सतीश सोनी की विशेष रिपोर्ट
उन्हेल (उज्जैन): मनुष्य की मौत हो जाने पर उसका अंतिम संस्कार हम विधि-विधान से कर मृतात्मा के प्रति परम्परागत बारह दिनों तक संस्कृति के अनुरूप ब्राह्मण द्वारा कर्मकांड क्रियाएं सम्पन्न करते हैं।
लेकिन यही मृत्यु किसी चौपायें की हों जाने पर उसकी शवयात्रा मानव संस्कृति अनुसार होती है तो वह एक मिसाल बन जाती है।
जी हां हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले के उन्हेल तहसील के ग्राम सुरजाखेड़ी की जहां एक गाय की मौत हो जाने पर ग्रामीण जनों ने सार्वजनिक रूप से उसकी अंतिम बिदाई ढोल नगाड़ों के साथ निकालते हुए समूचे गांव में निकाली अंतिम यात्रा, इस अंतिम यात्रा में कुछ लोगों की आंखों से आंसू भी टपकते दिखाई दिए कारण था प्रतिदिन गाय का उनके घरों पर आकर रोटी खाना।
सुरजाखेडी के ग्रामीण जनों ने बताया कि इस गौ माता का कोई मालिक नहीं था और पिछले कई सालों से यह गांव में ही रहती थी।
गाय घर घर जाकर रोटी खा कर अपना पेट भरती थी। गांव वालों का कहना था कि सुबह-शाम मंदिर में होने वाली आरती के समय यह गाय मंदिर भी जाती थी और जब तक आरती पूर्ण नहीं हो जाती तब तक गाय उसी स्थान पर खड़ी रहती थी। ग्राम वासियों का कहना है कि गो माता का स्वभाव भी बहुत सरल होने के कारण वह ग्राम के रहवासियों की चहेती बन गई थी। ऐसे में गाय की अकस्मात मौत हों जाने पर गांव में सन्नाटा पसरा रहा। परिवार के सदस्यों की भांति ग्रामीणजनों ने गौ माता की अंतिम यात्रा विधि-विधान के साथ निकाल कर उसे साड़ी चुनरी ओढ़ाते हुए बिदाई देकर गांव की भूमि में इसका अंतिम संस्कार किया।
ग्रामीणों का कहना है कि यह हमारे परिवार की सदस्य की तरह थी इसलिए हम एक सामुहिक भोज (भंडारा) भी आयोजित कर रहे हैं और समूचा ग्राम इस सहभोज में शामिल होगा।
बता दें कि किसी शहर या गांव में किसी भी चोपाए की मृत्यु हो जाने पर उसको दो महिलाएं एक बैलगाड़ी में रखकर खुद बेलगाडी में बेल के स्थान पर स्वयं गाड़ी को खींच कर ले जाती है लेकिन सुरजाखेडी में ग्रामीणजनों ने ससम्मान गाय को मृत्यु पश्चात एक जेसीबी की सहायता से समूचे क्षेत्र में घुमाते हुए अंतिम संस्कार किया।