Guna Tragic Accident : ये मुख्यमंत्री की सख्ती ही नहीं, ब्यूरोक्रेसी को इशारा भी!  

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Guna Tragic Accident : ये मुख्यमंत्री की सख्ती ही नहीं, ब्यूरोक्रेसी को इशारा भी!  

 

हेमंत पाल की त्वरित टिप्पणी

 

गुना बस हादसे के बाद मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने जिस तरह की सख्ती दिखाई, वो अप्रत्याशित कही जा रही है। वास्तव में ऐसी सख्ती दिखाने की जरुरत भी थी। उनकी इस कार्यवाही की तारीफ की जा रही है। लेकिन, यह जरुरी भी था, जो अभी तक कभी देखने को नहीं मिला। घटना की गंभीरता के नजरिए से भी और मुख्यमंत्री के भविष्य के तेवर दिखाने के लिए भी। डॉ मोहन यादव को लेकर आम लोगों का और प्रशासनिक सोच ऐसा नहीं बना था। उनसे इस तरह की सख्ती की उम्मीद नहीं की गई थी, जो उन्होंने दिखाई। लेकिन, इस एक घटना को लेकर उन्होंने मंत्रालय से लेकर नगरपालिका तक के 6 बड़े अफसरों को जिस तरह नाप दिया, वो प्रशासनिक व्यवस्था के लिए संदेश है कि उन्हें कमजोर मुख्यमंत्री न समझा जाए। बस हादसे पर कलेक्टर, एसपी, आरटीओ के साथ ट्रांसपोर्ट कमिश्नर और विभाग के प्रमुख सचिव तक को हटाया जाना सामान्य बात नहीं है। किंतु, उनकी एक असामान्य कार्यवाही ने उन्हें आज हीरो बना दिया।

जब से डॉ मोहन यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, उनकी कामकाज की शैली का स्पष्ट इशारा नहीं मिला था। शिवराज सरकार में वे उच्च शिक्षा मंत्री रहे, जो एकेडमिक जैसा विभाग हैं, जहां के फैसलों का जनता से ज्यादा वास्ता भी नहीं पड़ता। लेकिन, जब से वे मुख्यमंत्री बने, कोई ऐसे फैसले भी सामने नहीं आए, जो उनकी सख्ती का संकेत दें। गुना की इस घटना ने उन्हें मौका दिया, जिसके जरिए उन्होंने बता दिया कि मुझे हल्के में नहीं लिया जाए। वे कड़े प्रशासनिक फैसले लेने में भी पीछे नहीं हटेंगे। ये बात भी है, कि सरकार बदलने के बाद ज्यादातर अफसरों के तबादले की बात की जा रही थी, पर जिस तरह उन्होंने 6 अफसरों को हटाया, उसने बता दिया कि वे किसी के प्रभाव में काम नहीं करेंगे। वे सिर्फ सख्ती की बातें ही नहीं करेंगे, सख्ती भी ऐसी करेंगे जो दिखाई देगी।

सबसे पहले तो उन्होंने दो बड़ी मीटिंगों को कैंसिल करके घटना स्थल पर जाने का फैसला किया, उससे उनकी संवेदनशीलता का इशारा मिलता है। वे वहां गए और घटना का जायजा लिया। जो जानकारी उन्हें मिली, उससे निष्कर्ष निकला कि बस अवैध रूप से चल रही थी यानी आरटीओ दोषी, समय पर फायर ब्रिगेड नहीं पहुंची इसके पीछे नगर पालिका के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीएमओ) की लापरवाही है। दोनों को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर दिया। देखा जाए तो ये सामान्य बात थी और समझा गया कि बात यहीं ख़त्म हो गई। लेकिन, भोपाल पहुंचकर उन्होंने गुना कलेक्टर और वहां एसपी को हटाने के आदेश दिए। गुना कलेक्टर तरुण राठी का मंत्रालय ट्रांसफर कर अपर सचिव बनाया दिया गया। एसपी विजय कुमार खत्री को पुलिस मुख्यालय भेज दिया।

