अध्यात्मिक क्रांति का प्रतीक है होली
अजेंद्र त्रिवेदी की ख़ास खबर
होली की याद या चर्चा आते ही मन में हर्ष और मस्ती का संचार हो जाता है, रंग अबीर गुलाल और फाग से हम सराबोर हो जाते हैं, फाल्गुन के आगमन से ही मन में अल्हड़ता चली आती है, ऐसा क्यो होता है?
पौराणिक और वैज्ञानिक कथा-
होली के सन्दर्भ में प्रह्लाद के बगावती अध्यात्मिक जीवन की कथा है, सृष्टि के विकास के साथ विज्ञान की कथा है यह, भगवान विष्णु का पहला अवतार मछली का था अर्थात जीवन पहले जल से शुरू होती है, अब दूसरा अवतार वाराह (सुअर) का हुआ, सुअर पानी और जल दोनो मे चलता है, सुअर अपने मुँह और दाँतो से पृथ्वी को जल से बाहर ला रहे थे, तभी हिरणाक्ष और हिरण्य कश्यपु दो सहोदर राक्षस भाई मिले और वाराह भगवान को रोका और युद्ध करने लगा इस युद्ध में हिरणाक्ष मारा गया और हिरण्यकश्यपु बच निकला, हिरण्कश्पु की पत्नी कयाधु विष्णु भक्त थी, इन से प्रह्लाद का जन्म हुआ, प्रह्लाद विष्णु भक्त थे, यह इनके दैत्य पिता हिरण्यकश्पु को पसन्द नहीं था, साढ़े चार साल के प्रह्लाद को पढ़ाने के लिए गुरू शुक्राचार्य के पुत्र सुण्डामर्क को रखा गया, पर प्रह्लाद विष्णु के मंत्र के जप का प्रभाव आम जनता को दिखाते और आम जन को भी प्रेरित करते, हिरण्य स्वयँ को ईश्वर घोषित कर दिया, प्रह्लाद ने स्वँय अपने पिता का विरोध किया, हिरण्य आतातायी होकर पुत्र प्रह्लाद को पहाड से नीचे लुढ़काया, हाथी के पैर के नीचे डाल दिया, जब प्रह्लाद नहीं मरे तो, हिरण्य ने अपनी बहन होलिका को बुलाया और कहा कि बहन तुम अग्नि रोधी हो, तुम फाल्गुण पूर्णिमा की रात को प्रह्लाद को अपने गोद मे लेकर आग की ज्वाला मे बैठ जाओ, तुम जिन्दा बच जाऔगी और प्रह्लाद जल कर मर जाएगा, होलिका ने ऐसा ही किया और होलिका जल कर मर गई और प्रह्लाद प्रचण्ड ज्वाला में से भी मुस्कुराते हुए निकले, इसी उपलक्ष्य मे होलिका दहन (अगजा) का प्रचलन शुरू हुआ, इसके दूसरे दिन सुबह जब यह सूचना भगवद् भक्तों को मिली तो होली का स्वरूप ले लिया यह धार्मिक से सांस्कृतिक स्वरूप ले लिया.
नरसिम्हा अवतार-
भगवान विष्णु का तीसरा अवतार नरसिम्हा का था, गरदन से नीचे शरीर आदमी का परन्त नाखून और माथा सिंह का था, अब पशु के साथ साथ मनुष्य का स्वरूप आया, यह भगवान विष्णु का उग्र स्वरूप है, जब हिरण्य अपने पुत्र प्रह्लाद को जान से मारने को कटार लेकर तैयार हुआ तो, प्रह्लाद को बचाने के लिऐ यह अवतार हुआ, हिरण्य का वध कर भगवान उसे अपने ही लोक ले गए, यह कथा अध्यात्मिक क्रांति और पिता को सद्गति देने की कथा है, यह संयोग है कि इस घटना के बाद प्रह्लाद के पोत्र राजा वलि के लिऐ भगवान का वामन अवतार हुआ, यह भगवान विष्णु का पहला मानवीय अवतार था.
होली को सिद्धि मिलती है-
होली के अगजा के दिन और रात को जिस भी मंत्र का जप किया जाए तो सिद्धि मिलती है, दीपावली, नवरात्र, ग्रहण काल की तरह यह सिद्ध रात्रि है.
होलाष्टक-
होली के आठ दिन पहले होलाष्टक शुरू होकर अगजा के प्रात: काल तक होता है, हिरण्यकश्पु ने इस दिन से ही प्रह्लाद की हत्या का साजिश रच रहा था इसलिए यह आठ दिन खरमास की तरह माना जाता है.
अगजा की पूजा-
आग हमारे मानव सभ्यता का पहला हितैषी और मित्र है इसलिए हम इसकी पूजन कर कृतज्ञता प्रकट करते हैं, यह मशाल क्रांति का प्रतीक है, होली के पूर्व संध्या या भोर में फाल्गुन पूर्णिमा हो तथा भद्रा न हो तब अगजा जलाते हैं, इसके पूर्व अगजा स्थल पर गोबर का चोका लगाकर, पकवान और पूजन सामग्री से पूजन करते हैं गोबर की उपला कण्डे की माला चढ़ाते हैं।