पहले ही चरण में अलग दिशाओं में दौड़ने लगे प्रतिपक्ष के घोड़े

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पहले ही चरण में अलग दिशाओं में दौड़ने लगे प्रतिपक्ष के घोड़े

मिशन 2024  के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों  ने अपने-अपने स्तर पर तैयारियां करना शुरू कर दी हैं. विपक्ष भी इस बार भाजपा  को सत्ता से हटाने की चाहत में एकजुट होने की पूरी कोशिश में है, लेकिन पहले चरण में ही प्रतिपक्ष के घोड़े और सेनापति अलग दिशाओं में झंडे तलवारे लेकर दौड़ने लगे हैं | प्रतिपक्ष के  नेतृत्व को लेकर लड़ाई रुकने वाली नहीं है | यही नहीं प्रमुख मुद्दों को लेकर गहरे मतभेद हैं |  प्रतिपक्ष के मोर्चे की अगुवाई के बड़े दावेदार राहुल गाँधी और उनके साथी कांग्रेसी नेता दो महीने से  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध अडानी समूह के साथ संबंधों के आरोप  और संसद की संयुक्त जांच समिति की मांग को लेकर अभियान चला रहे हैं , लेकिन प्रतिपक्ष के सबसे वरिष्ठ नेता शरद पवार ने अब खुलकर इस मांग को अनुचित ठहराते हुए अडानी समूह से देश की अर्थव्यवस्था के लाभ तक का समर्थन व्यक्त कर दिया है |

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संसद में भी उनकी राष्ट्रवादी  कांग्रेस पार्टी ( एनसीपी ) और तृणमूल कांग्रेस तथा कुछ अन्य दलों ने इस मुद्दे पर कांग्रेस का साथ नहीं दिया | इसी तरह सावरकर और हिंदुत्व के मुद्दे पर उद्धव ठाकरे की शिव सेना और शरद पवार की पार्टी कांग्रेस के साथ नहीं है | पवार और उनके निकटस्थ प्रफुल्ल पटेल के कई भाजपा संघ नेताओं और अडानी सहित बड़े उद्योगपतियों से पुराने गहरे निजी सम्बन्ध भी रहे हैं | यही नहीं कांग्रेस के भी कुछ बड़े नेता अडानी अम्बानी के करीब रहे हैं | कांग्रेस के सत्ता काल में ही टाटा बिड़ला अम्बानी अडानी और हिंदुजा समूहों को सर्वाधिक लाभ और प्रश्रय मिला | बाद में भाजपा की सरकार आने पर आर्थिक प्रगति के साथ इन समूहों की अंतर्राष्ट्रीय साख बढ़ती गई |

 संभावित गठबंधन को लेकर कांग्रेस  ने साफ कह दिया है कि 2024 के चुनाव में विपक्ष की कमान उसके हाथ में होगी.  सवाल यह उठ रहा है कि क्या अन्य विपक्षी दलों को यह फैसला मंजूर होगा? प्रतिपक्ष के कुछ नेता कांग्रेस की दादागिरी को स्वीकार न करने की घोषणाएं सार्वजनिक रुप से कर चुके हैं | अंदरखाने सियासी गुणा गणित जारी है |  विपक्ष के तमाम नेता विपक्षी गठबंधन बनाने की अपील तो कर रहे हैं, लेकिन  पार्टियों के बीच खटास नजर आ रही है | हालांकि, कई नेताओं ने कांग्रेस के साथ को आवश्यक माना है | इसमें एनसीपी प्रमुख शरद पवार का नाम प्रमुख रहे  हैं |  दरअसल, हर पार्टी की अपनी सियासी ख्वाहिशें हैं. जेडीयू नीतीश कुमार को पीएम उम्मीदवार बताती है वहीं, टीएमसी चाहती है कि ममता बनर्जी विपक्ष की कमान संभालें और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की विपक्ष के नेतृत्व की चाहत किसी से छिपी नहीं है |तृणमूल कांग्रेस के  सांसद अभिषेक बनर्जी ने साफ कहा था कि उनकी पार्टी को लगता है कि ममता बनर्जी एकमात्र महिला मुख्यमंत्री हैं देश में और वह जिस तरह से लड़ती हैं एक भी ऐसा नेता नहीं है जो इस तरह लड़ता हो. पार्टी हर एक चुनाव में बीजेपी के खिलाफ लड़ रही है और जीत रही है |

