मीडिया पर संकट की भयावहता कितनी सही ?

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मीडिया पर संकट की भयावहता कितनी सही ?

 ” एक दिन ऐसा आएगा जब भारत में मीडिया बचेगा ही नहीं…”

 ” लोकतंत्र की हत्या हो रही , तानाशाही चल रही “

 ” मीडिया की आवाज पर अंकुश लग गया “

” मीडिया बिक गया और डर गया “

ऐसे बयान संवैधानिक पद पर बैठी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी या कांग्रेस और प्रतिपक्ष  केप्रमुख नेता दे रहे हैं | लेकिन क्या मीडिया पर संकट सचमुच इतना भयावह है | ममता बनर्जी ने बी बी सी के भारतीय दफ्तर पर इंकम टैक्स विभाग के सर्वे यानी हिसाब किताब की जाँच पड़ताल की कार्रवाई पर इतनी बड़ी आशंका व्यक्त कर दी | ब्रिटेन सहित दुनिया के किसी लोकतान्त्रिक देश की सरकार या अधिकारी ने ऐसी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी | यहाँ तक कि स्वयं बी बी सी ने इस कार्रवाई पर ऐसा आरोप नहीं लगाया | उसके समाचार या  विश्लेषण आदि से जुड़े संपादकीय और प्रोडक्शन के कर्मचारी काम करते रहे और रेडियो – टी वी चैनल के प्रसारण में भी कोई रुकावट नहीं हुई | इस सन्दर्भ में कुछ और सवाल उठते हैं | और उनमें भारत में लगे आपातकाल और सेंसर की अवधि की चर्चा की जरुरत नहीं है |

क्या बी बी सी सचमुच में देववाणी है और उसका दफ्तर मंदिर की तरह पवित्र जिस पर कोई ऊँगली – आँख उठाकर नहीं देखे ? लोग शायद उसकी खबरों , इंटरव्यू आदि के कार्यक्रम के आधार पर जानते हैं , लेकिन क्या नेता और मीडिया या अन्य सामाजिक संगठन यह नहीं जानते कि बी बी सी भारत में भी टी वी , डिजिटल इत्यादि के प्रोडक्शन आदि के कमाई वाले व्यावसायिक  काम से पिछले वर्षों से अरबों रुपये / पाउंड्स  कमाकर ब्रिटेन भी भेजता रहा है ? क्या उस पर भारत के कर और अन्य कानून लागू नहीं होते ?

क्या बी बी सी पर ब्रिटेन की सरकार और संसद भी समय समय पर जांच पड़ताल नहीं करती रही है ?

दुनिया के सबसे बड़े मीडिया सम्राट रुपर्ट मुर्डोक के मीडिया हाउस और अख़बार पर ब्रिटिश सरकार की कड़ी कार्रवाई और एक अख़बार का प्रकाशन तक बंद हो जाने से वहां मीडिया की आज़ादी ख़त्म हो गई ? उस कार्रवाई के बाद भी उनकी कंपनी क्या आज तक नहीं चल रही ?

ब्रिटेन और अमेरिका के नस्ली  दंगों पर क्या किसी भारतीय टी वी प्रसारण कंपनी या बी बी सी की तरह  सरकारी बजट पर निर्भर दूरदर्शन या आकाशवाणी ने डॉक्यूमेंटरी – रेडियो कार्यक्रम बनाकर ब्रिटिश – अमेरिका के चुनावों के दौरान उनके विश्वविद्यालयों और शहरों में प्रसारित किये ?

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भारत में यदि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी , उनकी सरकार , पार्टी या समर्थक पूंजीपतियों का मीडिया पर प्रभाव है लेकिन क्या पहले कांग्रेस पार्टी का और अब उसके नेता राहुल गाँधी की कंपनी के  अख़बार नेशनल हेराल्ड , नवजीवन पर भी सरकार का प्रभाव है ? वे इन अख़बारों के पचासों जिला संस्करण भी छापकर अपनी मर्जी की खबरें और विचार नहीं छाप सकते हैं ? इसी तरह कम्युनिस्ट पार्टी या उससे जुड़े लोगों के कई अख़बार पत्रिकाएं रही हैं , समाजवादी या शिव सेना के भी रहे हैं | वहीं  क्या भाजपा संघ से जुड़े या उसके कड़े विरोधी पत्र पत्रिका , यूट्यूब चैनल चल रहे और लाखों लोगों तक पहुँचने का दावा नहीं कर रहे हैं ?

