IAS Transfer List: आखिर कांफ्रेंस के पहले क्यों आई कलेक्टर्स ट्रांसफर लिस्ट!

2509

सुरेश तिवारी की विशेष टिप्पणी

मध्य प्रदेश के प्रशासनिक गलियारों में इस बात को लेकर बड़ी चर्चा हो रही है कि 31 जनवरी को आयोजित कमिश्नर कलेक्टर कांफ्रेंस के एक दिन पहले देर रात में आखिर कलेक्टरों के तबादले क्यों करना पड़े? आखिर इस हड़बड़ी की आवश्यकता क्यों पड़ी?

सामान्यतः यह माना जा रहा था कि मुख्यमंत्री, कांफ्रेंस में कलेक्टरों का परफॉर्मेंस देखकर फिर तबादला सूची जारी करेंगे लेकिन इसका इंतजार न करते हुए पहले किए गए बदलाव की खास वजह सामने आ रही है।

सूत्र बताते हैं कि इस तबादला सूची के पहले इस सोच ने काम किया कि प्रशासनिक स्तर पर जिन कलेक्टरों से मुख्यमंत्री को बात करना है, यदि यह लिस्ट बाद में आती तो उनसे बात करने का कोई मतलब नहीं रह जाता। इसलिए बेहतर है कि ट्रांसफर लिस्ट पहले ही जारी कर दी जाए ताकि वे ज्वाइन कर ले और फिर उसी जिले के कलेक्टर की हैसियत से इस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लें।

इसके बावजूद यह सवाल अपनी जगह है कि जो कलेक्टर नए जिले का कार्यभार ग्रहण कर लेंगे, उनसे मुख्यमंत्री क्या सवाल-जवाब करेंगे! क्योंकि, चार्ज लेने के अगले ही दिन उन्हें इस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेना है।

दरअसल, वैसे भी जिन कलेक्टरों का तबादला किया गया वह नियमों के अनुसार विधानसभा चुनाव के पहले करना था। इसलिए यह बेहतर है कि जो कलेक्टर बनाए जा रहे हैं उनसे मुख्यमंत्री रूबरू हो ताकि उनकी मंशा से अवगत हो सकें। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि जिन कलेक्टर को ताबड़तोड़ हटाया गया और जिन्हें कलेक्टर का कार्यभार नहीं मिला वह अपने आप को असहज महसूस कर रहे हैं।

कल रात की सूची में जिन जिलों में बदलाव किया गया, उसे सामान्य प्रशासनिक फेरबदल नहीं माना जा सकता। हर कलेक्टर की नए जिले में तैनाती और दूसरे को हटाए जाने के पीछे कोई न कोई छुपा कारण जरूर है। यह क्या है, इसको लेकर कुछ बातें तो सामने आ रही है लेकिन अभी भी कारण स्पष्ट नहीं हैं।

पता चला है कि ग्वालियर कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम को ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर से हटाना चाहते थे। यहां तक तो ठीक है और मुख्यमंत्री ने उनकी बात मान भी ली। लेकिन, कौशलेंद्र विक्रम को मुख्यमंत्री अपने सचिवालय में ले आए। इसका सीधा सा आशय हुआ कि सिंधिया को कौशलेंद्र विक्रम से नाराजगी थी, पर मुख्यमंत्री को नहीं है। ख़बरें बताती है कि उनकी जगह जिन अक्षय कुमार सिंह को कलेक्टर बनाया गया, उसके पीछे केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का नाम लिया जा रहा है।

उज्जैन के कलेक्टर आशीष सिंह को लेकर बताया जा रहा है कि उनका ट्रांसफर तो होना तय था लेकिन 2010 बैच के इस अधिकारी को किसी और बड़े जिले की कमान सौंपने की चर्चा थी। महाकाल लोक के निर्माण से लगाकर उसके लोकार्पण तक उनकी मेहनत की तारीफ की गई। यहां तक कि प्रधानमंत्री ने भी उनकी तारीफ की। जो इक्का-दुक्का लोग प्रधानमंत्री से मिल पाए, उनमें आशीष सिंह भी थे।

खरगोन कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम को अभी खरगोन में 1 साल ही हुआ था कि उन्हें उज्जैन कलेक्टर बना दिया गया है। खरगोन दंगे के दौरान उन्हें आनन-फानन में रतलाम से खरगोन भेजा गया था। शासन ने जिस मंशा से उन्हें खरगोन भेजा था उन्होंने उस कार्य को पूरी शिद्दत के साथ निपटाया। कुमार पुरुषोत्तम के तबादले की एक अलग कहानी सामने आ रही है। जब उनका तबादला रतलाम से खरगोन किया गया था, तब ये आश्वस्त किया गया था कि जल्दी ही उन्हें किसी बड़े जिले की कमान सौंपी जाएगी और वही हुआ भी! उनकी कार्यप्रणाली इस तरह की है कि उन्हें शासन और प्रशासन दोनों के चहेते अफसरों में गिना जाता है। वे लगातार चौथे जिले के कलेक्टर बने हैं। रतलाम और खरगोन के पहले वे गुना के कलेक्टर थे।

बड़वानी कलेक्टर शिवराज सिंह वर्मा को उनके बेहतर कार्य परिणामों को देखते हुए बड़वानी से बड़े खरगोन जिले में भेजा गया है।

तबादला सूची में 2014 बैच के सीधी भर्ती के दो अधिकारियों को कलेक्टर बनाया गया है। यह देखने योग्य बात है कि 2013 और 2014 बैच के प्रमोटी IAS अधिकारियों को अभी कलेक्टर बनने का मौका नहीं मिला है। इसके पहले भी 2014 बैच के सीधी भर्ती के अधिकारियों को कलेक्टर बनाया गया है। अनूपपुर की कलेक्टर 2013 बैच की सोनिया मीणा को भी कुछ विवादों के चलते हटाया गया है। वे डेढ़ साल पहले ही कलेक्टर अनूपपुर बनाई गई थी। इस लिस्ट में अभी भी 2012 बैच के कुछ अधिकारी कलेक्टर बनने से वंचित रह गए हैं। इनमें केदार सिंह, राजेश उगारे और विवेक श्रोत्रिय जैसे अधिकारी भी शामिल है।