कैसे खाते,पीते और सोते हैं अंतरिक्ष यात्री… !!

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कैसे खाते,पीते और सोते हैं अंतरिक्ष यात्री… !!

संजीव शर्मा की खास रिपोर्ट

भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स के मंगलवार को सकुशल वापस लौटने से सब मंगल हो गया और तमाम तरह के संशय के बादल छट गए । वे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर 9 महीने 14 दिन तक रहीं और 17 घंटे का सफर कर समंदर में उतरी और फिर सुरक्षित वहां पहुंच गईं जहां उन्हें नौ महीने पहले होना चाहिए था। इसके पहले का किस्सा हम सब जानते हैं कि सुनीता विलियम्स और उनके साथी बुच विल्मोर को 5 जून 2024 को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर एक टेस्ट मिशन के लिए भेजा गया था। यह मिशन मूल रूप से 8 दिनों का था, लेकिन यान में तकनीकी खराबी के कारण उनकी वापसी में देरी हुई। नतीजतन, उन्हें 9 महीने से ज्यादा समय तक अंतरिक्ष में रहना पड़ा, और वे 19 मार्च को धरती पर लौट पाईं।

इस सफलता के जश्न में आपके दिमाग में भी यह ख्याल आया होगा कि इस लंबे प्रवास के दौरान सुनीता और उनके साथी क्या खाते होंगे? कैसे खाते होंगे? उनकी दिनचर्या कैसे संचालित होती होंगी? सवाल वाकई गंभीर हैं क्योंकि जहां पैर जमीन पर नहीं टिकते हैं और सब कुछ हवा में उड़ता रहता है, वहां ये तो संभव नहीं है कि अंतरिक्ष यात्री हमारी तरह डाइनिंग टेबल पर बैठकर दाल, चावल, सब्ज़ी और रोटी का लुत्फ लें क्योंकि सब्ज़ी तो ठीक है लेकिन यदि चावल के दाने उड़ने लगे तो उनको इकट्ठा करना मुश्किल तो हो ही जाएगा बल्कि जानलेवा भी हो सकता है इसलिए यह सवाल उठना लाज़िमी है कि सुनीता विलियम्स एवं उनके साथी क्या और कैसे खाते थे ?

दरअसल, अंतरिक्ष में यात्री विशेष रूप से तैयार किया गया खाना खाते हैं, जो पौष्टिक, हल्का, और स्टोर करने में आसान होता है। ये भोजन आमतौर पर सूखा, प्री-पैकेज्ड और वहां के वातावरण के अनुरूप होता है ताकि अंतरिक्ष के वातावरण में खराब न हो और गुरुत्वाकर्षण की कमी में भी आसानी से खाया जा सके। गुरुत्वाकर्षण न होने के कारण, भोजन को ऐसे डिज़ाइन किया जाता है कि वह हवा में न तैरे। अंतरिक्ष यात्री इसे छोटे टुकड़ों में खाते हैं और खाने को पाउच या कंटेनर से सीधे मुँह में डालते हैं। यहां तक कि स्वाद के लिए नमक और मसाले भी लिक्विड फॉर्म में होते हैं।

वैसे, मिशन की शुरुआत में सुनीता और उनकी टीम के पास ताजे फल, सब्जियां, रोस्ट चिकन, पिज्जा जैसे खाद्य पदार्थ भी थे। यह स्टॉक तीन महीने में खत्म हो गया। फिर उन्हें फ्रीज-ड्रायड यानि सूखे भोजन पर निर्भर रहना पड़ा। इस फ्रीज-ड्रायड भोजन को अंतरिक्ष स्टेशन के टैंक से पानी मिलाकर तैयार करना पड़ता था और यह पानी भी अंतरिक्ष यात्रियों के मूत्र को रिसाइकिल करके ही बनाया जाता था। चौंकिए मत, अंतरिक्ष में यह एक सामान्य प्रक्रिया है। लेकिन, सुनीता ठहरी आधी भारतीय तो बिना चटपटा खाए उनका मन कैसे लगता इसलिए वे अपने साथ समोसे जैसे भारतीय स्नैक्स भी ले गयी थीं ।

