होर्डिंग स्थायी, चेहरे अस्थाई
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का दर्द स्वाभाविक है. होर्डिंग्स पर भाजपा नेताओं के बीच मुख्यमंत्री के तौर पर सर्वाधिक कार्यकाल का रिकॉर्ड बना चुके चौहान के चेहरे की जगह अब वर्तमान मुख्यमंत्री मोहन यादव का चेहरा है. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा अपनी जगह विद्यमान है. ये प्रक्रिया भी उतना ही स्वाभाविक है जितना चौहान का दर्द जो उनके वक्तव्य में सामने आया.
जिस तरह से लगातार वक्तव्य चौहान की तरफ से आ रहे हैं उससे साफ़ जाहिर है कि उन्हें इस बात का अंदेशा नहीं था कि इतने भारी बहुमत के बाद भी पार्टी उनकी तरफ से किनारा कर लेगी या इस तरीके से किनारा कर लेगी और उनको अचानक राजनीतिक रूप से हाशिये पर डाल दिया जायेगा. अभी तक ना तो उन्हें कोई केंद्रीय मंत्री पद का ऑफर मिला है और ना ही पार्टी में राष्ट्रीय पदाधिकारी के रूप में कोई दायित्व.
उनको विकसित भारत संकल्प यात्रा में दक्षिण के राज्यों में सहभागिता की जिम्मेदारी मिली है पर उनके पद और कद को देखते हुए यह उनकी क्षमता का उपयोग नहीं करने के बराबर है जबकि वे भाजपा में एक बड़े OBC लीडर भी हैं. आगे आने वाले समय में पार्टी उनकी क्षमता का कैसे उपयोग करती है या उनको कुछ समय तक राजनीतिक हाशिये पर ही रहना होगा यह कहा नहीं जा सकता.
चौहान ने होर्डिंग से गायब होने पर अपना दर्द तो बयां कर दिया पर चौहान के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल के दौरान ही जाने कितने ऐसे नेता हैं जो होर्डिंग से गायब हो गए और वे अपना दुख बयां भी नहीं कर पाए.
सुमित्रा महाजन, उमा भारती, प्रभात झा, विक्रम वर्मा, सत्यनारायण जटिया, कृष्णमुरारी मोघे, रघुनन्दन शर्मा, हिम्मत कोठारी, गौरीशंकर शेजवार, कुसुम मेहदेले इत्यादि नेता प्रादेशिक स्तर पर तो लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता राष्ट्रीय स्तर पर होर्डिंग्स से गायब हैं. जिन आडवाणी ने राम रथ यात्रा निकाल कर भाजपा को संसद में 2 सीट से 98 सीट पर पहुँचाया और भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी जो कि एक समय भाजपा के त्रिमूर्ति नेताओं में एक थे उनको यह सलाह दी गयी है कि वे अपने उम्र के मद्देनजर अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के दौरान शिरकत ना करें. एक समय भाजपा में ये नारा था- भाजपा के तीन धरोहर, अटल, अडवाणी, मुरली मनोहर.
चौहान को होर्डिंग से गायब होने का दर्द तो इस बात से कम हो सकता है कि वे 17 वर्ष उस पद पर रहे जिसे पाने के लिए जाने कितने नेताओं ने जीवन खपा दिया पर फिर भी वे उस पद को प्राप्त नहीं कर पाए, पर उन कार्यकर्ताओं और नेताओं के दर्द को भी महसूस किया जाना चाहिए जो राजनीतिक क्षेत्र में राजनीति के शिकार होकर पार्षद या विधायक तक नहीं बन पाए और जिन्हे हर चुनाव के पहले पार्टी सिर्फ देवतुल्य कार्यकर्ता के रूप में याद करती है. ऐसा नहीं है कि ये संस्कृति नयी भाजपा की देन है. ये राजनीति तो दशकों से खेली जा रही है.
रंजन
तीन दशक से ज्यादा पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय| पूर्व में टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स तथा फ्री प्रेस जर्नल में महत्वपूर्ण संपादकीय दायित्व का निर्वहन| वर्तमान में फ्रीलांस जर्नलिस्ट|