Hindi Day on Pandit Dinanath Vyas Pratishtha Manch : भाषा के भविष्य के संदर्भ में कुछ प्रश्नों के जवाब हमें देने होंगे!

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  पंडित दीनानाथ व्यास प्रतिष्ठा मंच पर हिंदी दिवसपर परिसंवाद आयोजित हुआ .   

    Hindi Day on Pandit Dinanath Vyas Pratishtha Manch : भाषा के भविष्य के संदर्भ में कुछ प्रश्नों के जवाब हमें देने होंगे!

परिसंवाद संयोजन -स्वाति तिवारी 

भारतीय संस्कृति और भाषा के समृद्ध इतिहास को मनाने के लिए हर वर्ष 14 सितंबर को ‘हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि आखिर इसी दिन हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है. बता दें कि 14 सितंबर 1949 को हिंदी को औपचारिक भाषा का दर्जा दिया गया था. उसके बाद से ही भाषा के विस्तार और लोगों को इसका महत्व समझाने के लिए 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. पंडित दीनानाथ व्यास  हिंदी के चर्चित व्याख्याता रहे हैं ,उन्होंने  हजारों  छात्रों को   हिंदी पढाई और भाषाई शुद्धता को महत्त्व दिया  ,हिंदी शिक्षक पंडित दीनानाथ व्यास की स्मृति में स्थापित प्रतिष्ठा समिति द्वारा हिंदी दिवस मनाया गया .

 विषय प्रवर्तन करते हुए  पूर्व वाणिज्य कर अपर आयुक्त ,साहित्यकार श्री राघवेन्द्र दुबे ने कहा कि”श्री शरद जोशी ने भवानी शंकर जी का उल्लेख करते हुए कहीं लिखा है कि हिंदी बड़ी है शायद इसीलिए सब के चरणों में पड़ी है। उसके दुर्भाग्य की कथा तब से आरंभ होती है जब से हिंदी भाषी क्षेत्र से सत्ताधारी केंद्र में आए।
उक्त कथन से आप सहमत हों या ना हों, परंतु आजादी के इतने वर्ष पश्चात भी हिंदी की जो दशा है वह किसी से छुपी हुई नहीं है। जब किसी देश की या राष्ट्र की राष्ट्रभाषा को राजनैतिक कारणों से अधिकृत राष्ट्रभाषा का दर्जा ही न दिया जाए तो कोई क्या कर सकता है। भाषा मनुष्य की श्रेष्ठतम संपदा होती है। आचार्य चाणक्य के अनुसार भाषा ,भवन, भेष और भोजन संस्कृति के निर्माणक तत्व हैं। इन चारों के समन्वय से संस्कृति का निर्माण होता है ।

इस सब के उपरांत भी क्या कारण है कि हिंदी प्रेम, भक्ति, सेवा, संवेदना की भाषा तो है, परंतु प्रभुता, राजनीति, व्यापार, ज्ञान-विज्ञान, रोजगार और पद प्रतिष्ठा की भाषा पर आज भी अंग्रेजी का प्रभुत्व बना हुआ है।
प्रश्न यह उठता है कि हिंदी का भविष्य कैसा होगा ?हिंग्लिश लिखने वाले हिंदी के अखबार, अंग्रेजीदां हिंदी की टीवी चैनल, हिंदी के उत्थान के लिए गठित सैकड़ों संस्थाएं ,सब यही कहेंगे कि हिंदी का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। हालांकि यह बात हम आजादी के बाद से अभी तक कहते आ रहे हैं। भाषा के भविष्य के संदर्भ में कुछ प्रश्नों के जवाब हमें देने होंगे जैसे- क्या हिंदी उच्च स्तर तक रोजगार की भाषा बन पाएगी? इस भाषा की मांग कितनी है? मांग घट रही है या बढ़ रही है? यह बाजारवाद का युग है जिसकी मांग नहीं होती वह चलेगी या बचेगी?
किसी भाषा की महत्ता बनाए रखने में, उस भाषा में रचे जा रहे सामयिक साहित्य का भी बड़ा महत्व होता है। प्रश्न यह भी उठता है कि आज रचे जा रहे साहित्य को क्या उसके सुधी श्रोता और साहित्यिक पाठक पर्याप्त संख्या में मिल पा रहे हैं ।गत वर्ष पत्रिका वीणा में श्री रमेश दवे के छपे एक लेख का शीर्षक याद आ रहा है कि पाठक विहीनता से शोक ग्रस्त हिंदी साहित्य। उनके अनुसार 21वीं सदी पाठकों के सन्नाटे की सदी बन गई है। हिंदी देश के 70% की जन् भाषा है परंतु 7% भी साहित्यिक पाठक नहीं है ।”

