Flashback: स्विट्ज़रलैण्ड यात्रा और घर वापसी

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Flashback: स्विट्ज़रलैण्ड यात्रा और घर वापसी

इटली के उत्तरी छोर में बसे समृद्धि और फ़ैशन के शहर मिलान होते हुए हमारी बस उत्तर दिशा की ओर चली जा रही थी। कुछ ही देर बाद उत्तर दिशा में क्षितिज पर नीले पर्वतों का आभास होना प्रारंभ हो गया। यह प्राकृतिक सुंदरता की विश्व धरोहर स्विट्ज़रलैण्ड की प्रसिद्ध ऐल्प्स पर्वतमाला थी।हमने पहाड़ पर चढ़ना प्रारंभ किया तो ऐसा लगा कि हम सुन्दरता के विराट साम्राज्य में प्रवेश कर गए हैं।

हम लोग थोड़ा ही चल कर स्विटज़रलैंड के एक सीमावर्ती सुंदर शहर लुगानो पहुँचे। सौम्य जलवायु के इस शहर में इसी नाम की झील थी जिसकी रमणीयता देखकर आंखें खुली की खुली रह गईं।झील के पानी की निर्मलता से मैं आश्चर्यचकित रह गया।झील के किनारों पर सुन्दर क्यारियों में फूल लगाए गये थे। यहाँ पर पॉम, अनार और संतरे के वृक्ष बिखरे हुए थे। इस शहर में इटैलियन भाषा ही बोली जाती है।लोगों की सभ्यता देखकर मैं बहुत प्रभावित हुआ। जब मैं भारतीय आदत के अनुसार बिना देखे सुने ही सड़क पार कर रहा था तब तेज आने वाली कार के चालक ने हार्न बजाने के स्थान पर कार रोक कर मुस्कुराते हुए अपनी टोपी हिलाकर मेरा अभिवादन किया।

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रात्रि विश्राम के बाद सुबह हम लोग उत्तर पश्चिम की ओर थोड़ी दूरी चल कर लुकार्नो नामक स्थान पर पहुँचे। यहाँ भी सुंदर झील शहर के बीचो बीच में फैली हुई थी। यहाँ विशेष ठंडक नहीं थी और यहाँ की खुली धूप के कारण हरे भरे बगीचे चारों ओर दिखाई दे रहे थे। कुछ पुराने क़िले हम को दूर से दिखाई दिए। यहाँ से आगे चलने पर पहाड़ी घाटियाँ और पहाड़ियाँ और ऊँची हो गई। हमारी सड़क के नाम पर केवल पुल और सुरंग का अनवरत क्रम चल रहा था।गहरी खाइयों के ऊपर बने पुल बहुत कलात्मक थे।

इसी मार्ग पर हमें आगे सेंट गोथार्ड टनल मिली जिसकी लंबाई 16.9 किलोमीटर है।1980 में इसके निर्माण के समय यह विश्व की सबसे लंबी टनल थी।पुल और टनल के कारण सड़क सामान्य पहाड़ी मार्गों की तरह घुमावदार नहीं थी।लंबी यात्रा के बाद हम लोग मध्य स्विट्ज़रलैंड के जर्मन भाषी क्षेत्र के प्राकृतिक छटा वाले रिज़ॉर्ट शहर इंटरलॉकेन पहुँचे। दो पहाड़ों और दो झीलों के बीच बसा यह शहर सैलानियों का प्रिय स्थान है।

यहाँ पर शहर में इधर उधर घूमना बहुत ही मनोरंजक प्रतीत हुआ। रात्रि विश्राम के बाद सुबह हम लोग माउंट टिटलिस के लिये रवाना हो गये। मैंने अपने कैमरे में चौथी और अंतिम रील चढ़ा ली। हमें अब हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखला दिखने लगी।माउंट टिटलिस के निकट पहुंचकर हम लोग बस से उतर कर रोपवे ट्रॉली में बैठ कर समुद्र तल से 10,623 फुट ऊँचाई पर स्थित शिखर पर पहुँचे। वहाँ दूर-दूर तक केवल सफ़ेद बर्फ़ की चादर बिछी हुई दिख रही थी। इसी सुन्दर दृश्य के दर्शन की हम लोग बहुत प्रतीक्षा कर रहे थे। चोटी पर पहुँच कर बर्फ में चलना एक अद्भुत अनुभव था। हम लोग बहुत देर तक इस क्षेत्र में घूमते रहे।

