IAS Neha Meena: राष्ट्रीय मंच पर झाबुआ की पहचान बना ‘Health Model’. National Conclave में Collector ने रखा जनजातीय विकास का नया विज़न

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IAS Neha Meena: राष्ट्रीय मंच पर झाबुआ की पहचान बना ‘Health Model’. National Conclave में Collector ने रखा जनजातीय विकास का नया विज़न

राजेश जयंत

Jhabua: राजधानी दिल्ली में आयोजित प्रतिष्ठित National Conclave on “आदि कर्मयोगी अभियान” में इस बार झाबुआ ने इतिहास रचा। मंच पर जनजातीय बहुल झाबुआ की कलेक्टर नेहा मीना ने अपने दमदार प्रेजेंटेशन से न केवल झाबुआ का नाम रोशन किया, बल्कि जनजातीय समाज के स्वास्थ्य, पोषण और विकास के लिए एक नया ब्लूप्रिंट भी पेश किया।

दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित इस भव्य कॉन्क्लेव में President Draupadi Murmu सहित देशभर के वरिष्ठ अफसर, नीति-निर्माता और मंत्रालयों के प्रतिनिधि मौजूद थे। इसी मंच पर झाबुआ की कलेक्टर ने अपने अनुभव और आंकड़ों के दम पर जनजातीय जीवन की जमीनी सच्चाई रखी कि कैसे पलायन, सिकल सेल जैसी बीमारियां और संसाधनों की कमी जनस्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं, और किस तरह के नवाचारों,समुदाय- भागीदारी और स्थानीय ज्ञान से इस तस्वीर को बदला जा सकता है।

कलेक्टर मीना का यह प्रेजेंटेशन न केवल एक प्रशासनिक रिपोर्ट था, बल्कि झाबुआ के आदिवासी जीवन से जुड़ा एक संवेदनशील दस्तावेज़ भी बन गया, जिसने उपस्थित सभी अधिकारियों को सोचने पर मजबूर कर दिया

दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित National Conclave on “आदि कर्मयोगी अभियान” में झाबुआ की कलेक्टर नेहा मीना ने जिले का प्रतिनिधित्व करते हुए स्वास्थ्य और पोषण पर केंद्रित प्रेजेंटेशन दिया। Ministry of Tribal Affairs, Government of India द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य जनजातीय क्षेत्रों में सेवा-वितरण और नीतिगत सुधारों को लेकर ठोस रणनीतियां तैयार करना था।

अपने प्रेजेंटेशन में कलेक्टर नेहा मीना ने बताया कि झाबुआ जिले में 651 ग्राम पंचायतों को शामिल करते हुए “आदि कर्मयोगी अभियान” का एक सर्वसमावेशी एक्शन प्लान तैयार किया गया है। यह योजना न केवल स्वास्थ्य और पोषण पर केंद्रित है, बल्कि इसमें जिले की सामाजिक संरचना, सांस्कृतिक विविधता और भौगोलिक कठिनाइयों को भी ध्यान में रखा गया है।

जनजातीय क्षेत्र की वास्तविक चुनौतियां और समाधान”

कलेक्टर ने कहा कि झाबुआ जैसे जिलों में महिलाओं और बच्चों का राज्य से बाहर पलायन पोषण की सबसे बड़ी बाधा है। कई बार गर्भवती महिलाएं और शिशु अपने गांव से दूर चले जाते हैं, जिससे टीकाकरण, एएनसी रजिस्ट्रेशन और पोषण सेवाओं में गैप आ जाता है। उन्होंने सुझाव दिया कि अन्य राज्यों में भी प्रवासी महिलाओं को स्वास्थ्य और पोषण सेवाएं लिंक करने की व्यवस्था की जाए, ताकि “पोषण-श्रृंखला” बाधित न हो।

“मोबाइल मेडिकल यूनिट और सिकल सेल यूनिट की मांग”

