IAS Couple : IAS दम्पति की परेशानी

IAS Couple : IAS दम्पति की परेशानी

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वल्लभ भवन, मंत्रालय में पदस्थ एक IAS दम्पति इन दिनों बडी बेचैनी में नौकरी कर रही है। बेचैनी का कारण और कोई नही बल्कि उनका पॉवरलेस होना बताया जा रहा है। बताते हैं कि यह दम्पति पिछले कई वर्षो से पावरफुल पोस्ट पर रही है। खास बात यह है कि इन्होने अपने पावर के समय दोस्त कम दुश्मन ज्यादा बनाए है लेकिन अब सत्ता के सूत्र जब बदल गए है तो इनसे भी पॉवर रुखसत हो गए है। आजकल यह दम्पति मीटिंग मे भी या तो कम पहुंचती है या पहुचती ही नहीं है।ऐसे मे कुछ चुगलखोरों ने बडी मेडम को अवगत करवाया जिस पर बात इनको नोटिस देने तक पहुंच गई थी लेकिन जैसे तैसे इस दम्पति ने अपने आप को इस नए विवाद से बचा तो लिया, लेकिन लोग यह कहने मे नही चुक रहे है कि इस दम्पति की रस्सी जल गई लेकिन बल नही गया।

*उज्जैन जिला बनेगा MP का नया आर्थिक इंजन*
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव पुरानी लकीर धोने और नई कीर्तिमान स्थापित करने के आदी हैं। परंपराओं से हटके नई परंपरा बनाते हैं और उसका पालन करते हैं।
सबसे पहले उन्होंने इस परंपरा को तोड़ा कि महाकाल की नगरी में मुख्यमंत्री का रात्रि विश्राम नहीं होता। अब मुख्यमंत्री ने उज्जैन में हजारों करोड़ की नई योजनाएं स्थापित कर दी। उज्जैन को महाकाल लोक से निकलकर औद्योगिक लोक बनाने का और साफ सुथरा उज्जैन बनाने का प्लान मुख्यमंत्री ने अपने मानस में रच लिया। उज्जैन मालवा ही नहीं संपूर्ण मध्य प्रदेश का नया आर्थिक इंजन बन गया और इस आर्थिक इंजन को ईंधन मिलेगा मुख्यमंत्री की योजना से। भोपाल उज्जैन हाईवे, इंदौर उज्जैन हाईवे के अलावा उज्जैन के आसपास आध्यात्मिक गतिविधियों के साथ उज्जैन का स्थान या जरूरत के हिसाब से उद्योगों की स्थापना मुख्यमंत्री का उद्देश्य है। और इस नए आर्थिक इंजन के वास्तुकार हैं वरिष्ठ IAS अधिकारी और CM के ACS डॉ राजेश राजौरा। डॉ राजोरा भाजपा की सरकार के पहले सिंहस्थ के कर्ता-धर्ता रहे है और उसके बाद इंदौर के कलेक्टर बने थे। मुख्यमंत्री राजेश राजौरा को प्रतिभावान योग्य और योजनाकार अधिकारी मानते हैं और उनके ऊपर अत्यधिक विश्वास रखते हैं । सीधे शब्दों में कहा जाए तो राजेश राजौरा, मोहन यादव के लिए इकबाल सिंह बैस से कम नहीं हैं। एक बात महत्वपूर्ण है कि प्रदेश के बड़े राजनेता भविष्य में मोहन यादव को राजनीतिक चुनौती देने से नहीं चुकेंगे और इस चुनौती का आधार वर्तमान कलयुग में अर्थव्यवस्था भी रहती हैं। इसलिए मोहन यादव उज्जैन को ही आर्थिक इंजन बनाकर मध्य प्रदेश की राजनीति को साधने की कोशिश में सफल होने जा रहे हैं। संपूर्ण व्यवस्था के सूत्र डॉ राजेश राजौरा और भरत यादव रहेंगे।

*मंडल और बोर्ड की नियुक्तियों मे होगा बवाल*
भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस सहित अन्य दलों के नेताओं को विधानसभा चुनाव के समय तथा उससे पूर्व भाजपा की सदस्यता दिलाई थी। जबकि लोकसभा चुनाव तथा विधानसभा चुनाव में हुई जीत पर इन आयातित नेताओं का कोई भी योगदान नहीं था। लोकसभा की समग्र जीत मोहन यादव की मेहनत और जननायक छवि का परिणाम हैं।

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परंतु अब जबकि सरकार ने स्थिरता से काम करना शुरू कर दिया है, कद्दावर पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष से लेकर स्थानीय विधायक तक जो भी भाजपा में शामिल हुए हैं, किसी न किसी पद की अभिलाषा में लगे हुए । इससे ऐसे में एक तो भाजपा का मूल कैडर खुद ही परेशान हो गया है कि हमारे ही बड़ी संख्या में नेता एडजस्ट नहीं हो पा रहे हैं तब उन नेताओं का क्या ? जिनके कारण पार्टी को ना सीट मिली और ना ही कोई अन्य लाभ। काडर आधारित भारतीय जनता पार्टी के लिए यह नई मुसीबत बनते जा रहा है यदि इन कांग्रेसियों को भाजपा किसी भी बोर्ड या मंडल में शामिल नहीं करेगी। तब यह वादा खिलाफी का आरोप लगाकर भाजपा को अवसरवादी और नॉट कमिटमेंट पार्टी घोषित करेंगे। और यदि इन्हें भाजपा किसी भी मात्रा में उपकृत करती है तो मूल काडर इस तरह से नाराज होगा जैसा लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में हुआ था। यह कहने में कोई संकोच नहीं कि भाजपा की अगली चुनौती अब तीन तरह के लोग हैं। एक सिंधिया के साथ आए हुए तमाम नेता और समर्थक, नम्बर दो विधानसभा और लोकसभा चुनाव के समय ज्वाइन किए गए कांग्रेस के तमाम नेता और नम्बर तीन भाजपा का मूल केडर। अभी मंडल और बोर्ड कि नियुक्ति में लगे नेता संतुष्ट नहीं किए गए तो भारतीय जनता पार्टी की एक दल के रूप में एक सरकार के रूप में आलोचना सुनिश्चित है। इसीलिए कहा जाता था पुराने समय में के रिश्ते और पानी दोनों छान के पीए जाते हैं भाजपा ने थोक बंद सदस्यता दिलाई है अब बीजेपी को थोक बंद समस्याएं मिलेगी यह सुनिश्चित है।

