राज-काज: इस खबर ने उड़ा दी मंत्रियों, विधायकों की नींद….

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राज-काज: इस खबर ने उड़ा दी मंत्रियों, विधायकों की नींद….

MP Budget News

– अचानक फैली एक खबर ने मंत्रिमंडल सदस्यों और विधायकों की नींद उड़ा कर रख दी है। खबर है मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव अपने मंत्रिमंडल में शीघ्र संभावित फेरबदल करने वाले है। बताया गया है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की घोषणा के बाद मंत्रिमंडल में फेरबदल किया जाएगा। धड़कन इसलिए भी बढ़ी है क्योंकि सूचना मंत्रिमंडल के विस्तार नहीं, फेरबदल की है। कहा गया है कि इसमें मौजूदा मंत्रियों का प्रदर्शन देखा जाएगा। इसके आधार पर कुछ को घर बैठाया जा सकता है और क्षेत्रीय, जातिगत संतुलन साधते हुए अन्य को मौका दिया जा सकता है। कुछ वरिष्ठ और कुछ नए विधायकों की लाटरी खुल सकती है। प्रारंभ से कुछ मंत्रियों का परफारमेंस कमजोर रहा है। कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल अमरवाड़ा से विधायक कमलेश शाह शुरू से दौड़ में है। एक अन्य दलबदलू राम निवास रावत के इस्तीफे के बाद राज्य मंत्रिमंडल में फिलहाल 31 मंत्री हैं। 4 मंत्रियों की जगह खाली है। वरिष्ठों में मंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे हैं 9 बार के विधायक गोपाल भार्गव। इनके अलावा पूर्व मंत्रियों भूपेंद्र सिंह, जयंत मलैया, बृजेंद्र प्रताप सिंह, हरिशंकर खटीक जैसों के नाम चर्चा में हैं। सभी मंत्री बनने के लिए अपने संपर्कों के जरिए प्रयासरत हैं। जब भी मुख्यमंत्री डॉ यादव दिल्ली का दौरा करते हैं, मंत्रियों, विधायकों की धड़कन बढ़ जाती है। हालांकि नेतृत्व इस मसले पर भी चौंका सकता है।

* फिर तो ‘भगवान’ ही हुए लोकतंत्र विरोधी….!*

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– भाजपा में कई नेता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की राह पर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जन्म को लेकर एक टिप्पणी काफी चर्चा में रही थी। विपक्ष इसे लेकर अब भी यदा-कदा चुटकी ले लेता है। इसके बाद अभिनेत्री और भाजपा की बड़बाेली सांसद कंगना रानाैत ने मोदी जी को अवतार कह दिया। इंदौर की एक भाजपा विधायक ऊषा ठाकुर इन सबसे चार-पांच कदम आगे निकल गईं। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि उनकी भगवान से सीधे बात होती है। ऊषा ने कहा कि एक बात डायरी में लिख लीजिए। यदि भाजपा को वोट न दिया और हजार-दो हजार रुपए अथवा साड़ी आदि लेकिर लोकतंत्र को बेचा। अपना वोट किसी और को दे दिया तो पक्का मान लीजिए, अगले जन्म में आप ऊंट, भेड़, बकरी, कुत्ता और बिल्ली बनोगे। है न हैरतअंगेज दावा। पहले भगवान से सीधी बात और फिर भाजपा को वोट न दिया तो अजीबोगरीब भविष्यवाणी। उनका मतलब साफ है कि भगवान चाहते हैं कि सभी लोग भाजपा को वोट दें। नहीं देते हैं तो लोकतंत्र को बेच रहे हैं। इसलिए भगवान का प्रकोप सहने के लिए तैयार रहें। इसका अर्थ यह हुआ कि भगवान का ही लोकतंत्र में भरोसा नहीं है, क्योंकि लोकतंत्र में पक्ष-विपक्ष दोनों होते हैं। भगवान के डर से विपक्ष को वोट ही नहीं मिलेंगे तो काहे का लोकतंत्र?