इसलिए यह हव्वा मचाने का क्या औचित्य है कि प्रेस की आज़ादी ख़त्म हो गई या मीडिया रहेगा नहीं रहेगा ? यह तो बस आने वाले किसी भी दिन कभी महाप्रलय और महा विनाश  होने का भय दिखाने जैसी बात है | वास्तव में बीस साल पहले गुजरात में हुए साम्प्रदायिक दंगों पर पूर्वाग्रही एकपक्षीय पुरानी रिपोर्ट पर बी बी सी द्वारा एक प्रोडक्शन कंपनी के लोगों और भारत में भी सत्ता विरोधी तत्वों का सहयोग लेकर बनी डॉक्यूमेंट्री के वितरण , फिर एक अमेरिकी कथित रिसर्च कंपनी द्वारा बड़े व्यावसायिक ग्रुप अडानी समूह को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्षति के साथ भारत की आर्थिक व्यवस्था को चोंट पहुँचाने वाली रिपोर्ट और अब दुनिया में बदनाम अमेरिकी आर्थिक अपराधी सोरोस के भारत विरोधी अभियान इस बात के प्रमाण हैं कि कुछ विदेशी संगठन , लोग और एजेंसियां प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से भारत की सामाजिक , राजनीतिक , आर्थिक स्थतियों  को नुकसान पहुंचाने के लिए सक्रिय हैं | वैसे भी भारत की स्थिरता और प्रगति कई देशों को खटकती रही है |

जहाँ तक मीडिया पर कार्रवाई की बात है , इंकम टैक्स विभाग ने तो कांग्रेस के मनमोहन सिंह राज में भी मध्य प्रदेश के बड़े मीडिया ( नई दुनिया वेबदुनिया ) मालिक विनय छजलानी की कंपनियों पर छापे मारकर तीन सौ करोड़ की गड़बड़ी का रिकार्ड निकाला था | वर्षों पहले भास्कर समूह पर भी कार्रवाई हुई थी और ये दोनों  अखबार कांग्रेस सर्मथक माने जाते थे | एन डी टी वी पर  आय कर विभाग की जांच कांग्रेस राज में शुरू हो गई थी | तमिलनाडु सरकार ने एक बार हिन्दू जैसे बड़े प्रकाशन समूह पर बड़ी पुलिस कार्रवाई दफ्तर में घुसकर की थी | इस तरह के पचासों उदाहरण हैं , लेकिन प्रेस की आज़ादी अक्षुण्ण रही |अब पिछले दिनों इंकम टैक्स विभाग ) ने दिल्ली और मुम्बई में बी बी सी  के दफ्तर पर इंकम टैक्स एक्ट 133A  के तहत सर्वे किया था |आयकर विभाग ने इसकी जानकारी दी है. सर्वे के दौरान पता चला है कि बी बी सी  ग्रुप  के द्वारा आय कम दिखाकर टैक्स बचाने की कोशिश की गई है | सर्वे के दौरान विभाग ने संगठन के संचालन से जुड़े जो सबूत इकट्ठा किये उनसे साफ पता चलता है कि बी बी सी  की विदेशी इकाइयों के जरिये हुए लाभ के कई स्त्रोत ऐसे थे जिनपर भारत में देय टैक्स नहीं चुकाया गया |विदेशों और देश मे मौजूद कई ऐसे कर्मचारी हैं जिनकी पेमेंट भारतीय इकाई द्वारा की गई लेकिन उस पर भी टैक्स नहीं चुकाया गया | बीबीसी के सर्वे पर सीबीडीटी ने कहा कि आयकर दलों ने कर्मचारियों के बयान, डिजिटल प्रमाण और दस्तावेजों के जरिए अहम सबूतों का पता लगाया है. सीबीडीटी ने कहा कि आय व समूह की विभिन्न संस्थाओं द्वारा दिखाया गया मुनाफा भारत में परिचालन के पैमाने के अनुरूप नहीं है. बीबीसी के खिलाफ आयकर सर्वेक्षण पर सीबीडीटी ने कहा, ‘‘ट्रांसफर प्राइसिंग’’दस्तावेजों के संबंध में कई विसंगतियां मिलीं  आयकर अधिकारियों ने उपलब्ध स्टॉक की एक सूची बनाई है, कुछ कर्मचारियों के बयान दर्ज किए हैं और सर्वेक्षण कार्रवाई के तहत कुछ दस्तावेज जब्त किए हैं |अधिकारियों ने कहा कि सर्वे अंतरराष्ट्रीय कराधान और बीबीसी की सहायक कंपनियों के ट्रांसफर प्राइसिंग से संबंधित मुद्दों की जांच के लिए किया गया है. उन्होंने आरोप लगाया कि विगत में कई बार बीबीसी को नोटिस दिया गया था लेकिन उसने उस पर गौर नहीं किया और उसका पालन नहीं किया तथा उसने अपने मुनाफे के खास हिस्से को अन्यत्र हस्तांतरण  किया | ब्रिटिश सरकार के सूत्रों ने कहा कि भारत में बीबीसी कार्यालयों में आयकर सर्वेक्षणों के बाद ब्रिटेन ‘बारीकी से नजर रख रहा है | बीबीसी ने कहा कि  भारतीय आयकर विभाग के अधिकारियों के साथ पूरा सहयोग किया है  और उम्मीद है कि यह स्थिति जल्द से जल्द सुलझ जाएगी |

