Flashback: मेरी प्रथम विदेश यात्रा: जबरदस्त भावनात्मक लगाव

वैसे तो मैं 17 विदेश यात्राओं में अनेक देशों की यात्रा कर चुका हूँ, परंतु अपनी पहली विदेश यात्रा से मुझे जबरदस्त भावनात्मक लगाव है तथा वह आज भी सजीव है । यूरोपियन और ब्रिटिश हिस्ट्री और इंग्लिश लिटरेचर के छात्र के नाते छात्र जीवन से ही इंग्लैंड और यूरोप को देखने का सपना था। सरकार ने पात्रता होने पर भी कमांड कोर्स में इंग्लैंड नहीं भेजा तो सरकार का मुँह देखने के स्थान पर मैंने स्वयं की बचत से निजी यात्रा पर जाने का निर्णय लिया। उत्साहपूर्वक तमाम तैयारी पूर्ण की जिनमें टी बैग और कैमरे की रीलें भी थी। मेरे साथ प्रथम चरण के लिए मेरे मित्र सुरेश भदौरिया भी साथ चलने को तैयार हो गये।

4 अप्रैल, 1998 को इंदौर से ट्रेन द्वारा मुम्बई पहुंचकर सुबह वहाँ से लंदन के लिए हम दोनों एमीरेट एयरलाइंस से रवाना हुए। दुबई में जहाज़ बदलने के लिए पहली बार विदेशी भूमि पर कदम रखा। लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पहुँचने पर हमें लेने के लिए हमारे मेजबान हांडा जी उपस्थित थे। वे अत्यंत प्रोत्साहित थे और हमें लेकर पूरा लंदन पार करते हुए पूर्वी लंदन में अपने घर पर ले गए। वहाँ दिन बहुत लंबे थे और लंदन में शाम होना शुरू हुई थी। घर पर चाय आदि के बाद हांडा जी के साथ हम लोग निकट के पार्क में घूमने के लिए गए। पहले ही दिन मैं हीथ्रो एयरपोर्ट, लंदन का वैभव, सड़कें और ट्रैफिक, बिल्डिंग और वहां की सफाई और अनुशासन देखकर आश्चर्यचकित रह गया।लंदन के वैभव में भारत सहित इसके पुराने उपनिवेशों के शोषण की कहानी भी छुपी है।

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अगले आठ दिनों तक हमारा लंदन और आसपास के स्थल देखने का कार्यक्रम शुरु हो गया। लंदन में जिन स्थानों को देखना था उनकी मेरे पास पूरी सूची और जानकारी थी। लंदन में हमारे मेजबान हांडा जी लगभग 65 वर्ष के एक फुर्तीले व्यक्ति थे। भारत से जाकर 30 -35 साल पहले छोटी सी कपड़े की दुकान शुरू की और अब अपना जमा हुआ व्यापार अपने लड़के बबली के हवाले कर चुके थे।

वे अगली सुबह हमें पास के मेट्रो स्टेशन,जिसे वहाँ अंडरग्राउंड कहा जाता है, लेकर गए और वहां के सिस्टम से अभ्यस्त वे टिकट लेकर फटाफट इस्कालेटर से उतरकर ट्रेन तक ले गए।मैं अन्डरग्राउंड से बहुत प्रभावित हुआ। यह जानकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि हांडा जी ने लंदन के अधिकांश दर्शनीय स्थलों को देखा तक नहीं था। उनमें भी अब इन स्थानों को देखने की इच्छा हुई।ट्रेन में बैठकर मैंने अपनी सूची और नक्शे के आधार पर दिन भर का कार्यक्रम बनाया और सबसे पहले हम तीनों लंदन के इतिहास में प्रसिद्ध टावर आफ लंदन देखने पहुंचे।

टावर आफ लंदन एक किला है जो टेम्स नदी के पास ही बना है। 11वीं शताब्दी में इसके निर्माण के बाद से ही इसे विभिन्न प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाता रहा है। इसमें समय-समय पर खजाना व हथियार आदि रखे जाते थे। इसे कारावास के तौर पर भी उपयोग किया जाता था तथा यहां इतिहास में कुछ लोगों को मृत्युदंड भी दिया गया था।इसमें सुरक्षा के लिए दो दीवारों का घेरा है और बाहर खाई है । प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा यही सुरक्षित रखा है। इसके बाद लंदन का प्रतीक चिन्ह टेम्स नदी पर बना हुआ टावर ब्रिज देखने गए और उसके आसपास के क्षेत्रों में साथ लाए कैमरे से फोटोग्राफी की।

Flashback: मेरी प्रथम विदेश यात्रा: जबरदस्त भावनात्मक लगाव

हम लोग प्रतिदिन अलग-अलग रंग ( रूट) की अंडरग्राउंड लाइनों को जंक्शनों पर बदलते हुए तथा कभी-कभी टैक्सी का प्रयोग करते हुए लंदन के विभिन्न स्थानों में घूमने लगे। ग्रेट ब्रिटेन की महारानी का निवास स्थल भव्य बकिंघम पैलेस देखने हम लोग पहुंचे जिसकी प्रतिकृतियां भारत सहित अनेक देशों में की गई है।1703 में बने इस महल का प्रयोग शाही परिवार के निवास के लिए पहली बार 1837 में किया गया जब महारानी विक्टोरिया यहां रहने के लिए आई।

