँग करने लगे। अधिकारियों ने कैंप के दूर से ही बटालियन के लोगों को लाउडस्पीकर से हथियार रख कर पूरा कैम्प ख़ाली कर देने के आदेश दिये।

इसके जवाब में बटालियन के कुछ लोगों ने LMG हथियार माउंट कर ली और कैम्प के चारों तरफ़ रायफल के साथ पोज़ीशन ले ली। पूरी हथियारबंद बटालियन की बग़ावत की सूचना पा कर आसाम के तत्कालीन IGP (तब DGP नहीं होते थे) श्री दास ने आर्मी की पूरी एक ब्रिगेड को अलर्ट करने के आदेश दे दिए।उन्होंने अपने DIG प्रशासन श्री खरकवाल ( जो अकेले एक हिंदीभाषी आसाम के वरिष्ठ अधिकारी थे)को एक एक्शन प्लान तत्काल बनाने के लिए आदेश दिया।ये सीधे- सीधे दो फ़ोर्स के बीच में सशस्त्र संघर्ष की योजना थी।

रात हो चुकी थी लेकिन भीड़ बढ़ती ही चली जा रही थी। DIG प्रशासन ने कैंप से दूर सुरक्षित स्थान से लाउडस्पीकर पर पूरी बटालियन को फिर सरेंडर करने के लिए कहा और धमकी दी कि अन्यथा आर्मी उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करेगी। DIG ने तेरहवीं बटालियन के कमांडेंट के बारे में भी जानना चाहा लेकिन वे वेलफेयर फंड के लिए घास निलाम करने की आड़ में ग्वालियर, मध्य प्रदेश गए हुए थे।अब कार्रवाई का समय आ चुका था।

DIG एक समझदार व्यक्ति थे।कार्रवाई से पहले एक अंतिम युक्ति के रूप में उन्होंने SAF की 24 वीं बटालियन के कमांडेंट अर्थात मुझसे बात करनी चाही और कंट्रोल रूम से मुझे घटनास्थल पर पहुँचने का आदेश दिया। मैं उस समय शिलांग में था। यद्यपि यह सीधे मेरा काम नहीं था परन्तु फिर भी बिना झिझक इस चुनौती के लिए तत्काल तैयार हो गया एवं रात एक बजे घटना स्थल पर पहुँचा। मुझे पूरी जानकारी दी गई तथा बटालियन को जाकर समझाने के लिए कहा गया। बिना कुछ सोचे मैं BSF की दीवार के बीच से निकल कर बटालियन के कैम्प की ओर पैदल चल पड़ा।

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बटालियन के लोगों ने सर्च लाइटें लगा रखी थी।इस लाइट में मुझे सबसे आगे दो LMG लिये हुए दो जवान तैनात दिखाई पड़े।मैं आगे बढ़ता गया तब उन में से एक ने चिल्लाकर मुझे चेतावनी दी कि और आगे बढ़ें तो गोली मार दी जाएगी। मैं फिर भी धीरे धीरे आगे बढ़ता गया और उन्होंने फिर कहा कि यह अंतिम चेतावनी है और अब LMG से बर्स्ट फ़ायर कर दिया जाएगा। ख़तरा वास्तविक था क्योंकि ग़ुस्से, जोश या फिर घबराहट में उनकी ऊँगली ट्रिगर के ऊपर कभी भी दब सकती थी और गोलियों की बौछार हो सकती थी। अचानक एक सिपाही LMG वालों के पीछे से आया और वह LMG वालों के आगे खड़े होकर उनसे बोला कि साहब से बात कर लेते हैं। वह संयोगवश खंडवा में मेरा ड्राइवर रह चुका रह चुका था और सर्च लाइट में मुझे पहचान गया था।उसमें पीछे जाकर चिल्ला कर पूरी बटालियन को शांत रहने के लिए कहा।