लेखिका  वंदना दुबे ,धार का कहना है कि “साहित्य में भाषा केवल भावों की अभिव्यक्ति ही नहीं, उसमें कलात्मकता, रोचकता, श्रृंगारिकता और चमत्कार की उपस्थिति, पाठक को बांधे रखने के लिए बहुत आवश्यक है।
छंद और अलंकार जहाँ काव्य का सौंदर्य बढ़ाते हैं, वहीं गद्य में भी व्याकरणिक दृष्टि से भाषा की कसावट लेखन को प्रभावी बनाती है; फिर चाहे वह वर्तनी संबंधी शुद्धि हो या वाक्य विन्यास की योग्यता ; पाठक को लुभाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

नई कविता में जहाँ, अभिव्यक्ति को प्रधान मानकर मन में उमढ़े भाव, ज्यों के त्यों गद्य रूप में रखने का चलन बढ़ा है, वहां यह तो समझना ही होगा, कि नई कविता में भी गद्यात्मकता के साथ एक क्रम, लय और रिदम् की
आवश्यकता होती है।

हिन्दी में अनेक छंद है। उनकी गणना और चमत्कारिक भाषा निश्चित रूप से दुरूह कार्य है जिसे अभ्यास द्वारा साधना असंभव भी नहीं ; किन्तु अपनी सरलता के लिए लेखक, उन दुरूह छंदों से, इस तर्क के साथ दूरी बना लेता है, कि नई कविता की भावाभिव्यक्ति, सामान्य पाठक के मन के करीब होती है , और दुरूह छंदों को समझने वाले विशिष्ट सुधि पाठकों की संख्या लगभग गौण हैं ।
एक विचार जो सदा मन को उद्वेलित करता है – ” क्या साहित्य को सरल और सुलभ बनाने के लिये उसकी मर्यादाएं ही समाप्त कर दी जाएं?” “साहित्य के आवश्यक तत्व- भाव, कल्पना, विचार (बद्धि) और शैली के फ्रेम को तोड़ कर
उसे निरंकुश कर दिया जाए ?”
यह हर रचनाकार के लिए विचारणीय प्रश्न है।इस fast – instant युग में, धैर्य और समय के अभाव की शिकायत बहुधा आम है।
प्रश्न उठता है, कि आखिर लेखक ऐसा क्या लिखे, जिससे उसकी लेखन क्षुधा तो शांत हो ही, पाठक को भी एक गुणवत्तापूर्ण सामग्री प्राप्त हो ?
जो लेखक आत्म तुष्टि के लिए कलम चलाते हैं, वो कभी संतुष्ट होते हों, ऐसा लगता नहीं ; क्योंकि उनका मन पहले से, और अधिक बेहतर की खोज में सदैव निरत रहता है। वो अपने सृजन का बार-बार अवलोकन कर, उस पर चिंतन-मनन कर, भाषाई शब्द शुद्धता और अभिव्यक्ति की सशक्तता द्वारा, सुधारात्मक परिवर्तन के साथ ही, अच्छे साहित्य के अध्ययन के अभिलाषी भी होते हैं ।

लेखकों का दूसरा वर्ग जो स्वयं को स्थापित करने की शीघ्रता में, अपने मन में उपजे विचार, या कुछ इधर-उधर से सुनी-पढ़ी बातों को तुरत-फुरत लिखकर, लोगों तक पहुँचाने के लिए उतावला रहता है;
दुर्भाग्य यह कि रचना प्रकाशित हो जाने और मंचों पर सम्मान की तस्वीर खिंच जाने को ही वह अपना ध्येय मान बैठा है ।