माउन्ट टिटलिस से हम लोग ल्यूसर्न नामक शहर में पहुँचे। स्विट्ज़रलैंड के अनेक शहरों की तरह यह भी एक सुंदर झील के किनारे बसा हुआ है। शहर का मध्य क्षेत्र केवल पैदल चलने के लिए था।यहाँ नदी पर 14वीं शताब्दी का बना लकड़ी का चैपल ब्रिज हल्की छत से ढँका हुआ बहुत मनमोहक था। यह एक ऐतिहासिक शहर भी है और यहाँ के भवनों से उसके अतीत के इतिहास का आभास मिल रहा था।


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यहाँ पर रात्रि विश्राम के लिए रुक गए। अगली सुबह हमारा ग्रुप फ़्रान्स के लिए रवाना होना था। कुछ तकनीकी कारणों से मेरा वीज़ा समाप्त हो रहा था इसलिए नियमों का पालन करते हुए मेरी ज़्यूरिख से लौटने की पूर्व योजना थी। वर्षों बाद मैं सपत्नीक फ़्रान्स भी गया। हमारी बस मुझे लेकर ल्यूसर्न के रेलवे स्टेशन के सामने पहुँची जहाँ सह यात्रियों ने भावभीनी विदाई दी।हमारी कुशाग्र इटैलियन गाइड लॉरिडाना ने मेरे गले में हाथ डालकर फ़ोटो खिंचवाई।यात्रा में मैं बहुत संयम से व्यय कर रहा था परन्तु मैंने लॉरिडाना को उसकी अपेक्षा से कहीं अधिक सौजन्य राशि भेंट कर दी।

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अब एक जर्मन भाषाी क्षेत्र में मैं बिल्कुल अकेला था। रेल्वे टिकट काउंटर पर मैंने ज़्यूरिख़ के मुख्य स्टेशन बॉनहॉफ का टिकट माँगा। बुकिंग क्लर्क महिला ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखकर मुझे फिर से बोलने का इशारा किया। मैंने फिर वही दोहराया तो उसने बड़े विचित्र भाव से मुझ को टिकट दिया।ट्रेन आने पर मैं अपने ढेर सारे सामान के साथ डिब्बे में बैठ गया। वैसी आधुनिक ट्रेन मैं पहली बार देख रहा था।

मैं चौड़ी खिड़की से बाहर बिखरी हुई नैसर्गिक सुंदरता देखने में खो गया। कुछ देर बाद टिकट चेकर आया तो सबकी तरह मैंने भी उसे अपना टिकट दिखाया। वह मुझे अजीब निगाहों से देखने लगा। उसने किसी तरह मुझे कुछ अंग्रेज़ी शब्दों से समझाया कि मेरा टिकट हाफ़ है जबकि फ़ुल होना चाहिए।अब मुझे समझ में आया कि बुकिंग क्लर्क बॉनहॉफ को आधा टिकट समझ गई थी और इसीलिए उसका व्यवहार असामान्य था। मैंने जेब से अनेक सिक्के अपने हाथ में निकालकर टिकट चेकर के सामने फैला दिए और उसने उसमें से कुछ निकाल कर मुझे एक चिट दे दी।

ज़्यूरिख रेलवे स्टेशन बहुत बड़ा और पूरी तरह एयरकंडीशंड था। वहाँ पर एक बहुत बड़ा शहर का इलेक्ट्रॉनिक नक़्शा दीवाल पर बना था जिसमें शहर के होटल दर्शाए गए थे तथा बीचों-बीच में रेलवे स्टेशन दर्शाया गया था।होटलों पर नंबर पड़े थे। बग़ल में एक फ़ोन रखा था। कुछ देर बाद मुझे समझ में आया कि नक़्शे में दिये होटल का नम्बर फ़ोन पर लगाने से सीधे होटल के रिसेप्शन पर इंग्लिश में बात हो जाती है।