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.बीबीसी की ज्यादातर फंडिंग एक सालाना टेलीविजन फीस से आती है। इसके अलावा इसे अपनी अन्य कंपनियों, जैसे- बीबीसी स्टूडियोज और बीबीसी स्टूडियोवर्क्स से भी आमदनी होती है। ब्रिटेन की संसद भी इसको ग्रांट देती है।वर्ष 2022 में कंपनी को तब एक बड़ा झटका लगा, जब ब्रिटिश सरकार ने अगले दो सालों के लिए वार्षिक टेलीविजन शुल्क पर रोक लगाने की घोषणा की। इतना ही नहीं, सरकार ने यह भी कहा कि 2027 तक वह शुल्क को पूरी तरह खत्म कर देगी। इसके विदेशी प्रसारण और कामकाज के लिए बड़े पैमाने पर चीन की कंपनियों सहित बहुराष्ट्रीय और भारतीय कंपनियों से कमाई होती है |

गुजरात दंगों पर बनाए गए बीबीसी की प्रॉपगेंडा डॉक्यूमेंट्री की आलोचना ब्रिटेन में भी हो रही है। ब्रिटेन की संसद के हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्य लॉर्ड रामी रेंजर ने बीबीसी की आलोचना करते हुए डॉक्यूमेंट्री को दुर्भाग्यपूर्ण, गलत समय पर और गलत सूचना देने वाला बताया है। रामी रेंजर ने कहा है कि यह डॉक्यूमेंट्री मुट्ठी भर मोदी विरोधी लोगों के बयानों पर आधारित है।ब्रिटिश सांसद रामी रेंजर ने कहा कि पीएम मोदी और भारत की सफलता कुछ लोगों से देखी नहीं जा रही है। उन्होंने कहा कि इस बार भारत बदला हुआ है, इसलिए प्रॉपगेंडा की कड़ी प्रतिक्रिया दी गई। उन्होंने बीबीसी पर 2 महान देशों के बीच संबंध खराब करने की कोशिश का आरोप लगाया।रमी रेंजर ने कहा कि भारत और ब्रिटेन कई मामलों में दूसरे देशों के मुकाबले एक दूसरे के ज्यादा करीब हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी 2 बार चुनावों में भारी बहुमत से जीतकर आए हैं और विरोधियों को गलत साबित किया है।

दूसरी तरफ  केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने हंगरी मूल के अमेरिकी अरबपति कारोबारी जॉर्ज सोरोस की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि वो भारत के खिलाफ लंबे समय से एजेंडा चला रहे हैं। असल में जॉर्ज सोरोस उस शख्सियत का नाम है जिसने यहां तक कह दिया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत तानाशाही व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने और नागरिकता संसोधन कानून (CAA) का भी खुलकर विरोध किया है। उनका हालिया बयान गौतम अडानी की कंपनियों के खिलाफ आई हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट को लेकर आया है।  वरिष्ठ नेता स्मृति इरानी ने सोरोस के बयान को भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में दखल देने की कोशिश बताई है।

 92 वर्षीय बूढ़े     जॉर्ज सोरोस  सटोरिया  और व्यापारी हैं।  उस  पर दुनिया के कई देशों की राजनीति और समाज को प्रभावित करने का एजेंडा चलाने का आरोप लगता रहता है। उस  पर दुनिया कई देशों में कारोबार और समाजसेवा की आड़ लेकर पैसे के जोर पर वहां की राजनीति में दखल देने के गंभीर आरोप लगते रहते हैं। उन्होंने कई देशों में चुनावों को प्रभावित करने के लिए खुलकर भारी-भरकम फंडिंग की। यही कारण है कि यूरोप और अरब के कई देशों में सोरोस की संस्थाओं पर भारी जुर्माना लगाकर पाबंदी लगा दी गई।जॉर्ज सोरोस पर आरोप लगता रहा है कि उन्होंने जिस अकूत दौलत के दम पर दुनियाभर में दखल देते हैं, वह भी अनैतिक साधनों से जुटाया है। वर्ष 2002 में फ्रांस की अदालत ने सोरोस को अनैतिक और अनधिकृत व्यापार का दोषी पाया था। इसके लिए फ्रेंच कोर्ट ने सोरोस पर 23 लाख डॉलर का जुर्माना लगाया था। जब उन्होंने फ्रांस की सुप्रीम कोर्ट में फैसले को चुनौती दी तो उसने भी सोरोस का जुर्माना बरकरार रखा। अमेरिका में भी उन पर बेसबॉल खेलों में पैसा लगाकर अनैतिक तरीके से पैसे बनाने का आरोप लगा। इसी तरह, इटली की फुटबॉल टीम एएस रोमा को लेकर भी सोरोस विवादों में आए। सोरोस ने अपनी मां को आत्महत्या करने में मदद की थी। इस बात का खुलासा उन्होंने ही साल 1994 में की थी।

इस तरह के अपराधियों और भारत विरोधी चीन पाकिस्तान के षड्यंत्रों में भारतीय राजनीतिक दलों , सामाजिक या स्वयंसेवी संगठनों अथवा मीडिया के कुछ लोगों के शामिल होने की आशंकाएं अधिक गंभीर हैं | उन्हें विदेशी चंगुल से बचाना और आवश्यक कार्रवाई भारत सरकार ही नहीं जागरुक समाज की भी है |

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।