कर्नाटक में कांग्रेस की विशाल जीत
BJP के अधिकांश ज़मीनी कार्यकर्ताओं को कर्नाटक में कांग्रेस की शानदार विजय पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ है। BJP के कुछ समर्पित कार्यकर्ताओं को तो कर्नाटक की हार का विशेष दुख भी नहीं है क्योंकि वहाँ विगत कुछ वर्षों से जिस प्रकार की सरकार चल रही थी वह BJP के लिए कोई गर्व की बात नहीं थी। एक BJP के सक्रिय कार्यकर्ता ने अपने ठेके के लिए 40 प्रतिशत कमीशन माँगे जाने का आरोप लिखित रूप से लगा कर आत्महत्या कर ली थी। इस आत्महत्या की गूंज चुनाव तक पूरे कर्नाटक में छायी रही। BJP के PFI के आतंक के मुद्दे के विरुद्ध कांग्रेस ने 40% कमीशन के आतंक को अपना मुख्य मुद्दा बनाया। BJP भ्रष्टाचार के विरुद्ध कोई प्रभावी कार्रवाई करती हुई भी नहीं दिखाई नहीं पड़ी थी। कांग्रेस ने बड़ी एकाग्रता और चतुराई से केवल अपने मुद्दों को उठाया और मोदी के विरुद्ध कोई मोर्चा नहीं खोला। कर्नाटक मे पिछले कुछ दशकों से सत्तारूढ़ सरकारें चुनावों में एंटी इनकम्बेंसी के कारण लगातार बदलती रही हैं। फिर भी केवल यह तथ्य BJP की करारी हार को नहीं समझा सकता है।
अनेक वर्षों से शिथिल पड़ी और निराशा में डूबी कांग्रेस में इस शानदार विजय से एक नया रक्तसंचार हो गया है। उसके दूसरे राज्यों के कार्यकर्ताओं में भी उनका गिरा हुआ मनोबल अब उत्थान की ओर है। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व अर्थात गाँधी परिवार का आत्मविश्वास भी वापस लौट आएगा। उनके निकटस्थ सलाहकारों की स्थिति भी और मज़बूत हो जाएगी। उन्होंने आनन फ़ानन में यह हिसाब बता दिया कि भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी जिन क्षेत्रों से गुज़रे थे वहाँ पार्टी को दो तिहाई सीटें मिली हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों को अब राहुल गांधी को और गंभीरता से लेना होगा। फिर भी कर्नाटक की कांग्रेस की विजय का मुख्य श्रेय डी के शिवकुमार और सिद्धारमैया के सशक्त चुनाव संचालन को जाता है। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होने आपसी प्रतिद्वंदिता को किनारे रखकर तालमेल से कार्य करने का एक उदाहरण अन्य राज्यों के कांग्रेसियों के समक्ष प्रस्तुत किया है।
इस चुनाव में JDS को भी झटका लगा है। यह पार्टी मैसूर क्षेत्र में अपना गढ़ बनाकर किंग मेकर की भूमिका अदा करना चाहती है। प्रथम दृष्ट्या कहा जा रहा है कि उसका मुस्लिम वोट बैंक खिसक कर कांग्रेस की ओर चला गया है। मुस्लिम वोट बैंक की पोषक क्षेत्रीय पार्टियों के लिए यह अच्छे भविष्य का संकेत नहीं है। इन चुनावों से हिंदू वोटों को जातियों के आधार पर बाँटने को और प्रोत्साहन मिलेगा। जहाँ BJP हिंदुओं को धर्म के नाम पर एक करने का प्रयास करेगी वहीं विपक्षी दल जातिगत भावनाओं को भड़काकर हिंदू एकीकरण को कमज़ोर करने का भरसक प्रयास कर सकते हैं। जातियों की गणना करने की माँग और ज़ोर पकड़ सकती है। BJP के लिए यह भी निराशाजनक है कि कर्नाटक में उसका ध्रुवीकरण करने का प्रयास विफल रहा है। उसे ध्रुवीकरण करने के लिए नए मुद्दे ढूंढने होंगे।
