चमत्कार की उम्मीद में जुटती भीड़ समाज में व्याप्त दरिद्रता का प्रतीक…

1387

चमत्कार की उम्मीद में जुटती भीड़ समाज में व्याप्त दरिद्रता का प्रतीक…

इन दिनों मध्यप्रदेश के दो धार्मिक स्थान बहुत चर्चित हैं। एक तो छतरपुर जिले का बागेश्वर धाम और दूसरा सीहोर में कुबेरेश्वर धाम। दोनों धार्मिक स्थानों के धार्मिक प्रमुख चमत्कारिक अनुभूति कराने के लिए चर्चा में हैं। बागेश्वर धाम के प्रमुख पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री और कुबेरेश्वर धाम के प्रमुख पंडित प्रदीप मिश्रा मध्यप्रदेश के चमत्कारी संत-कथावाचक बतौर देश-विदेश में अपना प्रभाव स्थापित करने में सफल हुए हैं। पंडित प्रदीप मिश्रा को यह मुकाम पाने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा, तो धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री मात्र 26 साल की उम्र में ही चमत्कारिक के साथ-साथ सनातन धर्म और भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग के पर्याय बन गए हैं।

चमत्कार की उम्मीद में जुटती भीड़ समाज में व्याप्त दरिद्रता का प्रतीक...

पंडित प्रदीप मिश्रा का रुद्राक्ष वितरण कार्यक्रम बहुत चर्चित हो गया है। इससे पहले भी रुद्राक्ष वितरण के दौरान अव्यवस्थाओं के आलम में प्रशासन को रुद्राक्ष वितरण बंद कर वितरण व्यवस्था अपने हाथ में लेनी पड़ी थी। और वही गलती पंडित प्रदीप मिश्रा ने इस बार भी कर दी और रुद्राक्ष वितरण का ऐलान कर दिया। सीहोर में रुद्राक्ष वितरण की सूचना मिलने पर में पूरे देश से लाखों भक्त एकजुट हो गए। यह भक्त निश्चित तौर से वही परेशान लोग हैं, जो आर्थिक, मानसिक, स्वास्थ्यगत दरिद्रता के चलते रुद्राक्ष पाकर जीवन में चमत्कारिक बदलाव देखने के लिए लाखों की संख्या में पहुंचे भी और भारी भीड़ और अव्यवस्थाओं में भी दबने, कुचलने और मरने की परवाह किए बिना रुद्राक्ष पाने की होड़ में लगे रहे। सूचना आई कि सीहोर में अव्यवस्थाओं ने दो महिलाओं और एक बच्चे की जान ले ली। पंडित प्रदीप मिश्रा के सीहोर स्थित कुबेरेश्वर धाम में ऐसी घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं। समझ में यह नहीं आता कि यदि रुद्राक्ष चमत्कारिक है तो वितरण में ही इतने विघ्न क्यों आते हैं और वितरण बंद क्यों करना पड़ता है? आखिर पंडित प्रदीप मिश्रा यह समझने को तैयार क्यों नहीं होते कि यदि रुद्राक्ष बांटने को वह अपना परम कर्तव्य मानते हैं तो उससे पहले व्यवस्थाएं पुख्ता रहें, इसकी भी चिंता कर लें। आखिर मजबूर लोगों की बदकिस्मती का मजाक उड़ाने की अनुमति क्या कोई धर्म देता है? क्या भगवान यह कहते हैं कि उनकी महिमा का बखान कर उनकी ही गरिमा का मखौल उड़ाने का अवसर लोगों को उपलब्ध कराने का काम खुद को महिमामंडित करने के लिए धर्मप्रमुख करें। ऐसे में क्या पंडित प्रदीप मिश्रा की नैतिक, धार्मिक और कानूनी जिम्मेदारी कुछ भी नहीं बनती।

16 02 2023 chatarpir 23331047

एक सूचना बागेश्वर धाम से भी आई कि किडनी की बीमारी से परेशान महिला की बागेश्वर में मौत हो गई और वायरल वीडियो में उसका परिजन विलाप कर रहा है। बागेश्वर के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पर बागेश्वर सरकार, संयासी बाबा और संत परंपरा की विशेष कृपा है, ऐसा वह बार-बार दोहराते हैं। यहां पर गरीब कन्याओं के विवाह का बड़ा आयोजन होने वाला है। यहां राजनैतिक हस्तियां भी अक्सर पहुंचती हैं और धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री से अकेले में गुफ्तगू भी करती हैं। वहीं भीड़ में बैठे लोगों की बात को इस तरह सार्वजनिक किया जाता है कि अगर वह मजबूर और दरिद्र न हो तो महाराज के ऐसे व्यवहार को कतई बर्दाश्त न करे। ऐसे में यहां पहुंचने वाले बीमार लोगों की खैरियत की जिम्मेदारी तो महाराज की बनती ही है। और जब महाराज खुद ही स्वीकार करते हैं कि पहले दवा और बाद में दुआ, तो फिर यहां पहुंचने वाले बीमार लोगों से यही निवेदन किया जाए कि चमत्कार के चक्कर में न पड़ें और बीमार हैं तो अपने घर पर ही इलाज कराएं। क्योंकि किसी तरह का चमत्कार व्यक्ति की जान नहीं बचा सकता। और कहा जाए तो कोई चमत्कार किसी व्यक्ति के जीवन में कोई बदलाव नहीं ला सकता। सिद्ध संत तो सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय के लिए अपने तपोबल से ही हजारों किलोमीटर दूर बैठे लोगों के जीवन में बदलाव लाने में समर्थ होते हैं। इसके सैकड़ों उदाहरण भरे पड़े हैं। बागेश्वर के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री तो खुद ही सैकड़ों करोड़ का कैंसर हॉस्पिटल बनवाने की घोषणा कर चुके हैं। ऐसे में भीड़ जुटाकर खुद की महिमा बढ़ाने का औचित्य आखिर क्या है?


Read More… Sehore Chaos : सीहोर मामले में मानवाधिकार ने स्वतः संज्ञान लिया, 5 बिंदुओं पर जवाब मांगा! 


भारत में सनातनी संत परंपरा है और संतों के तप और सिद्धियों की स्वीकार्यता से परहेज नहीं किया जा सकता। लेकिन हाल में हो रहे वाकये धर्म के वास्तविक स्वरूप से अनभिज्ञ लोगों को धर्म पर फिजूल बयानबाजी करने का अवसर देते हैं। जर्मनी के परिप्रेक्ष्य में मार्क्स के आलेख “धर्म अफीम है” का प्रयोग भारतीय संदर्भ में करने का आमंत्रण देते हैं। ऐसे में धर्म में चमत्कार का तड़का लगाने से हमारे सनातन धर्म के पहरेदारों को निश्चित‌ तौर पर परहेज करना चाहिए। ताकि भीड़ के रूप में देश और समाज में व्याप्त दरिद्रता का भौंडा प्रदर्शन धार्मिक स्थानों पर न हो सके। भारत भूमि में लाखों संत अपने अपने तरीके से लोक कल्याण में जुटे हैं, जहां भीड़ भी होती है लेकिन अव्यवस्थाओं का साया ऐसे स्थानों पर नहीं पड़ता।