सबसे बड़ी कार्यवाही तो ट्रांसपोर्ट कमिश्नर संजय झा विभाग के प्रमुख सचिव को हटाने को लेकर की गई। इस घटना से मुख्यमंत्री ने मामले के सारे पहलुओं को समझ लिया कि बात सिर्फ दुर्घटना के बाद समय पर फायर ब्रिगेड भेजने तक सीमित नहीं है। बस बिना परमिट और फिटनेस के चल रही थी, इसका सीधा सा मतलब है कि आरटीओ के अलावा ऊपर तक का अमला इसमें शामिल है। एक और गौर करने वाली बात यह भी है कि बस का मालिक भाजपा का पदाधिकारी बताया जा रहा है, उस पर भी कार्रवाई की बात की गई। डॉ मोहन यादव ने मामले की जांच के लिए समिति का गठन किया है। इसका संकेत यह भी समझा जाना चाहिए कि अभी आग ठंडी नहीं हुई!

हादसे की जांच के आदेश के बाद एक समिति गठित हो गई, जो तीन दिन में रिपोर्ट सौंपेगी। अपर कलेक्टर मुकेश कुमार शर्मा को समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। उनके नेतृत्व वाली समिति में गुना एसडीएम दिनेश सावले, ग्वालियर से संभागीय उप परिवहन आयुक्त अरुण कुमार सिंह और गुना के विद्युत सुरक्षा सहायक यंत्री प्राणसिंह राय भी इसमें शामिल हैं। यह समिति सारे पहलुओं की जांच करेगी। जिनमें दुर्घटना के कारण, दुर्घटनाग्रस्त बस और डंपर को मिली अनुमतियां, बस में आग लगने के कारण, जिम्मेदार विभागों की भूमिका की जांच शामिल है। मुख्यमंत्री की इस सख्ती को इस तरह भी समझा जाना चाहिए कि वे किसी के आभामंडल की गिरफ्त में नहीं है।

ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट को भी दोषियों पर कठोर कार्रवाई करने को कहा गया। राज्य के सभी कलेक्टर्स और पुलिस अधीक्षकों को बिना परमिट और फिटनेस के चल रहे वाहनों पर कार्यवाही के निर्देश दिए गए। यह भी कहा कि आटीओ के सभी बड़े अफसरों की भी जिम्मेदारी तय कर सख्त कार्यवाही की जाए। ऐसी घटनाओं की पुनरावृति न हो, इस बात का ध्यान रखा जाए। यह बेहद संवेदनशील मामला है। सभी जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध राज्य सरकार सख्त कार्रवाई करेगी। दरअसल, ये पूरा घटनाक्रम ब्यूरोक्रेसी को मुख्यमंत्री के तेवर दिखाने के साथ अगले पांच साल के लिए भी एक संकेत है कि पहले वाली सरकार में जो हुआ वो गुजर गया। अब वो सब नहीं चलेगा जो अभी तक होता आया है।

 

ट्रांसपोर्ट एक्सपर्ट का नजरिया

प्रदेश के पूर्व ट्रांसपोर्ट आयुक्त एनके त्रिपाठी ने इस घटना पर अपनी टिप्पणी में बताया कि गुना बस हादसे में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने तत्काल परिवहन आयुक्त और प्रमुख सचिव को हटाकर अपने तेवर स्पष्ट कर दिए। उन्होंने यह संदेश दिया कि वरिष्ठतम अधिकारियों को अपने दायित्वों को गंभीरता से लेना होगा। गुना के एसपी और कलेक्टर को हटाया जाना तथा आरटीओ तथा सीएमओ को निलंबित करना इसी श्रृंखला में है। मध्य प्रदेश सहित भारत वर्ष में सड़क दुर्घटनाओं का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। जबकि, पूरे विश्व में सड़क दुर्घटनाएं घट रही है।

अधिकारियों के विरुद्ध की गई इस कार्रवाई से सड़क दुर्घटनाओं पर कोई प्रभाव पड़ेगा, इस पर मुझे बहुत संदेह है। सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के लिए बहुत श्रम साध्य, तकनीक से पूर्ण तथा संसाधन की आवश्यकता है। राज्य सरकार को राजमार्गों और शहरों के अंदर होने वाली सड़क दुर्घटनाओं को ज़्यादा गंभीरता से लेते हुए इन्हें कम करने के लिए लिए ठोस योजना और क़दम उठाने होंगे।

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हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

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