अलविदा 2024

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अलविदा 2024

– एन के त्रिपाठी

चाहे कुछ भी घटित होता रहे, समय अपनी गति से व्यतीत हो जाता है।2024 की अपनी चढ़ाव उतार की राजनीति रही, परन्तु फिर भी विश्व वही रहा। दुनिया में संघर्ष और रक्तपात जारी रहा। वर्ष की सबसे बड़ी त्रासदी, जिसे अनदेखा कर दिया गया, इस वर्ष का सबसे अधिक गर्म रहना था।यह भविष्य के लिए प्रलयंकारी संकेत है।

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भारतीय लोकतंत्र एक वर्ष और परिपक्व हो गया। हमारा लोकतंत्र केवल 77 वर्ष पुराना है, जो ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में एक छोटी अवधि है। भारत ने इस वर्ष एक बार फिर लोकसभा चुनावों का लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व देखा। मोदी के दस वर्षों के कार्यकाल की एंटी इंकम्बेंसी के विरुद्ध इंडिया गठबंधन की गंभीर चुनौती थी। मोदी की पुनः वापसी हुई, परंतु कम संख्या और आहत अहंकार के साथ हुई। फिर भी एनडीए में भाजपा की भारी संख्या ने मोदी को अपने शासन की निरंतरता दिखाने के लिए शक्ति दे दी। व्यावहारिक नायडू और अवसरवादी नीतीश ने उनका काम आसान कर दिया।

इंडिया गठबंधन को सम्भवतः सत्ता मिलने का बहुत विश्वास नहीं था। उनका एक मात्र आकांक्षा मोदी को हटाना था, परन्तु उनका एजेंडा भ्रमित था। मोदी के 400 ‘पार’ के अहंकार के कारण, इस गठबंधन ने चतुराई से दलित समुदाय के भय का अवश्य लाभ उठाया। इस बार बीजेपी सरकार के विरुद्ध मुस्लिमों का पूर्व की अपेक्षा अधिक सशक्त ध्रुवीकरण हुआ। इंडिया गठबंधन के लिए सबसे बड़ी बाधा राहुल का नेतृत्व है। उनकी शैली में मोदी जितना ही अहंकार है परंतु गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए आवश्यक सूक्ष्मता की कमी है। हरियाणा में कांग्रेस की अप्रत्याशित और महाराष्ट्र में गठबंधन की करारी हार ने इस ब्लॉक की गति को धीमा कर दिया है। यह पिछले संसद सत्र के समय सहयोगियों के बीच आई दरार से स्पष्ट है।

भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। हाल के वर्षों में इसकी जीडीपी वृद्धि विश्व में सबसे तेज रही है। फिर भी भारत की जीडीपी वित्त वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही के लिए केवल 5.4% रही जो सात तिमाहियों में सबसे कम है।विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का अंतरराष्ट्रीय व्यापार में केवल 2% हिस्सा है और एफडीआई में भी केवल 2% हिस्सा है। भारतीय मैन्यूफैक्चरिंग अभी भी वह उन्मुक्त भावना नहीं प्रदर्शित कर सकी है जिसका मार्ग डॉक्टर मनमोहन सिंह ने प्रशस्त किया था।

भारत को अब और तेज विकास के लिए भूमि, श्रम, कृषि, बैंकिंग, विनिवेश और कई अन्य क्षेत्रों में सुधारों की आवश्यकता है। भारत को अपनी नौकरशाही के पंजों को ढीला करने और उसे फिर से पुनर्गठित करने की आवश्यकता है। यद्यपि भारतीय ब्यूरोक्रेसी ने सिस्टम को बनाए रखा है, फिर भी यह अग्रिम सोच वाली नीतियों के कार्यान्वयन में एक बड़ी बाधा बन गई है। सभी देशों की तरह भारत में भी राजनीति आर्थिक नीतियों को प्रभावित कर रही है। मोदी और भारत को पंजाब के किसानों और मंडी एजेंटों के निहित स्वार्थों के कारण तीन कृषि सुधारों में बड़ा झटका लगा। मोदी अब केवल अपनी वर्तमान आर्थिक नीतियों को ही संगठित करेंगे। वे उन कठिन सुधारों पर बल नहीं देंगे जिसे विपक्ष और कतिपय अन्य हित कभी लागू नहीं होने देंगे। अनियंत्रित सब्सिडी और बेधड़क रेवड़ी की प्रणाली कैंसर बन गई हैं जो घातक सिद्ध होगी। राजनीति आर्थिक नीतियों पर हावी हो गई है।

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यूक्रेन और गाजा में युद्ध इस वर्ष भी जारी रहा। आशा है कि 2025 में इन युद्धों का अंत होगा। ब्रिटेन में शासन परिवर्तन हुआ, जिससे उस देश के साथ शीघ्र मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) की आशा बढ़ गई है। विश्व ट्रम्प की अमेरिका में एकतरफ़ा विजय से चिंतित है। फिर भी भारत व्यापार में संभावित झटके के बावजूद ट्रम्प की जीत से सबसे कम चिंतित देशों में है। मोदी रणनीतिक समर्थन के लिए उनसे आश्वास्त हैं। चीन ने पूर्वी लद्दाख में सैन्य तनाव कम करके भारत के लिए अपनी प्रासंगिकता को कुछ हद तक सुधारा है। चीन अपनी आर्थिक मजबूरियों से अब चिंतित है। भारत को खुलकर इस अवसर का उपयोग करके चीन की विशाल पूंजी और महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी प्राप्त करनी चाहिए। लेकिन भारत को सीमाओं पर भी सतर्क रहना चाहिए और अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करते रहना चाहिए। अपने पड़ोस में भारत एक खतरनाक स्थिति में है। बांग्लादेश में शेख हसीना के पतन के बाद भारत अपने पड़ोस में किसी एक भी सच्चे मित्र देश को नामांकित नहीं कर सकता है।

मोदी के नेतृत्व में एक स्थिर सरकार होने से भारत भाग्यशाली है। इस स्थिरता से राष्ट्र स्वयं अपनी आंतरिक गति से आगे बढ़ सकता है। आइए इसी आशा से 2025 का स्वागत करें।

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