
श्री अरविंद की मानें तो आजादी अभी अधूरी है…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
वैसे तो 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ भारत अपनी आजादी के 78 साल पूरे कर चुका है। 15 अगस्त 2025 को मनाया जाने वाला 79 वां स्वतंत्रता दिवस समारोह 140 करोड़ भारतीयों के लिए गौरव की बात है। पर एक आम आदमी की हैसियत से देखा जाए तो आजादी सही मायने में पूरी नहीं मिल पाई है। और महर्षि श्री अरविंद के 15 अगस्त 1947 के संदेश पर गौर करें तो भी आजादी अभी अधूरी है।
हालांकि महर्षि श्री अरविंद ने संदेश में लिखा था कि 15 अगस्त 1947 स्वाधीन भारत का जन्मदिन है। यह दिन भारत के लिए पुराने युग की समाप्ति और नए युग का प्रारंभ सूचित करता है। परंतु हम एक स्वाधीन राष्ट्र के रूप में अपने जीवन और कार्यों के द्वारा इसे ऐसा महत्वपूर्ण दिन भी बना सकते हैं जो संपूर्ण जगत के लिए सारी मानव जाति के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक भविष्य के लिए नव युग लाने वाला सिद्ध हो। तो पहला अधूरापन यही है कि हम अपने जीवन और कार्यों के द्वारा संपूर्ण जगत के लिए वह सब नहीं कर पाए हैं जो महर्षि अरविंद ने उम्मीद की थी।
महर्षि अरविंद ने अपने संदेश में आगे लिखा था कि 15 अगस्त मेरा अपना जन्मदिन है और स्वभावत: ही यह मेरे लिए प्रसन्नता की बात है कि इस दिन ने इतना विशाल अर्थ तथा महत्व प्राप्त कर लिया है। परंतु इसको मैं कोई आकस्मिक संयोग नहीं मानता, बल्कि यह मानता हूं कि जिस कर्म को लेकर मैंने अपना जीवन आरंभ किया था उसको मेरा पथ प्रदर्शन करने वाली भगवती शक्ति ने इस तरह मंजूर कर लिया है और उस पर अपनी मुहर भी लगा दी है और वह कार्य पूर्ण रूप से सफल होना प्रारंभ हो गया है।
अब महर्षि श्री अरविंद के सपनों में अधूरेपन की बात करें तो सर्वप्रथम उन्होंने लिखा था कि इन स्वप्नों में पहला था एक क्रांतिकारी आंदोलन जो स्वाधीन और एकीभूत भारत को जन्म दे। भारत आज स्वाधीन हो गया है पर उसने एकता प्राप्त नहीं की है। उन्होंने लिखा था कि देश का विभाजन अवश्य दूर होना चाहिए। आगे लिखा था कि चाहे किसी भी उपाय से हो, चाहे किसी भी प्रकार से हो, विभाजन अवश्य हटना चाहिए, एकता अवश्य स्थापित होनी चाहिए और स्थापित होगी ही, क्योंकि भारत के भविष्य की महानता के लिए यह आवश्यक है।
महर्षि अरविंद का दूसरा स्वप्न था एशिया की जातियों का पुनरुत्थान तथा स्वातंत्र्य। और मानव सभ्यता की उन्नति के कार्य में एशिया का जो महान स्थान पहले था उसी स्थान पर उसका लौट आना। महर्षि के इस स्वप्न में भी तिब्बत जैसी स्थितियां अधूरेपन का अहसास कराते हैं।
महर्षि अरविंद का तीसरा स्वप्न था एक विश्व संघ जो समस्त मानव जाति के लिए एक सुंदरतर, उज्जवलतर और महत्तर जीवन का बाहरी आधार निर्मित करे। मानव संसार का वह एकीकरण प्रगति के पथ पर है। श्री अरविंद ने आगे लिखा था की एकीकरण प्रकृति की आवश्यकता है अनिवार्य गाती है इसकी आवश्यकता राष्ट्रों के लिए भी स्पष्ट है क्योंकि इसके बिना छोटे-छोटे राष्ट्रों की स्वाधीनता किसी भी क्षण खतरे में पड़ सकती है और बड़े तथा शक्तिशाली राष्ट्रों का भी जीवन असुरक्षित हो सकता है। पर वैश्विक एकीकरण का श्री अरविंद का यह सपना भी अधूरा है। चाहे मध्य पूर्व का संघर्ष हो या फिर रूस-यूक्रेन और पूरी दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के संघर्ष।
श्री अरविंद का एक और स्वप्न था संसार को भारत का आध्यात्मिक दान। उन्होंने लिखा था यह पहले से ही प्रारंभ हो चुका है। उनका यह स्वप्न अवश्य पूरा हो रहा है। श्री अरविंद का अंतिम स्वप्न था क्रम विकास में अगला कदम जो मनुष्य को एक उच्चतर और विशालतर चेतना में उठा ले जाएगा और उन समस्याओं का हल करना प्रारंभ कर देगा जिन समस्याओं ने मनुष्य को तभी से हैरान और परेशान कर रखा है जब से उसने वैयक्तिक पूर्णता और पूर्ण समाज के विषय में सोचना-विचारना शुरू किया था। श्री अरविंद का मानना था कि इसके लिए केंद्रीय आंदोलन भारत ही करेगा। पर उन्होंने लिखा था कि ये हैं वे भाव और भावनाएं जिनको मैं भारतीय स्वाधीनता की इस तिथि के साथ संबद्ध करता हूं। क्या ये आशाएं ठीक सिद्ध होंगी, या कहां तक सिद्ध होंगी, यह बात नए और स्वाधीन भारत पर निर्भर करती है।
तो श्री अरविंद के स्वप्न भी जब तक अधूरे हैं, तब तक भारत की स्वतंत्रता सही मायने में पूरी नहीं है। तो आम आदमी के नजरिए से भी आजादी की पूर्णता अभी अधूरी है। चाहे बात रोटी, कपड़ा और मकान की हो या फिर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, कानून-व्यवस्था यानी अपराध, महिला अपराध की। आजादी के 78 साल में बहुत कुछ पाया है तो बहुत कुछ पाना बाकी है। महर्षि अरविंद के स्वप्न पूरा करने में अगर पूरी दुनिया एकजुट होती है तब श्री अरविंद की इच्छा के अनुरूप सही मायने में स्वाधीनता का उत्सव मनाया जा सकता है। अगर श्री अरविंद की मानें तो तब तक, आजादी अभी अधूरी है…।