अब बात दैनिक क्रियाओं की… मसलन ब्रश करना,नहाना और मल मूत्र विसर्जन जैसे काम क्योंकि इनके बिना जीवन संभव नहीं है। अंतरिक्ष में खाना ही नहीं, दाँत ब्रश करना भी पृथ्वी से थोड़ा अलग होता है, क्योंकि वहाँ गुरुत्वाकर्षण की कमी के कारण पानी और टूथपेस्ट हवा में तैर सकते हैं। यही कारण है कि अंतरिक्ष यात्री इसे सावधानी से और विशेष तरीके से करते हैं। उनका ब्रश कुछ हमारी तरह ही होता है लेकिन पेस्ट ऐसा होता है कि उसे खा भी सकते हैं ताकि थूकना न पड़े और उस थूक या कुल्ले के उड़ने का खतरा न रहे। वैसे कुल्ला करने के लिए खास तरह का पाउच और तौलिया भी होता है जिसमें पानी बाहर निकलने का खतरा नहीं रहता। दरअसल, अंतरिक्ष स्टेशन पर पानी बहुत कीमती होता है, इसलिए इसे बहुत संभालकर खर्च किया जाता है ।

अंतरिक्ष में स्नान करना पृथ्वी की तरह नहीं होता कि शावर चलाया और पूरे बाथरूम में घूम घूमकर नहा लिया। असल में वहाँ गुरुत्वाकर्षण की कमी के कारण पानी बहता नहीं, बल्कि हवा में तैरने लगता है। इसलिए अंतरिक्ष यात्री पारंपरिक शावर या बाल्टी से नहाने की जगह विशेष तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। नहाने के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को पानी से भीगा हुआ तौलिया या वेट वाइप्स दिए जाते हैं। ये तौलिये पहले से साबुन या खास सफाई के घोल से तैयार होते हैं। बालों को साफ करने के लिए उन्हें नो-रिंस शैम्पू यानि जिसे धोने के लिए पानी की जरूरत नहीं होती, इस्तेमाल करना पड़ता है। अंतरिक्ष यात्री लंबे समय तक एक ही कपड़े पहनते हैं, क्योंकि वहाँ धोने की सुविधा नहीं होती। इसलिए गंदे कपड़ों को सील बंद बैग में रखा जाता है और बाद में उन्हें धरती पर लाकर नष्ट कर दिया जाता है।

सबसे ज्यादा समस्या मल मूत्र विसर्जन को लेकर रहती है इसलिए इसके लिए भी विशेष इंतजाम करने पड़ते हैं। जैसा कि ऊपर भी मैने लिखा है कि अंतरिक्ष स्टेशन में करीब 90 फीसदी पानी मूत्र से ही बनता है। इसके लिए अंतरिक्ष स्टेशन में खास तकनीक से मूत्र को साफ करके पीने योग्य पानी में बदला जाता है ।

अंतरिक्ष में यात्री पेशाब करने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए शौचालयों का इस्तेमाल करते हैं, जो गुरुत्वाकर्षण की कमी में काम करने के लिए बनाए गए हैं इसलिए तैरते हुए मूत्र से बचने के लिए इनमें सक्शन सिस्टम लगा होता है। यात्री इसे इस्तेमाल करने से पहले विधिवत प्रशिक्षण लेते हैं। कुछ यही स्थिति मल त्याग की होती है। अंतरिक्ष यात्रियों को विशेष प्रशिक्षण के बाद खास किस्म की टॉयलेट सीट का इस्तेमाल करना होता है। वह भी सक्शन सिस्टम पर आधारित होती है। हालांकि, अभी तक मूत्र की तरह मल को रिसाइकिल नहीं किया जाता लेकिन वैज्ञानिक इसको रिसाइकल करने की तकनीक पर भी काम कर रहे हैं ताकि इसका उपयोग खाद में बदलने या ऊर्जा उत्पादन के लिए किया जा सके ।

यह सब पढ़ने में अजीब लग सकता है, लेकिन अंतरिक्ष में स्वच्छता और सुरक्षा के लिए यह बहुत जरूरी है और सुनीता विलियम्स ही नहीं तमाम अंतरिक्ष यात्री इसका पूरी तत्परता,सजगता और सावधानी के साथ पालन करते हैं क्योंकि वे भी जानते हैं कि जरा सी चूक उनके पूरे मिशन को मुश्किल में डाल सकती है। यही कारण है कि पग पग पर सावधानी बरती जाती है। फिर चाहे, अंतरिक्ष यात्रियों को नौ दिन की बजाए नौ महीने तक अंतरिक्ष में रखना पड़े।