हर व्यक्ति को पतन से उबारो गुरु…
गुरु के मार्गदर्शन के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होता और बिना ज्ञान के जीवन में कोई प्राप्ति नहीं होती। गुरु पूर्णिमा जीवन को दिशा दिखाने वाले गुरु को नमन करने का पर्व है। गुरु ही गोविंद है। गुरु गीता (श्लोक 17) गुरु की सही ढंग से व्याख्या करती है। “अन्धकार हटाने वाला” (गु, “अन्धकार” तथा रु, “हटाने वाला”)। एक सच्चा, ईश्वर प्राप्त गुरु वह होता है, जिसने आत्मनियंत्रण की उपलब्धि करने में सर्वव्यापी ब्रह्म के साथ एकरूपता प्राप्त कर ली है। ऐसा व्यक्ति विशेष रूप से किसी साधक को उसकी पूर्णता की ओर आन्तरिक यात्रा में सहायता प्रदान करने में समर्थ होता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो शिष्य को पतन की राह से दूर कर उन्नयन के मार्ग पर ले जाने वाला गुरु ही है। गुरु पूर्णिमा उत्सव को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जोड़कर भी देखा जाता है। आरएसएस के छह प्रमुख उत्सवों में से एक गुरु पूर्णिमा का उत्सव सभी स्वयंसेवक उत्साह के साथ मनाते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के समय भगवा ध्वज को गुरु के रूप में प्रतिष्ठित किया। इसके पीछे मूल भाव यह था कि व्यक्ति पतित हो सकता है पर विचार और पावन प्रतीक नहीं। विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन गुरु रूप में इसी भगवा ध्वज को नमन करता है। गुरु पूर्णिमा के दिन संघ के स्वयंसेवक गुरु दक्षिणा के रूप में इसी भगवा ध्वज के समक्ष राष्ट्र के प्रति अपना समर्पण व श्रद्धा निवेदित करते हैं। हेडगेवार का यह डर सच साबित हो रहा है। व्यक्ति का पतन इतना हो चुका है कि देश को देशवासी ही लूट रहे हैं। भ्रष्ट आचरण को सदाचरण के रैपर में लपेटा जा रहा है। माता-पिता वृद्धाश्रमों में रहने को अभिशप्त हो रहे हैं। पतित हो चुके ऐसे हर व्यक्ति को पतन से उबारो गुरु। आप तो ईश्वर से भी श्रेष्ठ हैं।
आरएसएस में भगवा ध्वज को गुरु की मान्यता मिलने की अलग ही कहानी है। यह ध्वज तपोमय व ज्ञाननिष्ठ भारतीय संस्कृति का सर्वाधिक सशक्त व पुरातन प्रतीक है। उगते हुये सूर्य के समान इसका भगवा रंग भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिक ऊर्जा, पराक्रमी परंपरा एवं विजय भाव का सर्वश्रेष्ठ प्रतीक है। संघ ने उसी परम पवित्र भगवा ध्वज को गुरु के प्रतीक रूप में स्वीकार किया है जो कि हजारों वर्षों से राष्ट्र और धर्म का ध्वज था। माता-पिता हमारे जीवन के प्रथम गुरु होते हैं। प्राचीनकाल में शिक्षा प्राप्ति के लिए गुरुकुलों की व्यवस्था थी। आज उनके स्थान पर स्कूल-कॉलेज हैं। इस वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सभी शाखाओं पर गुरु पूर्णिमा मनाने की तैयारी है। पूजन के समय सभी स्वयंसेवक भगवा ध्वज की पूजा करने के साथ अपनी सामर्थ्य व इच्छा के अनुसार राशि समर्पित करते हैं। उसी राशि से संगठन का वर्ष भर का खर्च चलता है।
तो मध्यप्रदेश सरकार ने पहली बार महाविद्यालयों में गुरु पूर्णिमा मनाने का फैसला किया है और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव खुद भी इंदौर जाकर गुरु पूर्णिमा उत्सव में शामिल होंगे। तो संघ हो या संगठन या सरकार, सभी सद्मार्ग पर चलकर राष्ट्र की सेवा करें, बस यही कामना है…।