करोड़ों की बड़ी बिल्डिंग,मशीनें पर ब्यूरोक्रेसी की संवेदन शून्यता से विशेषज्ञ चिकित्सकों के अभाव में सरकारी अस्पताल बना मजाक

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*करोड़ों की बड़ी बिल्डिंग,मशीनें पर ब्यूरोक्रेसी की संवेदन शून्यता से विशेषज्ञ चिकित्सकों के अभाव में सरकारी अस्पताल बना मजाक*

*इटारसी से वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकांत अग्रवाल की विशेष रिपोर्ट*

इटारसी। नर्मदापुरम जिले के दूसरे सबसे बड़े डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी शासकीय अस्पताल,इटारसी में करोड़ों की एक बड़े क्षेत्रफल में बनी विराट बिल्डिंग, करोड़ों की मशीनें सब कुछ होने पर भी विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी विगत कई सालों से मरीजों के लिए जानलेवा बन रही है। यहां कई सालों से सर्जन, एमडी मेडीसिन, कार्डियोलाजिस्ट, सर्जन, नाक, कान गला, शिशु रोग आदि कई प्रमुख बीमारियों के विशेषज्ञ समेत एमबीबीएस श्रेणी के भी 5 से ज्यादा चिकित्सकों के पद खाली पड़े हुए हैं। स्वास्थ्य विभाग ने करोड़ों का बड़ा बजट देकर यहां मेडिकल कालेज जैसी भव्य इमारत तो बनवा दी, लेकिन मरीजों का इलाज और देखभाल करने वाला मेडिकल स्टाफ बहुत सीमित ही रखा। कई सालों पहले यहां मंजूर स्टाफ में स्वास्थ्य संचालनालय ने कोई बढ़ोतरी नहीं की। लेकिन सेवानिवृत्ति, तबादले में बिदा होते गए डॉक्टर्स स्टाफ की वजह से यहां विशेषज्ञ चिकित्सकों की भारी कमी हो गई है। संविदा नियुक्ति के जरिए या आन काल बेसिस पर प्राइवेट विशेषज्ञ चिकित्सक,सर्जन, इस सरकारी अस्पताल में सेवाएं देना भी चाहते हैं पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन व प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्रालय के संवेदना शून्य अधिकारियों की इसमें प्रायः कभी कोई रुचि नहीं रहती। यहां तक कि इमरजेंसी में आन काल किसी एम डी या किसी सर्जन को रोगी कल्याण समिति अपने व्यय से भी किसी गरीब मरीज को राहत देने अस्पताल बुलाना चाहे तो उसकी अनुमति भी कम से कम इटारसी अस्पताल के लिए तो भोपाल से अब तक कभी नहीं मिली।

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अस्पताल से जुड़े जानकर सूत्रों के अनुसार स्थानीय विधायक डॉ. शर्मा चूंकि स्वयं एक चिकित्सक भी हैं लिहाजा इस समस्या की गंभीरता को लेकर विगत कई सालों से लगातार बार बार संबंधित अधिकारियों से मिलकर इस संबंध में चर्चा , निवेदन भी कर चुके हैं पर ब्यूरोक्रेसी से उनके अनुभव इस मामले में सुखद नहीं रहे हैं। हालांकि स्वयं वे इस संबंध में कुछ भी कहने से परहेज करते दिखे। अलबत्ता उन्होंने यह जानकारी जरूर दी कि विगत समय में वे एक बार जिला अस्पताल में एक डी. एम. कार्डियोलॉजिस्ट जैसे बड़े सुपर स्पेशलिस्ट की संविदा नियुक्ति कराने में सफल तो रहे पर कुछ माह बाद ही भोपाल से उनकी ये सेवाएं बंद कर दी गई। करीब सवा लाख की आबादी वाले शहर एवं आदिवासी विकासखंड केसला की 52 ग्राम पंचायतों की सेहत का भार इसी अस्पताल पर है। जिले के दूसरे बड़े सरकारी अस्पताल डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी अस्पताल में चिकित्सकों की भारी कमी से गंभीर मरीजों को तो इलाज ही नहीं मिल रहा है। मिलता है तो हर बार जिला अस्पताल या भोपाल अस्पताल में रिफर करने का पर्चा। टीकाकरण, कुष्ठ, टीबी रोग उन्मूलन समेत विभाग की सारी योजनाओं का क्रियान्वयन इसी अस्पताल से होता है। आशा- स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की गतिविधियों का संचालन भी इसी अस्पताल से होता है। कुछ साल पहले यहां पदस्थ हुए कई विशेषज्ञ चिकित्सक रिटायर होने के बाद शहर से ही बिदा हो रहे हैं। पिछले छह माह में यहां पदस्थ रहे मेडिकल आफिसर के कई चिकित्सक प्रतिनियुक्ति, मेडिकल लीव, एजुकेशन लीव एवं संचालनालय में पोस्टिंग लेकर यहां से रवाना हो चुके हैं, जबकि अस्पताल पर मरीजों का दबाव बढ़ता जा रहा है।

