भारतीय जनता पार्टी के नेता और केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते आदिवासियों में अच्छा जनाधार रखते हैं! लेकिन, वे इस बात का दिखावा नहीं करते कि वे आदिवासी नेता हैं। उनसे बात करके लगता है कि देशभर के आदिवासियों में उनकी जड़ें काफी गहरी है। वे खुद इसी समुदाय से हैं और मध्य प्रदेश के अलावा हिन्दीभाषी राज्यों के आदिवासियों की मन: स्थिति को अच्छी तरह समझते हैं। उन्हें आदिवासियों के देशभर में चल रही योजनाओं की जानकारी भी कंठस्थ है और राजनीतिक रूप से भी अपने समुदाय के मूड को जानते हैं। वे आदिवासियों के राजनीतिक मूड पर भी नजर रखते हैं!
हाल ही में हुई इंदौर यात्रा के दौरान एक मुलाक़ात में उन्होंने कहा कि काम की व्यस्तता के कारण कई बार आदिवासियों के बीच नहीं जा पाता हूँ। लेकिन, अब वे प्रदेश और देश के आदिवासी क्षेत्रों में जाने की योजना बना रहे हैं। वे स्थानीय आदिवासी नेताओं से लगातार संपर्क में रहते हैं, पर वे उन आदिवासियों के बीच जाना चाहते हैं जो उनसे मिलने दिल्ली नहीं आ पाते! वे उनके पास जाएंगे, उनसे बात करेंगे और उनकी समस्याओं को जानेंगे! कुलस्ते ने स्वीकार किया कि मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार आदिवासी क्षेत्रों के लिए अच्छा काम कर रही है। लेकिन, वे आदिवासी आज जिस स्थिति में हैं, अभी और उनके लिए बहुत से काम किए जाने की जरूरत है। खासकर रोजगार और सामाजिक उत्थान के मामले में काम करने की जरूरत है।
आदिवासियों को हिंदुओं से अलग माने वाले मुद्दे से जुड़े एक सवाल पर उन्होंने कहा कि आज अगर हिंदू समाज की कोई सही बात करता है, तो वो आदिवासी ही हैं। आदिवासियों को हिंदुओं से कभी अलग नहीं किया जा सकता। केंद्रीय राज्य मंत्री कुलस्ते ने कहा कि आदिवासी पहले सनातनी हिन्दू हैं। इनकी और हिन्दुओं की पूजा पद्धति में कोई अंतर नहीं है। कुछ लोग आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग उठा रहे हैं, यह गलत और धर्म और समाज को बांटने की कोशिश है। फग्गन सिंह कुलस्ते ने यह भी कहा कि हिंदू धर्म और संस्कृति को बनाए रखने का काम भी आदिवासियों ने ही किया है। आरक्षण से पहले का जो इतिहास रहा है, उसे देखा जाना चाहिए। आदिवासियों को बांटने का जो प्रयास हो रहा है, वह गलत है। हम आदिवासियों को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासियों के धर्मांतरण को रोकने के लिए भी ठोस इंतजाम किए जाने चाहिए। इस तरह की शिकायतें अकसर मिलती रहती है। समाज को तोड़ने की ऐसी कोशिशें सही नहीं है।
उन्होंने कहा कि आदिवासियों के लिए ‘पेसा एक्ट’ (पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार विधेयक) को देश के सभी राज्यों में लागू किया जाना चाहिए। इसके साथ ही आदिवासियों को एकजुट होकर सरकारों तक अपनी कोई लंबित मांगे भी पहुंचाई जानी चाहिए, जो सरकार की नजर से चूक जाती है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों के लिए संसद में पारित हुए ‘पेसा एक्ट’ को सभी राज्यों में लागू करवाने को लेकर दिल्ली में बैठक हुई थी। केंद्र सरकार इस दिशा में कदम उठा रही है। फग्गन सिंह कुलस्ते ने कहा कि हम चाहते हैं कि कम से कम 10 राज्यों में तो यह ‘एक्ट’ वहां की सरकारें लागू करें। आदिवासी परिषद भी इस मामले में राज्य सरकारों पर दबाव बनाने का काम करें। यदि यह एक्ट प्रभावी होता है तो आदिवासियों के हितों की रक्षा हो सकेगी।
फग्गन सिंह कुलस्ते ने कहा कि भाजपा हमेशा ही छोटे राज्यों के पक्ष में रही है। लेकिन, जो अलग आदिवासी राज्य की मांग उठा रहे हैं, वो ऐसे लोगों की राजनीतिक मजबूरी हो सकती है। उन्होंने कहा कि आदिवासियों की वजह से जंगल बचा है। लेकिन, आज आदिवासियों के सामने खुद को आदिवासी साबित करने का संकट है। आदिवासियों का इतिहास नहीं लिखा गया, क्योंकि हमारे पूर्वज पढ़े-लिखे नहीं थे। इसलिए कभी सही तथ्य सामने नहीं आए। आज इस वर्ग को वोट बैंक बना दिया गया। आदिवासियों के धर्म परिवर्तन के प्रयास भी चल रहे हैं, पर आदिवासियों का धर्मांतरण स्वीकार नहीं किया जाएगा।
उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासियों, जनजातियों, समाज के वंचित और शोषित समाज के विकास के लिए जितना काम भारतीय जनता पार्टी ने किया है उतना किसी भी सरकार ने नहीं किया। मैं स्वयं आदिवासी समुदाय से आता हूं। बीजेपी ने मुझे केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करके जो सम्मान दिया उसके लिए हमारा समाज सदैव बीजेपी का ऋणी रहेगा। केंद्रीय राज्य मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा सरकार केंद्र में आदिवासियों के उत्थान के प्रति बेहद गंभीर है। जनजातियों को समाज की मुख्यधारा के साथ विकास की धारा में शामिल करने के लिए हर संभव कोशिश की जा रही है, कुछ दिनों में इसके सकारात्मक नतीजे सामने आएंगे।
हेमंत पाल
चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।
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