राहुल गांधी को ‘चोर’ के प्रिय नारे से कितना नफा नुकसान ?

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राहुल गांधी को ‘चोर’ के प्रिय नारे से कितना नफा नुकसान ?

आलोक मेहता

राहुल गांधी ने बिहार में ‘ वोट चोर ‘ के साथ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और चुनाव आयोग के खिलाफ एक घिनोना अभियान चलाया है। गरीब अशिक्षित लोगों की भीड़ इकट्ठा कर नक्सल माओवादियों की तरह चुनाव और लोकतंत्र के प्रति विद्रोह पैदा करने की कोशिश जैसा है। इसे कहने को अधिकार यात्रा” कहा गया है , लेकिन जिस राज्य में खुले आम बंदूकों के बल पर वोट और बूथ लूटने का पुराना इतिहास रहा हो , वहां वोटिंग मशीन , वोटर लिस्ट , सरकार , चुनाव आयोग , सी बी आई , पुलिस आदि पर भरोसा न करना कहाँ तक उचित है ? वैसे उन्हें मालूम नहीं है इसी ‘ चोर ‘ जैसे नारों से उनके कितने मुख्यंमंत्री , केंद्रीय मंत्रीं खुद फंसे रहे हैं , लोगों को उनकी यादें अधिक खतरनाक साबित हो सकती हैं।

चुनाव आयोग ने राहुल गांधी से कहा कि यदि मतदाता सूचियों में गड़बड़ियों के सबूत हैं तो उन्हें 7 दिनों में हलफनामा जमा करें, अन्यथा माफ़ी मांगें। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने राहुल गांधी पर “डेटा मैनिपुलेशन” का आरोप लगाया और स्पष्ट किया कि वोटर लिस्ट और वोट डालने की प्रक्रिया अलग-अलग कानूनों के तहत संचालित होती है। इस बीच एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई है , जिसमें आरोप लगाया गया कि कांग्रेस और राहुल गांधी ने चुनाव आयोग की संवैधानिक स्वतंत्रता को कमजोर करने के लिए यह अभियान चलाया है।

वोटर इज किंग ,इलेक्टेद मेन इज सर्वेंट ऑफ़ पब्लिक ( मतदाता राजा है , चुने गए व्यक्ति सेवक हैं | लेकिन सारे चुनाव सुधारों और अदालती निर्णयों के बावजूद राजनीति में अपराधीकरण से मुक्ति नहीं मिलपाई है। राजनीति के अपराधीकरण का असली कारण यह है कि पहले पार्टियां और उनके नेता चुनावी सफलता के लिए कुछ दादा किस्म के दबंग अपराधियों का सहयोग लेते थे | धीरे धीरे दबंग लोगों को स्वयं सत्ता में आने का मोह हो गया | अधिकांश पार्टियों को यह मज़बूरी महसूस होने लगी | पराकाष्ठा यहाँ तक हो गई कि कांग्रेस के सत्ता काल में बिहार के एक बहुत विवादास्पद दबंग नेता को राज्य सभा के नामजद सदस्य की तरह भेज दिया गया |

अब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार संसद में पांच साल की सजा वाले मामलों में तीस दिन से अधिक जेल में रहने वाले पी एम , सी एम, मंत्री को तत्काल पद से हटने के प्रावधान का कानून लाई तो कांग्रेस और उनके साथी विरोधी दलों ने संसद में अशोभनीय हंगामा कर दिया। संयुक्त संसदीय समिति इस कानून को और ध्यान से विचार करके पास करने फिर संसद में लाएगी।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सितम्बर 2018 को एक फैसले में निर्देश दिया था कि दागी उम्मीदवार अपने आपराधिक रिकॉर्ड को प्रमुखता से सार्वजनिक करें , ताकि जनता को जानकारी रहे | राजनीतिक दल जिन दागियों को जिताऊ उम्मीदवार बताकर चुनाव मैदान में उतार देते हैं, उनके बचाव में वे न्यायशास्त्र के इस सिद्धांत की आड़ लेते हैं कि आरोपित जब तक न्यायालय से दोषी न करार दिया जाए, तब तक वह निर्दोष ही माना जाए। यह दलील उन मामलों में भी दी जाती है जिनमें

उम्मीदवार के संगीन अपराध में लिप्त होने का आरोप होता है। अनेकानेक गंभीर मामलों में सबूतों के साथ चार्जशीट होने पर तो नेता और पार्टियों को कोई शर्म महसूस होनी चाहिए | चुनाव आयोग ने तो बहुत पहले यही सिफारिश कांग्रेस राज के दौरान की थी कि चार्जशीट होने के बाद उम्मीदवार नहीं बन पाने का कानून बना दिया जाये , लेकिन ऐसी अनेक सिफारिशें सरकारों और संसदीय समितियों के समक्ष लटकी हुई हैं |

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सांसदों – मंत्रियों आदि पर विचाराधीन मामलों के लिए अलग से अदालतों के प्रावधान और फैसले का आग्रह भी किया , लेकिन अदालतों के पास पर्याप्त जज ही नहीं हैं |

जहाँ तक सरकारी खजाने से चोरी और भ्रष्टाचार के मामलों की बात है बिहार में राहुल जिन लालू यादव परिवार के कन्धों का सहारा ले रहे हैं , वे ‘ चारा चोर ‘ के` आरोपों वाले पशुपालन घोटाले में जेल की लम्बी सजा भुगते हैं और अब भी दामन बेदाग नहीं है। फिर कांग्रेस के इंदिरा राज से मनमोहन सिंह राज के दौरान अरबों रुपयों के भ्रष्टाचार के घोटालों की सूची लम्बी होती गई है। हिमाचल के एक कांग्रेसी मुख्यमंत्री रामलाल को ‘ लकड़ी चोर ‘ के गंभीर आरोपों में हटाना पड़ा यानी जंगलों के पेड़ काटकर करोड़ों की लकड़ी के अवैध धंधे का मामला था। बचाव के लिए उसे राज्यपाल तक बनाया गया , जिसने आंध्र की चुनी हुई रमा राव की सरकार को ही बर्खास्त कर दिया जिसे राष्ट्रपति के हस्तक्षेप से पुनः मुख़्यमंत्रीं बनाना पड़ा। कर्नाटक का तेलगी स्टाम्प पेपर घोटाला (2003) – अरबों रुपये का फर्जी स्टाम्प पेपर घोटाला , कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला (2010) , 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला (2008–11 ) , कोयला घोटाला (2012) की यादें ताजा हैं। वही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल जिस तरह के शराब घोटाले में फंसे। ऐसे आरोपों के मामले मध्य प्रदेश में कांग्रेस के अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह तक पर रहे और अदालत पहुंचे थे। इन सबसे गंभीर कांग्रेस सरकार बचाने के लिए हुआ सांसद रिश्वत काण्ड में सहयोगी दलों के नेताओं की सजा का रिकॉर्ड भी है।

इसलिए राहुल गांधी और कर्नाटक में तेलगी और वीरप्पन कांडों के समय सत्ता में रहे पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को असली राजनीतिक नफा नुक्सान समझ लेना चाहिए।