Gravy Demand & Court Verdict : होटल में फ्री ग्रेवी नहीं मिली, तो कस्टमर कोर्ट पहुंचा, फिर जज ने जो फैसला दिया वो हुआ वायरल!

जानिए, जज ने ऐसा क्यों कहा कि रेस्टोरेंट ने कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, 2019 के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं किया!

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Gravy Demand & Court Verdict : होटल में फ्री ग्रेवी नहीं मिली, तो कस्टमर कोर्ट पहुंचा, फिर जज ने जो फैसला दिया वो हुआ वायरल!

Kolencherry (Kerla) : होटल में मुफ्त ग्रेवी न मिलने पर कंज्यूमर कोर्ट पहुंचे एक कस्टमर की शिकायत पर कोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाया, जिसकी अब हर तरफ चर्चा हो रही है। कोर्ट ने इस मामले में कानून के तहत रेस्टोरेंट को ग्रेवी न देने के लिए सजा देने से मना कर दिया है। लोग रेस्टोरेंट और होटल से रसेदार सब्जी आर्डर करने के दौरान, अक्सर एक्स्ट्रा ग्रेवी की डिमांड करते हैं। लेकिन, अगर मेन्यू में रेस्टोरेंट पहले ही यह क्लियर कर दें कि वह खाने में ग्रेवी देगा या नहीं, तो कायदे से कस्टमर चाहे तो बात खत्म कर सकता है। लेकिन केरल से एक ऐसा मामला सामने आया है, जहां रेस्टोरेंट के ग्रेवी देने से मना करने पर ग्राहक कंज्यूमर कोर्ट पहुंच गया।

एक व्यक्ति केरल के एक रेस्टोरेंट में बीफ फ्राई और पोरोटा ऑर्डर के साथ मुफ्त ग्रेवी न मिलने पर एनार्कुलम के जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (DCDRC) पहुंचता है। जहां पूरा मामला सुनने के बाद कोर्ट उसकी याचिका ही खारिज कर देती है। कोर्ट कहती है कि फ्री ग्रेवी देना कोई कानूनी बाध्यता नहीं है और इससे सर्विस में भी कोई कमी नहीं हुई। इसलिए यह कस्टमर के अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, डिस्ट्रिक्ट फोरम प्रेसिडेंट डीबी बीनू और मेंबर रामचंद्रन वी और श्रीविद्या टीएन ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया कि रेस्टोरेंट के फैसले ने कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, 2019 के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं किया है। आयोग ने कहा कि इस मामले में विपक्षी पक्ष की ओर से ग्रेवी देने के लिए कोई संविदात्मक दायित्व-स्पष्ट या निहित-नहीं था। इसलिए पोरोटा और बीफ को परोसने के दौरान ग्रेवी न देना विपक्षी पक्ष संख्या 1 और 2 की ओर से सर्विस में कमी नहीं मानी जा सकती है और इसलिए इसमें कोई लागू करने योग्य उपभोक्ता संबंध नहीं है।

होटल की ग्रेवी पॉलिसी की शिकायत

पेशे से पत्रकार शिबू एस वायलाकाथ, पिछले साल नवंबर 2024 में कोलेनचेरी स्थित ‘द पर्शियन टेबल’ नाम के रेस्टोरेंट में गए थे। बीफ फ्राई और पोरोटा का ऑर्डर देने के बाद, उन्होंने डिश के साथ ग्रेवी भी मांगी, लेकिन रेस्टोरेंट ने अपनी इंटर्नल पॉलिसी का हवाला देते हुए ग्रेवी देने की रिक्वेस्ट को मना कर दिया। इनकार से नाखुश कस्टमर ने शुरू में कुन्नाथुनाडु तालुक सप्लाई अधिकारी से बात की। इसके बाद जब सप्लाई और फूड सिक्योरिटी अधिकारियों ने जब संयुक्त जांच की तो यह पाया गया कि रेस्टोरेंट ने अपने मेन्यू में ग्रेवी शामिल नहीं की थी।

एक लाख का हर्जाना मांगा

सप्लाई और फूड सिक्योरिटी अधिकारियों की जांच का नतीजा आने के बाद कस्टमर ने भावनात्मक संकट और मानसिक पीड़ा के लिए 1 लाख और कानूनी खर्चे के लिए 10 हजार रुपये और रेस्टोरेंट के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की डिमांड करते हुए कंज्यूमर फोरम में शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने कहा कि ग्रेवी देने से इनकार करना एक प्रतिबंधात्मक व्यापार प्रथा और सर्विस में कमी के बराबर है। हालांकि, उनकी शिकायत से असहमति जताते हुए फोरम ने कहा कि मामला भोजन की क्वालिटी, मात्रा या सेफ्टी से जुड़ा नहीं था।

मेनू या बिल में ग्रेवी का उल्लेख नहीं

आयोग ने कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 2(11) पर भरोसा करते हुए माना कि चूंकि मेनू या बिल में ग्रेवी का कोई उल्लेख नहीं था, इसलिए रेस्तरां ने न तो गलत बयान दिया और न ही किसी तरह से कस्टमर को धोखा दिया। इस मामले में, विपक्षी पक्ष द्वारा किए गए किसी भी गलत बयान, झूठे वादे या भ्रामक व्यापार व्यवहार का कोई सबूत नहीं है। न तो मेनू और न बिल से पता चलता है कि ऑर्डर की गई डिश के साथ ग्रेवी शामिल थी या वादा किया गया था।, फोरम ने शिकायत को खारिज कर दिया और पुष्टि की कि मुफ्त ग्रेवी की अनुपस्थिति किसी भी उपभोक्ता अधिकार का उल्लंघन नहीं है।