इंग्लैंड के प्रसिद्ध पैलेस गार्ड को यहां लाल पोशाक में देखा जा सकता है जो भालू की खाल की लंबी टोपी लगाते हैं। लंदन का एक महत्वपूर्ण प्रतीक चिन्ह बिग बेन है। 316 फीट ऊंची यह घड़ी बहुत गरिमापूर्ण दिखाई देती है। लंदन शहर का मुख्य केंद्र ट्रेफेल्गर स्क्वायर है जो वेस्टमिंस्टर में ही स्थित है।शहर के इस मुख्य चौक का वर्तमान नामकरण 1805 के विख्यात ट्रेफेल्गर युद्ध के ऊपर रखा गया था जिसमें एडमिरल नेल्सन ने फ्रांस और स्पेन की संयुक्त नेवी को नष्ट कर दिया था। यहां नेल्सन कॉलम बना हुआ है जिसके चारों ओर चार शेर बने हुए हैं। यहां हमेशा रौनक बनी रहती है।

Flashback: मेरी प्रथम विदेश यात्रा: जबरदस्त भावनात्मक लगाव

लंदन में अनेक संग्रहालय हैं जिसमें विक्टोरिया एंड अल्बर्ट म्यूजियम सर्वप्रमुख है। इसमें इंग्लैंड के पूर्व साम्राज्य के सभी महाद्वीपों से लायी गई मूर्तियों तथा अन्य कलाकृतियों का विशाल संग्रह है। मैंने साइंस म्यूजियम का भी अवलोकन किया जिसमें सभी प्रकार के विज्ञान की अच्छी जानकारी है। मादाम तुसाद मोम के पुतलों का बना हुआ लोकप्रिय संग्रहालय हैं जहां महात्मा गांधी, अमिताभ बच्चन सहित अनेक भारतीय प्रमुख व्यक्तियों के भी पुतले हैं।

प्रतिदिन जल्दी सुबह निकलकर देर शाम होने के बाद जब हम लोग घर आते थे तो थोड़े विश्राम के बाद हांडा जी के पुत्र बबली अपनी कार निकाल कर हमें रात में लंदन शहर घुमाने के लिए निकलते थे।टेम्स के किनारे या विभिन्न बाज़ारों में हम लोग घूमते थे। एक बार हम लोग नगेट क्लब में भी गये।लंदन के आसपास के इलाक़े देखने तथा लंदन के सामाजिक केंद्र पब में जाने का अवसर मिला। इंग्लैंड के अंदरूनी क्षेत्रों को देखने की इच्छा के कारण हम लोग मध्य इंग्लैंड के शहर लंदन से क़रीब 270 किमी उत्तर में स्थित शेफील्ड गये। मोटरवे (हाईवे) से इंग्लैंड के ग्रामीण क्षेत्रों के हरे भरे और ऊँचे नीचे परिदृश्य बहुत सुंदर दिख रहे थे। आकाश में स्लेटी बादल घूम रहे थे और मुझे लगा कि इन्हे देखकर ही विलियम वर्डस्वर्थ ने कहा होगा-

‘I wandered lonely as a cloud’ 

एक रात्रि विश्राम के बाद हम लोग वापस आ गये।अंतिम दिन बबली ने भदौरिया जी को भारत लौटने के लिए एयरपोर्ट पर विदा किया और मुझे यूरोप के कंडक्टेड टूर के लिए कॉस्मॉस ट्रैवेल की बस में बैठा दिया।इंग्लैंड के अति सघन भ्रमण की स्मृतियों को लेकर मैं यूरोप महाद्वीप की यात्रा के लिए अकेला उमंग के साथ जाने के लिए तैयार था।

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Author profile
n k tripathi
एन. के. त्रिपाठी

एन के त्रिपाठी आई पी एस सेवा के मप्र काडर के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। उन्होंने प्रदेश मे फ़ील्ड और मुख्यालय दोनों स्थानों मे महत्वपूर्ण पदों पर सफलतापूर्वक कार्य किया। प्रदेश मे उनकी अन्तिम पदस्थापना परिवहन आयुक्त के रूप मे थी और उसके पश्चात वे प्रतिनियुक्ति पर केंद्र मे गये। वहाँ पर वे स्पेशल डीजी, सी आर पी एफ और डीजीपी, एन सी आर बी के पद पर रहे।

वर्तमान मे वे मालवांचल विश्वविद्यालय, इंदौर के कुलपति हैं। वे अभी अनेक गतिविधियों से जुड़े हुए है जिनमें खेल, साहित्यएवं एन जी ओ आदि है। पठन पाठन और देशा टन में उनकी विशेष रुचि है।