कुछ क्षेत्रीय क्षत्रपों को कांग्रेस की विजय की विशालता पसंद नहीं आएगी। विपक्ष दलों के बीच कांग्रेस का दबदबा बढ़ेगा और कुछ लोगों की प्रधानमंत्री पद प्राप्त करने की महात्वाकांक्षा पर अंकुश लगेगा। यद्यपि सामान्य रूप से यह लगता है कि कर्नाटक की इस विजय से विपक्षी एकता को 2024 के लोक सभा चुनाव के परिपेक्ष्य में बल मिलेगा परन्तु इसमें कुछ कठिनाइयां बढ़ भी सकती हैं।
कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी ने अनेक लोक- लुभावन ख़ैरात बाँटने की घोषणा की है। कर्नाटक भारत का तीसरे नंबर का सबसे समृद्ध राज्य है और उसका बजट इन घोषणाओं का भार सहन कर लेगा। आशंका यह है कि बड़ी जनसंख्या वाले पिछड़े राज्यों में भी राजनैतिक दलों के बीच में घोषणाओं की बोली लगाने की होड़ लग सकती है। सरकारी कोष को राजनीतिक निहित स्वार्थों के लिए लुटा देने से अधोसंरचना की दीर्घकालिक योजनाओं में बाधा आ सकती है और आर्थिक प्रगति खटाई में पड़ सकती है। भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पीछे खिसक सकता है। अगले कुछ वर्षों तक राजनीतिक घोषणाओं की बहार चलती रहेगी और राजनीति और आर्थिक विवेक में राजनीति हावी हो जाएगी।
कर्नाटक में BJP के प्रचार का पूरा भार मोदी के कंधों पर था। BJP का कर्नाटक का नेतृत्व लचर था इसलिए मोदी की भूमिका और भी केंद्रबिंदु में आ गई। BJP की हार का ठीकरा उनके पास तक पहुँचता है। लेकिन विपक्षी दलों को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि मोदी की राष्ट्रीय छवि को कोई नुक़सान पहुँचा है। कर्नाटक का चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़ा गया था। मोदी कर्नाटक की हार के बाद भी सशक्त राष्ट्रीय नेता हैं। आगामी छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में यदि BJP चुनाव हार जाती है तो भी मोदी को कम आंकना विपक्षी दलों के लिए ख़तरनाक होगा। पूरे देश में बड़ी संख्या में लोगों की यह अनुभूति है कि देश की राष्ट्रीय समस्याओं का दृढ़ता से सामना मोदी के समान फ़िलहाल भारत में कोई और नेता नहीं कर सकता है। फिर भी BJP को सभी राज्यों में सशक्त स्थानीय नेतृत्व को बढ़ावा देना चाहिए और अति केंद्रीकरण से दूर रहना चाहिए।
कर्नाटक में कांग्रेस की जीत को दलगत दृष्टि से उठकर अगर देखा जाए तो यह जीत भारतीय प्रजातंत्र के लिए एक स्वस्थ सबेरा है। हमारा संविधान भारत की जनता को सार्वभौमिक अधिकार देता है और जनता को इस अधिकार का उपयोग करते रहना चाहिए।
एन. के. त्रिपाठी
एन के त्रिपाठी आई पी एस सेवा के मप्र काडर के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। उन्होंने प्रदेश मे फ़ील्ड और मुख्यालय दोनों स्थानों मे महत्वपूर्ण पदों पर सफलतापूर्वक कार्य किया। प्रदेश मे उनकी अन्तिम पदस्थापना परिवहन आयुक्त के रूप मे थी और उसके पश्चात वे प्रतिनियुक्ति पर केंद्र मे गये। वहाँ पर वे स्पेशल डीजी, सी आर पी एफ और डीजीपी, एन सी आर बी के पद पर रहे।
वर्तमान मे वे मालवांचल विश्वविद्यालय, इंदौर के कुलपति हैं। वे अभी अनेक गतिविधियों से जुड़े हुए है जिनमें खेल, साहित्यएवं एन जी ओ आदि है। पठन पाठन और देशा टन में उनकी विशेष रुचि है।