राज-काज: राजनीतिक नियुक्तियों की चर्चा में कितना दम….?

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राज-काज: राजनीतिक नियुक्तियों की चर्चा में कितना दम….?

* दिनेश निगम ‘त्यागी’

 

राजनीतिक नियुक्तियों की चर्चा में कितना दम….?

 

– प्रदेश में एक बार फिर निगम-मंडलों, आयोगों आदि मे राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर चर्चा तेज है। किन नेताओं को उपकृत किया जाएगा, उनके नामों की सूची प्रसारित होने लगी है। कहा जा रहा है कि नियुक्ति के आदेश कभी भी जारी हो सकते हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ, डॉ मोहन यादव जबसे मुख्यमंत्री बने, तब से ही बीच-बीच में यह चर्चा जोर पकड़ने लगती है। इसे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ज्यादा बल मिला है। मुख्यमंत्री डॉ यादव दिल्ली गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिले तो कहा गया कि वे सूची पर मुहर लगवाने गए हैं। मीडिया के कुछ मित्रों ने यहां तक लिख डाला कि सूची को हरी झंडी मिल गई है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना था कि पार्टी में ऐसी परंपरा नहीं है कि मुख्यमंत्री नियुक्तियों की सूची लेकर जाए और प्रधानमंत्री से मिले। उनका कहना था कि सभी खबरें हवा-हवाई हैं। जल्दी कुछ नहीं होने जा रहा है। उनका कहना था कि राजनीतिक नियुक्तियाें के लिए नताओं के नाम प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल और मुख्यमंत्री डॉ यादव बैठ कर तय करते हैं। अन्य नेताओं से सलाह ली जाती है। दोनों नेता इस मसले को लेकर अब तक बैठे ही नहीं। सूत्रों पर भरोसा करें तो राजनीतिक नियुक्तियों की खबरों में फिलहाल कोई दम नहीं है। इसमें और समय लग सकता है।

 

0 विधानसभा के अंदर ऐसे प्रतिबंध औचित्य से परे….

– केंद्र व राज्यों की तरह लोकसभा एवं विधानसभाओं में भी कुछ नियम-कानून ऐसे हैं, जो वर्षों से चले आ रहे हैं, लेकिन उनका कोई औचित्य नहीं है। कई बार इनका मजाक बनता है। ऐसा ही एक नियम हैं लोकसभा और विधानसभाओं के अंदर- बाहर नारेबाजी, धरना, प्रदर्शन पर प्रतिबंध। मप्र विधानसभा के मानसून सत्र से पहले पहली बार यह मुद्दा जोर-शोर से उठा। विधानसभा अध्यक्ष की ओर से विधायकों को एक परिपत्र भेजा गया। इसमें नियमों का हवाला देते हुए कहा गया कि सत्र के दौरान विधानसभा परिसर में किसी भी तरह की नारेबाजी, धरना और प्रदर्शन प्रतिबंधित रहेगा। इसका उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। प्रचार ऐसा हुआ, जैसे अध्यक्ष ने पहली बार इस तरह का आदेश जारी किया है। खबर अखबारों की सुर्खियां बनीं और विपक्ष ने भी इसका विरोध किया। कांग्रेस का कहना था कि इस तरह विधायकों का मुंह बंद नहीं किया जा सकता। विधानसभा की ओर से स्पष्ट किया गया कि यह नियम नया नहीं है। हर बार सत्र से पहले ऐसा परिपत्र जारी होता है। नियम का मजाक तब बना जब लगभग हर रोज विपक्ष ने सदन के अंदर और बाहर नारेबाजी की। गर्भगृह तक में धरना, हंगामा हुआ। ऐसे में इस नियम का क्या औचित्य? क्या सदन का मजाक बनाने वाले ऐसे नियमों को खत्म नहीं कर दिया जाना चाहिए?

*0 हेमंत ने चेताया भर नहीं, डंडा भी लगे चलाने….*

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– शांत, सौम्य और सरल दिखने वाले प्रदेश भाजपा के नए अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने अभी से इस बात के संकेत देना शुरू कर दिए कि वे सिर्फ चेतावनी भर नहीं देंगे, समय आने पर अनुशासन का डंडा चलाने में देर नहीं करेंगे। पदभार ग्रहण समाराेह के अपने पहले भाषण में उन्होंने कहा था कि अनुशासन का पालन सबको करना होगा। जो दाएं- बाएं चलने की कोशिश करेंगे, वे दिक्कत में आएंगे। उन्होंने इसकी बानगी पेश करना शुरू कर दी है। पहले शिकार हुए चंबल-ग्वालियर अंचल के दो नेता। एक ने दिल्ली में शराब पीकर आते समय बस में उत्पात मचाया था। वीडियो वायरल हुआ तो भाजपा ने उन्हें पद से हटा दिया। इसी प्रकार मुरैना जिले के एक मंडल अध्यक्ष ने अनुशासनहीनता की तो उनका इस्तीफा मांग लिया गया। रीवा जिले के पूर्व विधायक केपी त्रिपाठी ने थाने में समर्थकों के साथ जाकर एक महिला पुलिस अधिकारी को अपमानित किया। उन्हें भी कार्यालय बुलाकर फटकार लगा दी गई। त्रिपाठी ने सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी। भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ भोपाल के जिला अध्यक्ष शहरयार अहमद से इसलिए इस्तीफा ले लिया गया क्योंकि उनके भाई के खिलाफ पुलिस ने आपराधिक कार्रवाई की। अब तक पार्टी के छोटे नेताओं पर ही कार्रवाई हुई है। देखना होगा कि अनुशासन तोड़ने वाले बड़े नेताओं के साथ क्या होता है?

