हरदा में विस्फोट: पर्यावरणविदों ने NGT से की मांग, लोगों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए अनछुए पहलू पर डाले प्रकाश

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हरदा में विस्फोट: पर्यावरणविदों ने NGT से की मांग, लोगों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए अनछुए पहलू पर डाले प्रकाश

भोपाल। हरदा में पटाखा फैक्ट्री में हुए विस्फोट की गूंज सड़क से लेकर सदन तक गूंजती रही। इस पूरी गूंज में दो ही बातों पर सबसे ज्यादा फोकस किया गया पहला लोगों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाए दूसरा प्रदेश में दुबारा इस तरह की घटना नहीं हो इसकों लेकर पुख्ता इंतजाम किया जाए। वहीं प्रदेश के पर्यावरणविदों का मानना है कि इस विस्फोट का मानवीय जीवन पर लंबे समय तक असर पड़ेगा। क्योंकि खतरनाक विस्फोट में सल्फरमोनो आक्साइड, कार्बनमानो आक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड सहित अन्य जहरीली गैसों के अलावा भारी धातुए भी वायुमंडल में फैल गई हैं। जिससे हरदा में वायु, ध्वनि प्रदूषण व्यापक स्तर पर हुआ जिसका लंबे समय तक मानवीय जीवन पर प्रभाव दिखाई देगा। पर्यावरणविद सुभाष चंद्र पांडे ने एनजीटी से मांग किया है कि पर्यावरणविदों का एक विशेष दल हरदा भेजकर इस पूरे मामले की जांच कराए और सरकार को पूरी रिपोर्ट पेश करें। जिससे राज्य सरकार वहां के लोगों के जीवन को देखते हुए स्वास्थ्य व्यवस्था में व्यापक सुधार करें। गौरतलब है कि हरदा जिले में एक दशक से खेतों में भारी मात्रा में पटाखा बनाने का काम- काज चल रहा था। जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति कमजोर होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। रासायनिक गैस और भारी मेटल का पटाखा बनाने में प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया जाता था। पर्यावरणविदों की माने तो पटाखा क्षेत्र से दस किमी के दायरे तक मिट्टी की उर्वरा शक्ति प्रभावित होने से इंकार नहीं किया जा सकता। इन खेतों में होने वाले अनाज और सब्जियों की पैदावार पूरी तरह से दूषित रहती है। जो लोगों के स्वास्थ्य पर लंबे समय तक अपना प्रभाव डालती रहेगी।

अजनाल नदी हुई प्रभावित-
पर्यावरण पर लंबे समय तक काम करने वाले सुभाषचंद्र पांडे की माने तो हरदा में हुए विस्फोट के चलते और रासायनिक कचरा के चलते अजनाल नदी का पानी पूरी तरह से दूषित होने की आशंका व्यक्त की है। हरदा निवासी पेयजल के तौर पर अजनाल नदी का पानी ही प्रयोग में करते है। दस साल से नदी में रासायनिक कचरा प्रवाहित हो रहा है। अगर समय रहते हुए राज्य सरकार इन विषयों पर ध्यान नहीं देती है तो आने वाले समय में हरदा में जो पीढ़ी पैदा होगी वह किसी न किसी असाध्य बीमारी की शिकार अवश्य होगी। पर्यावरणविद भोपाल गैस कांड का हवाला देते हुए कहते है कि इस घटना के चालीस साल के बाद भी आज भी इसका प्रभाव देखने को मिलता है।