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*महाराज के भाव कम क्यों हुए?*
केंद्रीय मंत्रिमंडल में सबसे अधिक चर्चा पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की रही। विगत 2 सालों से ऐसा लग रहा था कि पूर्व मुख्यमंत्री कभी भी कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री बन सकते हैं और वह भी केंद्र में और उन्होंने न केवल बन कर दिखा दिया वरन पार्टी में भी अग्रणी पंक्ति में शामिल हो गए। टीकमगढ़ के वीरेंद्र खटीक के मंत्री बनने पर भी किसी को आश्चर्य नहीं हुआ।आश्चर्य हुआ तो सावित्री ठाकुर के मंत्री बनने और महाराज के विभागीय भाव कम होने में। महाराज के पूर्व मंत्रालय में यूक्रेन युद्ध से लेकर ग्वालियर में फ्लाइट की संख्या बढ़ाने तक में जबरदस्त काम हुआ था जबकि जबलपुर में इस बात का भारी विरोध हुआ कि फ्लाइट कम कर दी गई। पर महाराज को इस बार दूर संचार विभाग मिला। कहीं ऐसा तो नहीं की महाराज उन पांच प्रमुख लोगों की ग्रुप से बाहर हो गये है जिनपर मोदी और अमित शाह को भारी विश्वास था। वास्तव में यह हुआ है कि महाराज ग्वालियर बेल्ट में अपना वह प्रभाव नहीं दिखा पाए कि जिससे समर्थक वोटर में कन्वर्ट हो जाए। दिल्ली सरकार की टीम ने इस बात को पकड़ लिया था कि ग्वालियर और उसके आसपास कि सभी सीटे संकट में है। कई कद्दावर पुराने भाजपाई नेताओं ने यह खबर पहुंचाई की महाराज का पूरा ध्यान गुना पर है, ना की ग्वालियर और उसके आसपास, लिहाजा कम रिजल्ट भी वहीं आए और जैसे तैसे इन सीटों पर बीजेपी उम्मीदवार सफल हो पाए। महाराज क्षेत्रीय नेता की अपनी छवि को भी नहीं तोड़ पा रहे थे। घूम फिर कर ग्वालियर में इस तरह केंद्रित हो जाते थे जैसे किसी जमाने में मध्य प्रदेश के कद्दावर ब्राह्मण नेता श्रीनिवास तिवारी रीवा के आस पास ही केंद्रित होकर रह गए थे।

*चर्चा दीनदयाल भवन की*
राजनीतिक गलियारों में इन दिनों चर्चा है कि दीनदयाल भवन का वल्लभ भवन के साथ प्रॉपर तालमेल नहीं है और यह बात न सिर्फ बोली जा रही है बल्कि दिखने भी लगी है। चर्चा है कि पार्टी में संगठन महामंत्री के रूप में परिवर्तन हो सकता है। अब यह परिवर्तन यथा स्थिति को बनाए रखे जाने के रूप में होगा या मोहन सरकार के समर्थन में होगा, यही पिक्चर अभी बाकी है। मोहन यादव दीनदयाल शोध संस्थान के कर्ताधर्ता अभय महाजन को संगठन महामंत्री बनाए जाने के पक्ष में हैं क्योंकि मोहन यादव एवं अभय महाजन एक ही धारा के कवि हैं। दूसरी तरफ ऐसा सुना जा रहा है कि कम से कम मध्य प्रदेश को संघ की मूल भावना आधारित राज्य बनाए रखने के उद्देश्य से संगठन महामंत्री दूसरे राज्य से आएगा और नागपुर के द्वारा ही भेजा जाएगा।

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*दीदी को छाछ भी फूंक कर पीना पडेगी*
पश्चिमी मप्र. में धार से सांसद सावित्री ठाकुर के लिए ये समय बल्ले-बल्ले का है। सावित्री दीदी दूसरी बार की सांसद है। इस बार उन पर मोदी जी ने जो विश्वास करके मंत्री बनाया वह दीदी की सदस्यता और लो प्रोफाइल का परिणाम है। लेकिन इस बात का सावित्री दीदी को ध्यान मे रखना होगा कि ये ताज जो है वह कांटों का है क्योंकि PM मोदी हर नेता को लगातार चेक करते है, लेकिन दीदी तो वैसे ही लो प्रोफाइल होकर पार्टी लाइन पर चलती है इसमे कोई शक नही। लेकिन इतना तय है कि सावित्री को छाछ भी फूक कर पीना पडेगी।