भोपाल: खंडवा लोकसभा के इस उपचुनाव में जिस दल की ओर एससी और एसटी वर्ग का झुकाव होगा उसी दल का यहां से सांसद चुना जाएगा। इस सीट पर लभगभ 40 प्रतिशत वोटर एससी और एसटी वर्ग से आते हैं। जबकि करीब 25 प्रतिशत वोट ओबीसी के हैं। इन तीन वर्ग में जो ज्यादा पैठ बनाकर इनके वोट पाएगा वहीं यहां का सांसद आसानी से बन सकेगा।
करीब 42 साल पहले हुए उपचुनाव में यह सीट भाजपा की झोली में गई थी, इस सीट से तब कुशा भाऊ ठाकरे ने उपचुनाव में विजयश्री हासिल की थी।
खंडवा लोकसभा में 19 लाख 68 हजार कुल वोटर हैं। इनमें से सात लाख 68 हजार के करीब एससी और एसटी के वोटर हैं। जबकि पांच लाख के लगभग ओबीसी के वोटर हैं। इन तीनों वर्गो के वोटरों की संख्या साढेÞ बारह लाख पार करती है। ऐसे में इन तीनों वर्गों के जिसे ज्यादा वोट मिलेंगे उसकी जीत उतनी ही आसान होगी। यहां पर सामान्य वर्ग के वोट लगभग चार लाख हैं, इस सीट पर अल्पसंख्यकों के वोट भी तीन लाख के करीब हैं।
*भाजपा की रणनीति*
परिसीमन के बाद इस सीट पर पिछले तीन चुनाव में कांग्रेस ने ओबीसी कार्ड खेला। यहां से अरुण यादव को उम्मीदवार बनाया। जिसमें से एक बार अरुण यादव जीते, जबकि दो बार यहां से नंद कुमार सिंह चौहान ने चुनाव जीते थे। इस बार भाजपा ने ओबीसी उम्मीदवार ज्ञानेश्वर पाटिल को मैदान में उतारा, जबकि कांग्रेस ने राजनारायण सिंह पुरनी को टिकट दिया।
*दिग्गजों को हराते रहे थे चौहान*
इस सीट पर सबसे ज्यादा बार चुनाव नंद कुमार सिंह चौहान ही जीते थे, वे 6 चुनाव इस सीट से जीते थे। इस दौरान उन्होंने कई दिग्गजों को चुनाव हराया। जिसमें पूर्व मंत्री तनवंत सिंह कीर और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके अरुण यादव शामिल है। इनके अलावा उन्होंने शिवकुमार सिंह, महेंद्र कुमार सिंह, अभिताभ मंडलोई को भी चुनाव में हराया।
*ठाकरे भी रहे सांसद*
इस सीट पर 42 साल पहले कुशा भाऊ ठाकरे ने जीत का परचम लहराया था। वर्ष 1979 में यहां पर उपचुनाव हुए थे। जिसमें जनता पार्टी से कुशा भाऊ ठाकरे उम्मीदवार बनाए गए, जबकि कांग्रेस की ओर से शिव कुमार सिंह प्रत्याशी थे। शिव कुमार सिंह के प्रचार में इंदिरा गांधी में पूरी ताकत लगा दी थी, उन्होंने सड़कों पर उतर कर प्रचार किया था। इसके बाद भी ठाकरे ने 38 हजार से अधिक मतों से शिवकुमार सिंह को हरा दिया था। हालांकि एक साल बाद 1980 में हुए चुनाव में कुशा भाऊ ठाकरे इस सीट से शिवकुमार सिंह से हार गए थे।