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राष्ट्रीय राजमार्ग 46, देश के बड़े रेल जंक्शन, सीपीई, आयुध निर्माणी, इंडियन आइल डिपो समेत कुछ अन्य संवेदनशील इकाइयां होने से यहां रोजाना हादसे होते हैं। सड़क दुर्घटनाओं,ट्रेनों से गिरने या सफर के दौरान बीमार पड़ने वाले यात्रियों की संख्या ज्यादा रहती है। कई बार गंभीर हादसे होने पर अस्पताल में मौजूदा स्टाफ पर मरीजों के इलाज का बोझ बढ़ जाता है। यदि किसी मरीज को हार्ट अटैक आ जाए और रात में उसे किसी हार्ट विशेषज्ञ की जरूरत पड़े तो अस्पताल में प्राथमिक इलाज देने वाला एमडी डाक्टर ही नहीं है, इसी तरह सर्जन का पद भी कई सालों से रिक्त पड़ा हुआ है। चिकित्सकों के अलावा नर्सिंग स्टाफ, वार्डबाय, ड्रेसर, स्वीपर के पद भी रिक्त पड़े हुए हैं, इससे अस्पताल में मरीजों को बेहतर इलाज की सुविधा नहीं मिल पाती। शिशु रोग विशेषज्ञ डा. आरके चौधरी के अधीक्षक बनने के बाद एक पद और रिक्त हो गया है। हालांकि अभी यहां संविदा सेवा में शिशु रोग विशेषज्ञ डा.विवेक चरण दुबे व डा. अभिषेक अग्रवाल सेवाएं दे रहे हैं। नाक, कान एवं गला रोग विशेषज्ञ का पद साल 1998 से खाली पड़ा हुआ है। डा. ए के मंगतानी के बाद यहां इस पद पर दूसरी नियुक्ति नहीं हो सकी।सालों से कोई नेत्र रोग विशेषज्ञ नहीं है। आक्सीजन प्लांट का काम भी अब तक अधूरा है। बड़ों या बच्चों का वेंटीलेटर नहीं होने का रौना, रोना तो बेमतलब ही होगा। स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी जब नवनिर्मित भवन का लोकार्पण करने आए थे, तब विधायक डा. सीतासरन शर्मा ने उनके समक्ष यहां रिक्त पड़े पदों पर नियुक्ति करने की मांग सार्वजनिक रूप से काफी साफगोई से उठाई थी। इससे पहले भी डा. शर्मा विगत कई सालों से लगातार चिकित्सकों के रिक्त पदों का मामला भोपाल स्तर पर उठाते रहे हैं, लेकिन पूरे प्रदेश में शासकीय चिकित्सकों की कमी का असर यहाँ सर्वाधिक देखा जा रहा है। इस वजह से लोग निजी अस्पतालों के सहारे हैं। वहीं आर्थिक रूप से कमजोर परिवार कई सालों से आज भी सरकारी इलाज और योजनाओं के बाद सिर्फ भगवान भरोसे हैं। क्षेत्रीय विधायक अपने स्तर से, शहर के कुछ उद्योगपति सांवरिया ग्रुप, हेमंत शुक्ला,कैलाश शर्मा,गुड्डन पांडे परिवार, जितेंद्र ओझा, मिहानी परिवार, शहर के कुछ जागरूक नागरिक, समाजसेवी व स्वयंसेवी संस्थाएं , श्री अग्रसेन फ्री डिस्पेंसरी, श्री गुरुनानक फ्री डिस्पेंसरी, सरकारी अस्पताल में सबकी मदद करने सदैव तत्पर रहने वाले समाजसेवी संजय मिहानी जैसे लोग जितना संभव होता है,कुछ सेवाएं जैसे रक्तदान, महंगी दवाएं,आर्थिक मदद व अन्य मदद करते हैं,पर यह कभी भी पर्याप्त नहीं होती। शहर के वाशिंदों को व स्वयं सरकारी अस्पताल प्रबंधन को भी, सरकारी अस्पताल कैम्पस में ही स्थित पर विगत कुछ सालों से बंद पड़े राठी चेरेटेबल हॉस्पिटल के चालू हो जाने से काफी राहत मिल सकती है। सांवरिया ग्रुप के पुरानी इटारसी में जल्द प्रारंभ होने जा रहे चेरिटेबल हॉस्पिटल का भी शहर को बेसब्री से इंतजार है।

*रोगी कल्याण समिति के माध्यम से नर्सिंग आदि सपोर्टिंग स्टाफ की कुछ नियुक्तियां की गई हैं,पर विशेषज्ञ चिकत्सकों को जितना मानदेय देना होता है,वह देने में समिति सक्षम नहीं होती। फिर यदि समिति जनभागीदारी से ऐसा करना भी चाहती है तो उसकी अनुमति राष्ट्रीय स्वास्थ्य संचालनालय से लेनी होती है। स्वयं संचालनालय चाहे तो ऐसी संविदा नियुक्ति कर सकता है,जिसके लिए मैं विगत कई सालों से प्रयास कर भी रहा हूं।कई बार सक्षम अधिकारियों से भेंट कर उनसे निवेदन भी कर चुका हूं। अब फिर जाऊंगा। इटारसी अस्पताल की यह पीड़ा चिंतनीय है। लगातार किए गए प्रयासों से अस्पताल का नया सर्वसुविधा संपन्न भवन बनाने में तो सफल रहे पर विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी दूर करना अब मेरी प्राथमिकता में है। हाल ही में हमारे तीन चिकित्सकों का प्रमोशन कर उनका तबादला हुआ तब भी मैने अधिकारियों से उनको यहीं रखकर पदोन्नति देने का निवेदन किया था। तब मुझे उनकी जगह अन्य चिकित्सकों को भेजने का आश्वासन दिया गया था,जो अब तक पूरा नहीं हो सका है। मैं लगातार प्रयास करता रहा हूं व करता रहूंगा — डा. सीतासरन शर्मा,विधायक*

*अस्पताल में रिक्त विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी को लेकर लगातार स्वास्थ्य विभाग से पत्राचार किया जा रहा है। पद रिक्त होने से समस्या तो होती है- डा. आर के चौधरी, अधीक्षक डीएसपीएम अस्पताल*