Here, Instead Of Fire, Water is Witness For Phere. अग्नि के बजाय पानी को साक्षी मानकर लेते है फेरे 

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Here, Instead Of Fire, Water is Witness For Phere. अग्नि के बजाय पानी को साक्षी मानकर लेते है फेरे 

अनिल तंवर की विशेष रिपोर्ट

छत्तीसगढ के बस्तर के धुरवा आदिवासी समाज में अग्नि के बजाय पानी को साक्षी मानकर शादी की जाती है . आदिकाल से आदिवासी समाज प्रकृति की पूजा करते आए है, धुरवा समाज में पानी का काफी महत्व है। धुरवा आदिवासी पानी को ईश्वर मानते है, यही वजह है यह समाज शादी के साथ-साथ अन्य शुभ कार्यों में भी पानी को ही साक्षी मानकर अपना काम करते हैं .

बस्तर के मनोज शर्मा बताते है कि — धुरवा आदिवासियों की पुरानी पीढ़ी कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के पास रहती थी, वे कांगेर नदी के जल का प्रयोग करते थे . मान्यताओं के अनुसार, सभी शुभ कार्यों में पानी और पेड़ की पूजा जरुर करते हैं . यहां की शादियों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां अग्नि की जगह पानी का प्रयोग किया जाता है और पानी को साक्षी मानकर शादी की रस्में पूरी की जाती है . वहीं दूसरी विशेषता यह है कि, इस समाज में सिर्फ दूल्हा-दुल्हन ही नहीं बल्कि परिवार व गांव के सभी लोग फेरे लेते हैं .

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यह अनोखी प्रथा भारत के एक राज्य छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में होती है. यहां के आदिवासी समाज द्वारा एक अनोखी परंपरा से शादी निभाई जाती है. दरअसल, आदिवासी हमेशा से जल, जंगल और जमीन की पूजा करते रहे हैं. हालांकि, ये आदिवासी पानी को साक्षी मान कर शादी इसलिए करते हैं क्योंकि ये शादी के नाम होने वाली फिजूलखर्ची से बचना चाहते हैं. इन आदिवासियों की यह परंपरा आज से नहीं बल्कि कई सौ सालों से चली आ रही है.

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छत्तीसगढ़ देश का ऐसा स्टेट है जहां सबसे ज्यादा आदिवासी कम्युनिटीज हैं . यहां सबकी अपनी कल्चर और परंपराएं हैं . इन्हीं में से एक है धुरवा आदिवासी समाज . इस समाज में एक दिलचस्प प्रथा है . इनके यहां बहन की बेटी से मामा के बेटे (ममेरे फुफेरे भाई बहन) की शादी का चलन है . हालांकि, अब इस परंपरा को खत्म करने के लिए समाज के भीतर ही डिबेट शुरू हो गई है . ऐसा न करने पर समाज उनसे जुर्माना भी वसूलता है.