High Court Dismissed PIL Against IAS Smita Sabharwal: स्मिता ने सिविल सेवा में दिव्यांगता कोटे पर उठाया था सवाल 

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High Court Dismissed PIL Against IAS Smita Sabharwal: स्मिता ने सिविल सेवा में दिव्यांगता कोटे पर उठाया था सवाल 

हैदराबाद से रुचि बागडदेव की रिपोर्ट 

हैदराबाद: High Court Dismissed PIL: तेलंगाना उच्च न्यायालय ने उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया है,जिसमें IAS अधिकारी स्मिता सभरवाल को X हैंडल के माध्यम से शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों पर की गई उनकी कथित विवादास्पद टिप्पणी को हटाने का निर्देश देने की मांग की गई थी। स्मिता तेलंगाना कैडर की 2001 बैच की IAS है।

मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति जे. श्रीनिवास राव की पीठ ने जांच के चरण में एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि नौकरशाह की टिप्पणियां उनकी निजी राय थी। किसी अधिकारी की ऐसी निजी राय या टिप्पणियों का सरकार के नीतिगत निर्णयों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

पीठ ने आगे कहा कि ‘प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति और बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार है।’ याचिकाकर्ता द्वारा IAS अधिकारी की टिप्पणियों पर आपत्ति जताते हुए पीठ ने कहा कि वर्तमान में तेलंगाना राज्य वित्त आयोग की सदस्य सचिव के रूप में कार्यरत सुश्री स्मिता सभरवाल ने 21 जुलाई को अपने X हैंडल के माध्यम से पूछा कि क्या सिविल सेवाओं की भर्ती में दिव्यांग व्यक्तियों को आरक्षण का प्रावधान उचित है।

“दिव्यांगों के प्रति पूरे सम्मान के साथ…क्या एयरलाइन्स विकलांग पायलट को काम पर रखती है? या आप विकलांग सर्जन पर भरोसा करेंगे? सभी अखिल भारतीय सेवाएं (IAS/IPS/IFoS) की प्रकृति फील्ड-वर्क, लंबे समय तक काम करने और लोगों की शिकायतों को सीधे सुनने की है-जिसके लिए शारीरिक फिटनेस की आवश्यकता होती है। इस प्रीमियर सेवा को पहले स्थान पर इस कोटे की आवश्यकता क्यों है!”, अधिकारी की पोस्ट में कहा गया।

याचिकाकर्ता के. वसुंधरा के वकील ने दलील दी कि अधिकारी की टिप्पणियों से शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के जीवन के अधिकार और सम्मान के साथ जीने के अधिकार पर असर पड़ा है। हालांकि, पीठ वकील की दलील से संतुष्ट नहीं हुई। अधिकारी की टिप्पणियों ने दिव्यांग व्यक्तियों को उनके आरक्षण से वंचित नहीं किया।

पीठ ने कहा कि कोई भी सरकार अधिकारी की टिप्पणी के आधार पर शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के आरक्षण को नहीं छीन सकती। पीठ ने कहा कि संविधान में ऐसे अधिकारों की गारंटी दी गई है।