इंदौर लेखिका संघ की अध्यक्ष विनीता तिवारी का कहना है कि ” हिंदी पर पकड़ है तो शानदार मौके हैं करियर बनाने के। हिंदी का अच्छा ज्ञान ही हिंदी का रुतबा बढ़ा रहा है। विशेषज्ञता हासिल कीजिए और बनाएं शानदार करियर!!
“राजभाषा अधिकारी” डीग्री के साथ विशेषज्ञता हासिल है, तब राष्ट्रीयकृत बैंक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया, ऑयल कंपनी में राजभाषा अधिकारी पद के लिए आप उपयुक्त हैं।
“जर्नलिज्म” हिंदी की पढ़ाई के साथ अगर हिंदी भाषा में जर्नलिज्म का कोर्स किया है तो आप पत्रकारिता के क्षेत्र में एंकर ,न्यूज़ रीडर, न्यूज़ एडिटर, न्यूज़ लेखक और रिपोर्टर जैसे जॉब प्रोफाइल पर रहकर अच्छी सैलरी हासिल कर सकते हैं। यहां पर आपको न्यूजपेपर, रेडियो चैनल, समाचार चैनल, पत्रिकाओं और डिजिटल समाचार मीडिया जैसे कई करियर ऑप्शन मिल जाएंगे। वर्तमान में डिजिटल दौर में उनकी मांग बढ़ी है।
“वॉइस ओवर आर्टिस्ट” करियर का यह भी एक अच्छा विकल्प है।
“ट्रांसलेटर” विदेशी कंपनियों के भारत में बढ़ते प्रसार के कारण हिंदी ट्रांसलेटर को मौके मिल रहे हैं ।अब वह जाॅब में बंध कर ही नहीं, फ्रीलांस के तौर पर भी कमाई कर रहे हैं।
“इंटरप्रिटेशन” हिंदी पर कमान रखने वालों को इंटरप्रेटर के तौर पर भी काम करने का मौका मिलता है। इनका काम भी ट्रांसलेटर की तरह एक लैंग्वेज का दूसरी लैंग्वेज में अनुवाद करना होता है। हालांकि इंटरप्रेटर लिखकर नहीं बल्कि बोलकर यह काम करते हैं। हालांकि इसके लिए एक अन्य भाषा का आना जरूरी है। है ना हिंदी भी करियर की भाषा!!

पूर्व जनसम्पर्क अधिकारी श्री स्वदेश सिलावट का  मानना है कि “कहने में बहुत संकोच हो रहा है कि हम उस दौर में पहुंच गए हैं जहां हमें अपने बच्चों को 59 को इंग्लिश में क्या कहते हैं बताने में बड़ा गर्व महसूस होता है. पर यही अंक हिंदी में कहा कहलाता है यह उनके लिए कठिन हो रहा है इसलिए हम बच्चों को इंग्लिश मीडियम में शिक्षा अवश्य दिलवाए किंतु घर में उनसे बात हमेशा हिंदी में करें. और ह्निदी विषय पर भी उनका ध्यान रखा जाय .

लोक गायिका ,लेखिका प्रभा तिवारी ने अपने विचार रखते हुए कहा मैं हिन्दी भाषा को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाय इसके पक्ष में अपने विचार व्यक्त कर रही हूँ।हिन्दी हमारी मातृभाषा है,देश को जोडने वाली भाषा है, हिन्दी दिल की भाषा है और व्यवाहारिक भाषा है ।हिन्दी को  राष्ट्रभाषा होनी चाहिये.अलग अलग लोगों ने हमारे ऊपर हमला किया
तब हमारे भारत की स्थिति ऐसी थी कि “कोस कोस पर पानी और चार कोस पर वाणी”मतलब एक कोस पर पानी का
स्वाद बदलता था,चार कोस पर भाषा बदल जाती थी।इतना विशाल क्षेत्र था भारत का.हम बंधे जरुर थे मगर बोलियों केकारण बटे हुए थे। इसके बाद स्वतंत्रता संग्राम हुआ।हम सब एक साथ हुए और 1947 में आजादी मिली.आजादी मिलने के बाद यह बहुतजरुरी था की हम एक दूसरे की बात समझे ओर समझा सके.इस कारण हिन्दी भाषा का प्रचलन हुआ।
आज भी हमारी जो शिक्षा पद्धति है वो एक तरफ जहां राज्य भाषा सिखाती है वहीं दूसरी तरफ हिन्दी भाषा सिखाना भी अनिवार्य करदेना चाहिए,क्योंकि  प्रत्येक राज्य की बोली अलग अलग है अनेकता में एकता हमारी संस्कृति का मूल सिद्धांत है।परंतु ये एकता कब जिवित रह सकती है, जब हम एक-दूसरे की बात समझ सके जब हम बोल सके। सामने वाले ने क्या कहा है इसको सही ढंग से लेने के लिये एक तो सूत्र होगा, एक तो धागा बांधना होगा जो हमारी बहुरंगी
भाषाओं रुपी मोतियों को एक माला में पिरोदे।
इंदौर के लेखक महेश बंसल ने हिंदी पुस्तक से एक छोटा सा संवाद प्रस्तुत किया “हिंदी दिवस पर मेरे सिरहाने रखी पुस्तक ‘शेखर – एक जीवनी’ में दो नन्हें भाई-बहन का वार्तालाप –
बोला, ‘तुम मरने से डरती नहीं ?’
‘ नहीं । ‘
‘ मरना बहुत डरावना होता है ? ”
‘ नहीं ।’
‘ सब लोग क्यों डरते हैं ? ‘
‘ इसलिए नहीं डरते कि मरना बहुत खराब होता है , इसलिए डरते हैं कि जीना अच्छा लगता है ।’
यह इतनी सीधी , इतनी सच बात उससे किसी ने क्यों नहीं कही थी ?
थोड़ी देर बाद शेखर ने सरस्वती की ओर हाथ बढा़ते हुए कहा, ‘मैं नहीं मरूँगा ।’

