यहां विभीषण, वहां विभीषण…जहां भी देखो खड़ा विभीषण…

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यहां विभीषण, वहां विभीषण…जहां भी देखो खड़ा विभीषण…

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 का रण सज चुका है। मध्यप्रदेश की सत्ता की रस्साकसी दो खेमों भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है। पर 2020 में सत्ता परिवर्तन में मध्यप्रदेश में एक “विभीषण” शब्द खासा ट्रेंड में आ गया है। और जिस तरह 2020 में कांग्रेस से विद्रोह कर बहुत सारे नेता भाजपा में आ गए थे और कांग्रेस ने उन्हें  “विभीषण” की संज्ञा दी थी। उस नजरिए से सोचा जाए तो अब उसी रफ्तार से भाजपा से बहुत सारे “विभीषण” कांग्रेस की तरफ रुख कर रहे हैं। अकेले मालवा की बात करें तो भाजपा के दिग्गज नेता रहे पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी ने भाजपा का दामन छोड़ कांग्रेस का हाथ थाम लिया। उसके बाद एक और धाकड़ नेता भंवर सिंह शेखावत और अब इंदौर भाजपा के 3 नंबर विधानसभा के नेता ललित पोरवाल कांग्रेस का हाथ थामेंगे। पोरवाल भाजपा के दिग्गज कैलाश विजयवर्गीय से नाराज बताए जा रहे हैं। कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश के टिकट को लेकर उनमें नाराजगी बताई जा रही है। इसके लिए उन्होंने संगठन पर भी नाराजगी जताई है। जैसा कि पार्टी से बाहर जाने वाला पार्टी को कोसता है, पोरवाल ने भी भाजपा को कोसा है। वह बोले भाजपा अब कार्यकर्ताओ की पार्टी नहीं रही, इसलिए कई आरएसएस के लोग भी खफा हो गए हैं। फिर ललित पोरवाल बोले मुझे जो दीपक जोशी जी बोलेंगे, मैं वही करूंगा। भाजपा के संग राजनैतिक सफर तय कर रहे इन नेताओं को भी “विभीषण” की उपाधि से ही नवाजा जाएगा। ऐसे में लग रहा है कि इन दोनों खास दलों में “विभीषण” बहुतायत से जमा हो जाएंगे। वह त्रेता की बात अलग थी, जब “विभीषण” रावण के दल से तौबा कर राम के दल में शामिल होकर अपने ही कुनबे का वध करवाता था। अब लोकतंत्र के इस काल में दलों के बीच ‘राम’ और ‘रावण’ का भेद खत्म हो गया है। अब तो बात बराबरी पर आकर टिक गई है। ‘स्त्री-पुरूष’ के बीच भेदभाव की दीवार खत्म हो रही है। जातिगत भेदभाव पर बुलडोजर चल ही रहा है। छुआछूत जैसे शब्द अब खुद को भेदने पर राजी हैं। ऐसे ही अब लोकतंत्र की यह 21वीं सदी ‘राम’ और ‘रावण’ दल जैसी धारणाओं के परे पहुंच गई है। चलो दिलदार चलो, राम और रावण के भेद के पार चलो जैसा माहौल फीलगुड करा रहा है।
1280px Vibhishan become King of Lanka
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, तब यह भेदभाव न करने की मर्यादा का पालन करना तो बनता ही है। इसीलिए अब इस युग में बस “राम” और “विभीषण” दो ही शब्दों की महत्ता है, रावण शब्द तो बस रामलीला और दशहरा पर्व पर “रावण दहन” के दौरान ही जुबां पर लाया जाता है। उस रावण को लोग एंजॉय करने दशहरा मैदान तक जाते हैं। उसके बारे में लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत अनर्गल बातों से लोगों ने पूरी तरह तौबा कर लिया है। वैसे अब “लोकतंत्र की आत्मा” तो सत्ता के गलियारों में चहलकदमी करती नजर आती है। और वहां पर राम और रावण जैसे शब्द अपना निहितार्थ खो चुके हैं। रही बात सत्ता पक्ष और विपक्ष की, तो अब सब “राम नाप” जप रहे हैं। और सभी को बस “विभीषण” से ही प्रेम है।
वैसे अब “विभीषण” शब्द खासा लोकप्रिय और ऊर्जा से भरपूर नजर आने लगा है। वह कहावत “घर का भेदी लंका ढावे” अब नकारात्मकता खत्म कर सकारात्मकता का आवरण ओढ़ चुकी है। भाजपा प्रभारी मुरलीधर राव ने नवंबर 2022 में कांग्रेस से भाजपा में आए दो मंत्रियों को “विभीषण” संबोधित कर गर्व महसूस कराया था। पार्टी के प्रदेश प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव मुरलीधर राव ने गुना जिले से चुनावी मिशन शुरू किया था। बैठकों में पार्टी के नेताओं के साथ बैठकर रणनीति तैयार की थी। साथ ही उन्होंने मंच से पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए प्रभारी मंत्री और पंचायत मंत्री की तरफ इशारा करते हुए कहा था कि मेरे पास मंच पर दो-दो विभीषण बैठे हुए हैं। अब रावण का अंत होना निश्चित है। गौरतलब है कि गुना के प्रभारी मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर और प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री महेंद्रसिंह सिसोदिया केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के समर्थक हैं और उन्‍हीं के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए हैं।  बाद में सिसौदिया ने भी राव की बात के सकारात्मक मायनों को स्वीकार किया था। विभीषण वाले बयान पर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने राव का बचाव किया था। उनका कहना था कि सभी भगवान राम के भक्त हैं और विभीषण भी उन्हीं के भक्त थे। सत्य के साथ थे, असत्य को पराजित करने गए थे, आततायी प्रवृत्तियों को समाप्त करने का उनका संकल्प था तो वो तो और महान थे।’ वैसे तो यह विभीषण शब्द 2020 से ही प्रचलन में आ गया था, जब कांग्रेस इसे नकारात्मक छवि के साथ पेश कर रही थी, तो भाजपा ने इसे रामभक्त भाव से जोड़ सकारात्मक नजरिए में बदल दिया था।
तो मध्यप्रदेश का 2023 का विधानसभा चुनाव पूरी तरह “विभीषणों के प्रभुत्व” वाला चुनाव बनने वाला है। कौन सा विभीषण किसको विजय श्री दिलाएगा और किसको नाकों चने चबवाएगा, यह आने वाला समय बताएगा। पर 2023 के रण में यही नजर आने वाला है कि यहां विभीषण, वहां विभीषण…जहां भी देखो खड़ा विभीषण…।