शंकर शाह और रघुनाथ शाह के Freedom Struggle पर 1 किताब लिखेंगे IAS Rajeev Sharma

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IAS Rajeev Sharma

IAS Rajeev Sharma दो क्रांतिकारियों की अमर गाथा को देंगे एक पुस्तक का रूप 

भोपाल। गोंडवाना साम्राज्य के वंशज क्रांतिवीर राजा शंकर शाह और उनके राकुमार कुंवर रघुनाथ शाह की मुक्ति संग्राम यात्रा पर शहडोल कमिश्नर IAS Rajeev Sharma जल्द ही एक किताब लिखेंगे जिसमें उनके जीवन से जुड़े कई अनछुए पहलुओं का खुलासा किया जाएगा।

क्रांतिवीर राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह की गाथा आत्म उत्सर्ग का अद्भुत अध्याय है। अंग्रेजों ने उनके महल की तलाशी में मिली कविताओं की आठ पंक्तियों को लेकर पिता-पुत्र दोनो क्रांतिवीरों को जबलपुर में तोप से बांधकर उसके निर्मम विस्फोट के जरिए उनको मृत्युदंड दिया था।

IAS Rajeev Sharma ने भ्रमण कर जुटाई जानकारी

IAS Rajeev Sharma इन दोनों क्रांतिकारियों की अमर गाथा को पुस्तक का रुप देने जा रहे है।

इसके लिए IAS Rajeev Sharma ने इन दोनों क्रांतिवीरों से जुड़े स्थलों मंडला, जबलपुर के पुरवा सहित कई स्थानों का भ्रमण कर वहां से इनसे जुड़ी मौलिक जानकारी, कहानियों की जानकारी जुटाई है।

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IAS Rajeev Sharma का कहना है कि इन महान योद्धाओं ने जिस तरह निडरता और गरिमा से मृत्यु का सामना किया, विश्व इतिहास में पिता और पुत्र के एक साथ बलिदान का कोई और उदाहरण नहीं मिलता। राष्ट्र प्रेम की बलिवेदी पर इनका बलिदान हवन कुंड में घी की आहूति जैसा साबित हुआ। समूचे नर्मदा क्षेत्र में जन मानस विदेशियों के विरुद्ध उठ खड़ा हुआ जिसका शमन करने स्वयं साम्राज्ञी विक्टोरिया को आगे आना पड़ा। दुष्ट कंपनी शासन का अंत हुआ।

गोंडवाना की प्रजा आज भी राजा से जननायक बने राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह की स्मृतियों को अपने हृदय में संजोये हुए है।

आमतौर पर लेखकों ने नहीं दी इन दोनों क्रांतिवीरों को अपने लेखों में जगह : IAS Rajeev Sharma

IAS Rajeev Sharma का कहना है कि आमतौर पर लेखकों ने इन दोनों क्रांतिवीरों को अपने लेखों में ज्यादा तवज्जो नहीं दी। अब वे इनकी पूरी कहानी को पुस्तक का रुप देने जा रहे है। 1857 का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ईस्ट इंडिया कंपनी के अत्याचारों और निरंकुशता की उपज थी। विदेशी शासन के क्रूर अत्याचारों से नर्मदा का शीतल जल भी खौलने लगा था।

महाराजा दलपत शाह, संग्राम शाह, वीरांगना दुर्गावती, महाराजा हिरदेशाह जैसे लोकप्रिय शासकों के वंशज राजा शंकर शाह जब अपनी आयु के सत्तर दशक पूरे कर चुके थे। जबलपुर में ब्रिटिश सत्ता के खाते की पूरी तैयारी वे कर चुके थे। लेकिन अंग्रेजों को कानोकान खबर नहीं हुई। किसान और जमीदार भी इस स्वातंत्रय समर में कूद पड़े थे।

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अचानक हुए इस विस्फोट ने अंग्रेजों को इतना भयभीत कर दिया कि मंडला का कमिश्नर महीनों तक अपने मुख्यालय नहीं जा पाया। जब अंग्रेजों को बाद में पता चला कि इस सारे बबंडर का केन्द्र बिन्दु गढ़ा पुरवा में शंकर शाह के आवास में है। तो ब्रिटिश टुकड़ी ने शंकर शाह के महल को घेरकर पिता पुत्र को बंदी बना लिया।

महल की तलाश में एक कविता की आठ पंक्तियां मिली जिसमें दुगा से प्रार्थना की गई थी कि वे गोरों को अपने नुकीले दांतों से संहार करे। अंग्रेजों का पूर्ण विनाश करे। इसी कविता को सबूत मानकर 18 सितंबर को इन महान क्रांतिवीरों को जबलपुर में तोप से बांधकर उड़ा दिया गया था। इस पूरी कहानी पर जल्द ही पुस्तक आने जा रही है।