*‘महाराणा प्रताप’ को लेकर भी ‘सिर-फुटौव्वल’….*

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– क्षत्रिय समाज अभी औंरगजेब और साणा सांगा विवाद के कारण राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में था, अब मप्र में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप को लेकर क्षत्रियों में ही सिर-फुटौव्वल है। बुंदेलखंड के सागर संभागीय मुख्यालय में महाराणा प्रताप की प्रतिमा स्थापित करने को लेकर समाज एकजुट नहीं है। आमने-सामने हैं पुराने प्रतिद्वंद्वी भाजपा के दो राजपूत नेता भूपेंद्र सिंह-गोविंद सिंह राजपूत और इनके समर्थक। इनके विवाद से पहले भाजपा परेशान थी, अब समाज की किरकिरी हो रही है। विवाद की वजह है प्रतिमा लगाने के लिए स्थान का चयन। भूपेंद्र सिंह गुट ने नगर निगम से प्रस्ताव पास करा लिया है कि स्टेडियम के सामने मूर्ति लगाई जाए और स्टेडियम का नाम भी महाराणा प्रताप के नाम पर रखा जाए, जबकि गोविंद गुट आईजी बंगले के सामने मूर्ति लगाने पर अड़ा हुआ है। समाज में दोनों गुटों के पदाधिकारी हैं। भूपेंद्र के भतीजे लखन सिंह समाज के अध्यक्ष हैं जबकि गोविंद गुट की तरफ से पार्टी के पूर्व जिला अध्यक्ष हरिराम सिंह वकील कार्यकारी अध्यक्ष। दोनों गुटाें में समझौता कराने के उद्देश्य से समाज ने 35 लोगों की एक समिति बनाई है। कृष्ण सिंह राजपूत को इसका संयोजक बनाया गया है लेकिन कमेटी दोनों के रसूख के सामने असहाय दिख रही है। दोनों के विवाद से अब महाराणा प्रताप की प्रतिमा की स्थापना खटाई में है।

*… तो लोगों के दिल में राज करेंगे ‘मोहन’….*

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– मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की एक योजना सफल रही तो वे गरीबों, आदिवासियों और मध्यम वर्ग के दिलों पर राज कर सकते हैं। लोगों को इसका बेसब्री से इंतजार है। दरअसल, किसी भी सरकार का मुख्य दायित्व है ‘लोक कल्याणकारी राज’ की स्थापना। गरीबों, पिछड़ों और मध्यम वर्ग को सस्ती और सुलभ परिवहन सेवा इसके तहत ही आती है। प्रदेश में मप्र राज्य सड़क परिवहन निगम के जरिए लोगों को यह सुविधा मिलती थी। घाटे में बता कर तत्कालीन परिवहन मंत्री उमा शंकर गुप्ता के कार्यकाल में इस सेवा को बंद कर दिया गया। मुख्यमंत्री स्व बाबूलाल गाैर थे। गौर मजदूर से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे थे, फिर भी उन्होंने दूरदराज तक परिवहन उपलब्ध कराने वाले इस निगम को क्यो बंद कर दिया, समझ से परे है। इसका सबसे ज्यादा लाभ गरीबों, मजदूरों को ही मिल रहा था। निगम बंद किया गया तब इसे 7 सौ करोड़ से ज्यादा के घाटे में बताया गया था, जबकि निगम के पास अरबों की चल-अचल संपत्ति थी। सरकारी बसों की यह सेवा उप्र के साथ कई अन्य राज्यों में सफलता पूर्वक चल रही है। सरकारें हजारों करोड़ रुपए हर माह रेवड़ी के रूप में महिलाओं व अन्य वर्गों में बांट देते हैं, लेकिन वे गरीबों, पिछड़ों के लाभ वाली परिवहन सेवा को बंद कर बैठे। भला हो, मुख्यमंत्री डॉ यादव का, जिन्होंने इस परिवहन सेवा को फिर चालू करने का बीड़ा उठाया है।

*‘जांच की आंच’ से बिगड़ेगी ‘राजनीतिक सेहत’….!*

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– कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के राजनीतिक सितारे पिछले कुछ समय से गर्दिश में हैं। वक्फ कानून का विरोध करने पर उन्हें गद्दार तक कह दिया गया। उनकी जुबान फिसल गई और कहते सुनाई पड़ गए कि उन्होंने दंगे कराने की कोशिश की। इन्हें लेकर दिग्विजय के भाजपा के साथ आरोप-प्रत्यारोप जारी थे, इस बीच 28 साल पुराना सरला मिश्रा कांड खुल गया। कांग्रेस नेत्री सरला की मौत दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री रहते हुई थी। वे अपने सरकारी आवास में जली थीं और दिल्ली के एक अस्पताल में उनकी मौत हुई थी। प्रारंभ से सरला मिश्रा की मौत को लेकर दिग्विजय सिंह और उनके भाई लक्ष्मण सिंह पर आरोप लग रहे हैं। मामले की सीबीआई जांच की घोषणा भी हुई थी लेकिन नोटिफिकेशन ही जारी नहीं हो सका। बाद में पुलिस ने वर्ष 2000 में आत्महत्या मान कर जांच की फाइल बंद कर दी थी। आधार सरला के मृत्यु पूर्व बयान को बनाया गया था। सरला के भाई अनुराग मिश्रा इससे संतुष्ट नहीं थे। वर्ष 2019 में जब कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी तब फाइल दोबारा खुली और अब कोर्ट ने जांच को संतोषजनक न मानते हुए फिर जांच के आदेश दे दिए। इसे लेकर दिग्विजय का चिंतित होना स्वाभाविक है, क्योंकि भाजपा से उनकी मोहब्बत जगजाहिर है। भले दिग्विजय फिर पाक साफ होकर बाहर निकलें, लेकिन वे मुसीबत में तो घिर सकते हैं।

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