

High Court’s Instructions to CS : हाईकोर्ट ने CS से कहा, कलेक्टरों को राजनीतिक दबाव में काम न करने के लिए समझाइश दें!
जानिए, क्या है वह मामला जिसमें हाई कोर्ट को कलेक्टर्स के लिए यह निर्देश देना पड़े!
Jabalpur : मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव (CS) से कहा कि वे जिला मजिस्ट्रेटों (कलेक्टर्स) को कानून के सही इरादे और अर्थ को समझने के लिए निर्देशित करें। वे उन्हें राजनीतिक दबाव में कार्रवाई न करने और ऐसा कोई आदेश पारित न करने के लिए निर्देश दें। न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की एकल न्यायाधीश पीठ ने मप्र के चीफ सेक्रेटरी से अनुरोध किया कि वे सभी जिला मजिस्ट्रेटों की बैठक बुलाएं। उन्हें 1990 के अधिनियम में निहित कानून के वास्तविक इरादे और अर्थ को समझाएं। जिला मजिस्ट्रेटों को निर्देश दें कि राजनीतिक दबाव में कोई आदेश पारित न करें। कानून में निहित विश्वास के साथ ही कार्रवाई करें।
वर्तमान याचिका कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट बुरहानपुर की अदालत द्वारा पारित याचिकाकर्ता के निर्वासन (जिला बदर) के आदेश के खिलाफ दायर की गई थी। याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा कि मामले की जांच उसके गुण-दोष के आधार पर की जानी चाहिए। आरोप लगाया गया कि बुरहानपुर के जिला मजिस्ट्रेट ने अपने अधिकार से आगे जाकर काम किया, जो कानून में निहित विचारों के बजाए बाहरी दबाव से निर्देशित थे।
हाईकोर्ट ने इस अहम फैसले में राज्य के मुख्य सचिव को सभी जिला कलेक्टरों को यह निर्देश देने को कहा है वे कानून के वास्तविक इरादे और मतलब को समझे बिना राजनीतिक दबाव में आकर आदेश पारित न करें। इसके साथ ही अदालत ने बुरहानपुर जिले के वन अधिकार कार्यकर्ता को निष्कासित किए जाने को अवैध करार दिया। साथ ही सरकार पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया।
20 जनवरी को पारित और गुरुवार को अपलोड किए गए आदेश में जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकल पीठ को जिला बदर आदेश में कई कानूनी विसंगतियां मिली। जिसमें यह भी शामिल है कि गवाहों के बयान दर्ज नहीं किए गए। उन्होंने कहा कि केस का पंजीकरण जिला बदर का आधार नहीं हो सकता। कोर्ट ने यह टिप्पणी बुरहानपुर के ‘जागृत आदिवासी दलित संगठन’ के कार्यकर्ता अनंतराम अवासे की याचिका पर की।
अनंतराम 23 जनवरी, 2024 को बुरहानपुर के कलेक्टर द्वारा पारित वनों की कटाई के आदेश के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। जिसके बाद कलेक्टर ने उन्हें एक साल के लिए जिले से जिला बदर कर दिया था। याचिकाकर्ता के वकील प्रियाल सूर्यवंशी ने कहा कि निष्कासन की अवधि 22 जनवरी, 2025 को समाप्त हो गई, लेकिन याचिकाकर्ता ने जोर देते हुए कहा कि निष्कासन की जांच उसके गुण-दोष के आधार पर की जानी चाहिए। यह भी देखा जाना चाहिए कि जिला मजिस्ट्रेट बुरहानपुर अपने अधिकार से बाहर जाकर काम कर रहे थे और कानून के बजाए बाहरी विचारों से प्रभावित थे।
अवासे पर 2018 से 2023 के बीच वन अधिनियम के तहत बिना अनुमति के वन उपज का उपयोग करने और पेड़ों को काटने जैसे 11 अपराधों को लेकर मामला दर्ज किया गया था। इसके बाद 2019 में भारतीय दंड संहिता के तहत दंगा करने का मामला दर्ज किया गया। 2022 में उनके खिलाफ हत्या के प्रयास और एक सरकारी कर्मचारी को उसके कर्तव्यों का पालन करने से रोकने का एक और मामला दर्ज किया गया था। सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि इस बात को साबित करने को लेकर कोई बयान दर्ज नहीं किया गया कि कैसे इससे सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा को कैसे खतरा हो रहा है।
याचिकाकर्ता को परेशान करने के लिए राज्य सरकार पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाते हुए अदालत ने कहा कि दो बातें बिल्कुल साफ हैं। पहली बात जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए आदेश में वन अपराधों का उल्लेख बिना किसी प्रासंगिकता के किया गया है। क्योंकि, वन अपराध सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत नहीं आते हैं। दूसरी बात, इस्तेमाल किया गया शब्द है ‘अगर किसी व्यक्ति को दोषी ठहराया गया है!’ लेकिन, रिकॉर्ड पर यह दिखाने के लिए कोई सामग्री नहीं है कि भारतीय दंड संहिता के तहत दो अपराधों (2019 और 2022 में पंजीकृत) के संबंध में याचिकाकर्ता को दोषी ठहराया गया।