मैं LMG वालों से आगे निकलकर गोडाउन कैंप के अन्दर पहुँचा और एकाएक बटालियन के जिन लोगों के पास हथियार थे उन्होंने हथियार ज़मीन पर रख दिए और वे सभी पुत्रवत मेरे समक्ष आकर मुझे घेर कर खड़े हो गए।उत्तेजना ख़त्म होने के बाद उन्हें उनके विरुद्ध कार्रवाई किए जाने का डर सताने लगा। उन्हें डर था कि पूरी बटालियन को नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाएगा। उन्होंने मुझसे आश्वासन माँगा कि मैं उनकी नौकरी नहीं जाने दूँगा।

इसके पश्चात मैं बटालियन के अधिकारियों से मिला जो घायल अवस्था में थे और मुझे देखकर रो पड़े।मैंने उन्हें सांत्वना दी। मैंने बटालियन के लोगों को वह जगह ख़ाली कर देने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि वे यह जगह ख़ाली कर देंगे लेकिन अभी नहीं, दो दिन बाद। वापस लौट कर घटनास्थल पर एकत्र आसाम के वरिष्ठ अधिकारियों से मैंने बात की जिन्होंने बड़ी मुश्किल से भीड़ को वहाँ से समझा कर धीरे धीरे वापस किया। आसाम में जल्दी होने वाली सुबह होने लगी थी और मैंने कैंप वापस लौट कर जवानों के साथ राहत की चाय पी। उनके हथियार दूर दरियों पर पड़े हुए थे।

आर्मी ब्रिगेड का अलर्ट वापस ले लिया गया। दो दिन के पश्चात 13वीं बटालियन को एक दूसरे अपेक्षाकृत अधिक सुविधाजनक स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया और यह सब मेरी देख रेख में हुआ। घटना के कुछ दिनों बाद पुलिस मुख्यालय भोपाल से DIG SAF श्री के के सिंह और उनके सहायक के रूप में कमांडेंट डी डी गुप्ता गुवाहाटी आए और उन्होंने पूरी घटना की गहराई से जाँच की।घटना के उत्तरदायी मुख्य लोगों के विरुद्ध बटालियन के कमांडेंट ने ग्वालियर से लौटकर विभागीय जाँच प्रारंभ कर दी।

मैंने DIG साहब को स्पष्ट बताया कि मैंने आश्वासन दिया है कि किसी को भी बर्खास्त नहीं किया जाएगा और इस बात का सम्मान किया गया। बटालियन की अनुशासनहीनता का मूल कारण पूरी बटालियन को बिना किसी काम के एक छोटे से स्थान में रख देना था। स्मरण रहे यह वह दौर था जब मध्य प्रदेश सहित अनेक प्रांतों में पुलिस विद्रोह हो चुका था।मध्य प्रदेश SAF की पूर्वोत्तर के राज्यों में कठिन और शानदार सेवा की दीर्घ परंपरा रही है और यह घटना एक अपवाद थी।

उस रात की जब मैं याद करता हूँ तो मुझे याद आता है कि कैंप की तरफ़ जाते समय मैं बिलकुल स्थिर चित्त था और केवल इसी कारण मैं कैंप तक पहुँच सका। परन्तु क्या हो सकता था यह सोचकर सिहरन अवश्य हो जाती है।

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एन. के. त्रिपाठी

एन के त्रिपाठी आई पी एस सेवा के मप्र काडर के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। उन्होंने प्रदेश मे फ़ील्ड और मुख्यालय दोनों स्थानों मे महत्वपूर्ण पदों पर सफलतापूर्वक कार्य किया। प्रदेश मे उनकी अन्तिम पदस्थापना परिवहन आयुक्त के रूप मे थी और उसके पश्चात वे प्रतिनियुक्ति पर केंद्र मे गये। वहाँ पर वे स्पेशल डीजी, सी आर पी एफ और डीजीपी, एन सी आर बी के पद पर रहे।

वर्तमान मे वे मालवांचल विश्वविद्यालय, इंदौर के कुलपति हैं। वे अभी अनेक गतिविधियों से जुड़े हुए है जिनमें खेल, साहित्यएवं एन जी ओ आदि है। पठन पाठन और देशा टन में उनकी विशेष रुचि है।