कलेक्टर ने Mobile Medical Unit की आवश्यकता पर बल दिया जो गांव-गांव जाकर टीकाकरण, एएनसी रजिस्ट्रेशन और प्राथमिक स्वास्थ्य जांच कर सके। उन्होंने बताया कि झाबुआ जैसे आदिवासी क्षेत्रों में भौगोलिक कठिनाइयों के कारण कई परिवार स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं पहुंच पाते, इसलिए “सेवाओं को जनता तक” पहुंचाना समय की मांग है।

साथ ही उन्होंने Dedicated Sickle Cell Unit स्थापित करने का प्रस्ताव रखा। यह यूनिट जिले में प्रचलित सिकल सेल एनीमिया के स्क्रीनिंग, इलाज और काउंसलिंग पर केंद्रित होगी। उन्होंने कहा- “सिर्फ इलाज नहीं, जनजागरूकता और समय पूर्व जांच ही इस बीमारी को नियंत्रित करने की कुंजी है।”

“स्थानीय ज्ञान और अनुसंधान को जोड़ने की पहल”

कलेक्टर नेहा मीना ने अपने प्रेजेंटेशन में कहा कि जनजातीय समाज के आयुर्वेदिक और पारंपरिक चिकित्सा ज्ञान को मुख्यधारा की आयुष प्रणाली से जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि झाबुआ के कई जनजातीय वैद्य वर्षों से औषधीय पौधों से उपचार करते हैं, जिनके ज्ञान को वैज्ञानिक रूप से संरक्षित और उपयोग में लाने की आवश्यकता है।

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उन्होंने यह भी प्रस्तावित किया कि स्वास्थ्य और पोषण से जुड़े सामाजिक अनुसंधान (Social Research) को प्रोत्साहन दिया जाए, ताकि नीति-निर्माण सिर्फ आंकड़ों पर नहीं बल्कि सामाजिक व्यवहार और परंपराओं पर आधारित हो।

*‘स्वस्थ नारी-सशक्त परिवार’ अभियान और झाबुआ का नवाचार “मोटी आई”*

अपने प्रेजेंटेशन में कलेक्टर नेहा मीना ने जिले के “स्वस्थ नारी, सशक्त परिवार” अभियान की निरंतरता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि महिलाओं के स्वास्थ्य को केंद्र में रखे बिना परिवार और समाज दोनों की प्रगति अधूरी है।

उन्होंने झाबुआ के अभिनव प्रयोग “मोटी आई” का भी उल्लेख किया- जो एक डिजिटल नवाचार है और पोषण निगरानी, बच्चों की BMI ट्रैकिंग तथा ग्राम-स्तर पर डेटा-संग्रह के लिए विकसित किया गया है। यह सिस्टम झाबुआ जिले में स्वास्थ्य एवं पोषण की स्थिति पर रीयल टाइम डेटा उपलब्ध कराता है।

नीति-निर्माण के स्तर पर झाबुआ का योगदान”

कलेक्टर नेहा मीना का यह प्रेजेंटेशन केवल स्थानीय प्रशासनिक अनुभव का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि यह राष्ट्रीय नीति-निर्माण के लिए एक व्यावहारिक मॉडल साबित हुआ। कॉन्क्लेव में उपस्थित विशेषज्ञों और मंत्रालय के अधिकारियों ने झाबुआ के इस प्रयास को “Ground-reality based and replicable model बताया।

कलेक्टर मीना ने कहा- “जनजातीय इलाकों में स्वास्थ्य का अर्थ केवल दवाएं नहीं, बल्कि जागरूकता, पहुंच और विश्वास है। जब समाज खुद अपनी भलाई में भागीदार बनता है, तभी स्थायी सुधार संभव है।”

*अपनी बात-*

दिल्ली के मंच से उठी झाबुआ की यह आवाज़ अब पूरे देश के लिए एक प्रेरणा बन रही है। कलेक्टर नेहा मीना ने साबित किया कि प्रशासन अगर संवेदनशील दृष्टि से काम करे, तो सीमित संसाधनों में भी बड़ा परिवर्तन संभव है।

स्वास्थ्य, पोषण, नवाचार और पारंपरिक ज्ञान के इस संगम ने झाबुआ को राष्ट्रीय नक्शे पर “जनजातीय विकास के आदर्श मॉडल” के रूप में स्थापित कर दिया है।