*0 यहां भी माननीयों की ‘अपनी ढपली, अपना राग’….*

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– विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले भाजपा पचमढ़ी में विधायकों, नेताओं को अनुशासन का पाठ पढ़ा चुकी है और कांग्रेस मांडू में। इसके बाद दोनाें दलों के नेता आपत्तिजनक बयान देकर पाठशालाओं में मिली नसीहतों की धज्जियां उड़ा चुके हैं। उम्मीद की जा रही थी कि विधानसभा के अंदर विधायक अपने दलों की लाइन का पालन करेंगे, लेकिन यहां भी कई ‘अपनी ढपली, अपना राग’ अलापते नजर आए। सबसे तीखा हमला भाजपा विधायक बृजबिहारी पटेरिया का था। उन्होंने प्रश्नकाल में कहा कि ‘पार्टी का अनुशासन है, गाइडलाइन भी है। अब यही कहूंगा कि पीछे बंधे हाथ, मुंह पर ताले, किससे कहें, कांटा कौन निकाले, मेरी कई पीड़ा है।’ उन्होंने कहा कि देवरी जिला सागर की नगर पालिका अध्यक्ष पर वित्तीय अनियमिताएं की शिकायत की। आरोप सिद्ध पाए गए लेकिन कार्रवाई नहीं की गई। दूसरे विधायक उमाकांत शर्मा शुक्रवार को सरकार के जवाब से संतुष्ट नहीं थे और जम कर खरी-खोटी सुना बैठे। कांग्रेस कहां पीछे रहने वाली थी। पार्टी विधानसभा के अंदर मंत्री विजय शाह के इस्तीफे की मांग को लेकर सदन नहीं चलने दे रही थी और पार्टी विधायक भंवर सिंह शेखावत अपना ध्यानाकर्षण पढ़ने लगे। शेखावत भाजपा छोड़ कांग्रेस में आए हैं। इस तरह दोनों दलों के माननीय पार्टी लाइन की सीमा लांघने से बाज नहीं आ रहे हैं।

*0 सनातन, धर्म, भगवा की जीत या न्याय की हार….!*

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– आतंकी घटनाओं से जुड़े हाल के दो फैसलों ने देश की प्रमुख जांच एजेंसी की पोल खोल कर रख दी है। पहले फैसले में मुुंबई में हुए सीलियर बम ब्लास्ट के आरोपियाें को बरी किया गया। दूसरे, मालेगांव बिस्फोट मामले में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर सहित सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया। पहले के आरोपी मुस्लिम और दूसरे के हिंदूवादी संगठनों से जुड़े थे। आतंकी घटनाएं हुई थीं, लोग मरे और घायल हुए थे। इसलिए आरोपियों का बाइज्जत बरी होना जांच एजेंसियों की नाकामी के साथ न्याय की भी हार है। ये आरोपी दोषी नहीं तो फिर अपराधी कौन हैं और कहां? मजेदार यह है कि जो पहले फैसले में न्याय की हार बता कर बड़ी अदालत में जाने की पैरवी कर रहे थे, वे दूसरे फैसले की तारीफ कर रहे हैं। इसी तरह पहले फैसले से खुश होने वाले दूसरे फैसले की आलोचना कर बड़ी अदालत में अपील की बात कर रहे हैं। दूसरे फैसले की चर्चा इसलिए ज्यादा है क्योंकि यह मप्र से जुड़ा है। इस घटना को भगवा को आतंकवाद से जोड़ा गया था। आएसएस पर उंगली उठाई गई थी। साध्वी प्रज्ञा को प्रताड़ित किए जाने के आरोप लगे थे। सभी के बरी होने के बाद कांग्रेस बैकफुट पर है क्योंकि उसके नेताओं ने ही भगवा आतंकवाद की बात कही थी। भाजपा और हिंदूवादी संगठन फैसले को सनातन, धर्म और भगवा की जीत बता रहे हैं जबकि कांग्रेस बैकफुट पर है।

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