इस तरह उन्होंने समझाने का प्रयास किया की हिंदी संवाद की सजह और सरल भाषा है .

लेखिका नीति अग्निहोत्री,के अनुसार

विश्व में हिंदी भाषाऔर साहित्य की उन्नति हुई.छै: करोड़ प्रवासी भारतीयों ने हिंदी में कार्य कियाइसका प्रारंभ श्री अटलबिहारी बाजपेई ने किया था पहले संयुक्त राष्ट्र संघ में 1977 में हिंदी भाषण दिया।ऐसी संभावना है कि वैश्वीकरण के इस दौर में विश्व की कुल दस भाषाएं ही जीवित रह पाएंगी.अनुमान है कि उनमें हिंदी को स्थान अवश्य मिलेगा .भारत व्यावसायिक , व्यापारिक व वैज्ञानिक दृष्टि से विकसित होगा ।

हिदी विश्वभाषा की अपेक्षाओं को पूरी कर रही है क्योंकि , हिंदी एक सरल ,सहज और वैज्ञानिक भाषा है हिंदी समझने वालों का भी विस्तृत भौगोलिक दायरा हैवैश्विक पटल पर हिंदी को पढ़ाया जाने लगा है ।हिंदी विश्व बाजार की भाषा बनती जा रही है .इसका मान-सम्मान आने वाले समय में विश्व में बढ़ेगा
सबको इसका महत्व भी समझ मे आने लगा हैहिंदी का परचम विश्व मे एक दिन ऊंचा लहराएगा

बैंगलौर से  भारत की 100 वूमन एचीवर  साधना शर्मा ने एक अनुभव सुनाते हुए अपनी बात रखी”  हिन्दी एक समृद्ध भाषा है। हिन्दी भारत की राजभाषा है और इसे देश की सबसे ज़्यादा बोली और समझी जाने वाली भाषा माना जाता है.
हर वर्ष १४ सितम्बर आता है जब हम हिन्दी दिवस मनाते हैं। हर वर्ष हम अपने विद्यार्थियों के लिए सुलेख प्रतियोगिता का आयोजन करते है । और लगभग 80% विद्यार्थी हिन्दी माध्यम वाले छात्र होते हैं , पर मैं ऐसे विद्यार्थियों को जानती हूँ जो कि हिन्दी माध्यम से पढ़ाई किये है पर उन्हें अ से ज्ञ तक बोलने के लिये बोलिए तो नहीं बोल पायेंगे पर A to Z एक साँस में बोल लेंगे….😄
और सच हिन्दी दिवस के दिन हम ये प्रतियोगिता रखते है ये हिन्दुस्तान है ,जनाब यहॉ कई राज्य के लिये “हिन्दी“ विदेशी भाषा है ….!
एक बार हमारे वाट्सअप ग्रुप जिसमें अलग अलग प्रदेश से देश की सौ सशक्त महिलायें जुड़ी हुई है। और उसमें ज़ूम मीटिंग रख गया बस उसमें एक गलती ये हो गयी कि मैसेज हिन्दी में लिखा गया, और फिर कुछ लोगों ने उस टेक्स्ट मैसेज से माहौल ख़राब करने लगे कि आप सब जानबूझकर हिन्दी में मैसेज दिये है ताकि हम अपने विचार न रख सके,ये हाल हमारे देश का है।अपने ही देश में हिन्दी का इतना तिरस्कार देख कर सुन कर मन दुखी हो जाता है।आप सभी को हिन्दी दिवस की बहुत बहुत बधाई।

परिसंवाद संयोजन -स्वाति तिवारी 

Teacher’s Day : शिक्षक वह होता है जो आपको सिखाता है कि कैसे जीना है। 

पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति भोपाल, द्वारा स्वतंत्रता के मायने,वर्तमान समय में दुनिया में युद्ध की विभीषिका विषय पर संगोष्ठी