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स्टेशन से होटल जितना दूर होता जाता था उतना ही किराया कम होता जाता था। बहुत से होटलों में बात करने पर वहाँ ख़ाली कमरा नहीं मिल रहा था। आख़िरकार एक होटल का चयन कर वहाँ जाने वाली बस का नंबर और उतरने वाले स्टॉप की संख्या इत्यादि की जानकारी पढ़ कर स्टेशन के बाहर निकला। स्टेशन बहुत भव्य बना था। सामने बहुत चौड़ी सड़क के उस पार बस स्टैंड था। वहाँ बसें ऊपर लगे इलेक्ट्रिक तारों से चलती थी।मेरी बस आने पर मैं उस पर चढ़ने के लिए तैयार हुआ तो मेरा सामान देखकर बस से कुछ यात्री उतरे और उन्होंने मेरा सामान ऊपर रखने में सहायता की। बस का दरवाज़ा बंद होने पर बस चली।मैं तीसरे स्टॉप पर उतर गया जहां ठीक सामने मेरे होटल की सीढ़ी थी।

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ज़्यूरिख एक बड़ा और सुन्दर शहर है। शाम को मैं पैदल घूमने निकला। यहाँ भी झील थी जिसके किनारे बड़ी संख्या में लोग घूम रहे थे। फुटपाथ पर बहुत सामान बिक रहा था जिसमें सस्ती घड़ियाँ भी थीं।रात्रि होटल में बिताकर सुबह मैं बस से स्टेशन पहुँचा और वहाँ से एयरपोर्ट की शटल ट्रेन पकड़ी। ज़्यूरिख एयरपोर्ट बहुत बड़ा था। बड़ी सी लॉबी में क़तार से बने अनेक टिकट काउंटर पर मुझे बार बार घूमने पर भी एमिरेट्स एयरलाइंस का काउंटर नहीं मिला तो मैं थोड़ा घबराया। मेरे पैसे लगभग समाप्त थे और वापसी की सीट न मिलने पर इस विदेश में क्या करता?

सौभाग्यवश एक कोने में इस एयरलाइंस का एक छोटा सा बोर्ड दिखाई दिया जिसके नीचे सहायता के लिए एक फ़ोन रखा था। इसे उठाते ही किसी ने हेलो कहा तो मैंने उसे अपनी समस्या बतायी। उसने हंस कर बताया कि आप किसी भी काउंटर से बोर्डिंग पास ले सकते हैं। मैं एक काउंटर पर गया और काफ़ी देर बाद क्लर्क ने जब बोर्डिंग कार्ड मेरे हाथ में दे दिया तो मेरी साँस में साँस आयी। शाम को निर्धारित समय पर बोर्डिंग गेट पर गया और वहाँ पहली बार मैंने इतने सारे बोर्डिंग गेट और ऐरोब्रिज देखे। जहाज़ में बैठकर राहत की साँस ली। रात को मेरे बग़ल में बैठी स्वीडन की दुबई में काम करने वाली नवयुवती ने मुझे सामने लगे TV को चलाना सिखाया।


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दुबई एयरपोर्ट पहुँच कर उसके बग़ल में स्थित एक होटल में शेष रात बितायी। सुबह मेरे मित्र श्री योगेश संघवी आ गये जिन्होंने मुझे पूरे दिन दुबई और शारजाह घुमाया जिसमें गोल्ड सुक मार्केट और गोल्फ़ कोर्स की सैर भी सम्मिलित थी। रात को उन्होंने मुझे बम्बई के जहाज़ में बैठा दिया।बंबई में सुबह भोर होने से पहले ही जहाज़ पहुँचा जहाँ श्री उतम झंवर मुझे अपने घर ले गए और कुछ घंटों के बाद वापस एयरपोर्ट छोड़ गए। इंडियन एयरलाइंस के जहाज़ से 26 अप्रैल, 1998 को अपनी 23 दिवसीय पहली विदेश यात्रा के बाद इंदौर पहुँचा जहाँ एयरपोर्ट पर मेरी पत्नी और दोनों बच्चियां मेरे स्वागत के लिए उपस्थित थीं।