विपक्षी नेता एकजुटता का संदेश तो दे रहे हैं, लेकिन यह भी बताते चल रहे हैं कि फिलहाल नेतृत्व के बारे में न सोचा जाए | उद्धव ठाकरे के सामना ने लिखा था कि विपक्ष एकजुट हो तो बीजेपी को आगामी लोकसभा चुनाव में हराया जा सकता है | 2024 में प्रधानमंत्री उम्मीदवार कौन होगा ये सब बाद में तय किया जा सकता है |संसद में जब विपक्ष की मांगें भाजपा ने खारिज कर दी तो 16 दलों के सांसदों ने  विरोध मार्च निकाला। आश्चर्यजनक रूप से मार्च में आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी के सदस्य तो शामिल हुए, पर संसद के दोनों सदनों में 142 सदस्यों वाली 13 पार्टियों के सदस्यों ने खुद को इससे दूर रखा। जिन दलों ने विरोध मार्च से कोई मतलब नहीं रखा, उनमें 31 सदस्यों वाली वाईएसआर कांग्रेस के अलावा 36 सदस्यों वाली टीएमसी, 11 सदस्यों वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा), नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी, अन्नाद्रमुक, टीडीपी और केसी राव की पार्टी बीआरएस शामिल थे।

बीजेडी ही ऐसी पार्टी है

  बीजेडी ही ऐसी पार्टी है, जो विपक्ष में होते हुए भी मुद्दों के आधार पर एनडीए सरकार का समर्थन करती है। विपक्ष के बाकी दल तो कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों की तरह ही नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ ही चलने वाले हैं। इसके बावजूद सभी में एकता का अभाव अलग-अलग कारणों से दिखता है।2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता की शुरुआत सबसे पहले पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने की। तीसरी बार सीएम बनने पर उनका उत्साह इसलिए परवान चढ़ा कि भाजपा की लाख कोशिशों के बावजूद बंगाल विधानसभा के चुनाव में उन्हें जीत हासिल हो गयी थी। अपने प्रयास के क्रम में वह दिल्ली-मुंबई के दौरे पर घूमती रहीं। कभी शरद पवार तो कभी उद्धव ठाकरे से उनकी मुलाकातें-बातें होती रहीं। उन्हें हकीकत का एहसास शरद पवार और उद्धव ठाकरे ने ही यह कह कर करा दिया कि कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता की कल्पना बेमानी है। तब से ममता शांत हो गयी हैं। कांग्रेस से नाराज होकर अपनी अलग पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) बनाने वाली ममता बनर्जी ने लंबे समय तक बंगाल में चले वाम शासन का अंत किया था। माना जा रहा था कि इन दोनों पार्टियों का बंगाल में अभ्युदय अब असंभव है। महज बीजेपी से ही ममता का मुकाबला है, जिसने 2 से बढ़ा कर विधानसभा में अपनी सीटें 77 कर ली हैं। इस बीच कांग्रेस-लेफ्ट साथ आ गये हैं। यानी ममता के सामने अब दो दुश्मन होंगे। ममता बनर्जी कांग्रेस से इसलिए खफा हैं कि पश्चिम बंगाल में उनके खिलाफ कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ कांग्रेस ने हाथ मिला लिया है। इसका ताजा दुष्परिणाम यह हुआ कि हाल ही में बंगाल की सागरदिघी असेंबली सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस-लेफ्ट गंठजोड़ के कारण टीएमसी को अपनी सीट गंवानी पड़ी। यही नहीं कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी तो लगातार ममता बनर्जी के खिलाफ अभियान चलाते रहे हैं | ऐसी स्थिति में वे लोक सभा चुनाव में किस मुंह से ममता के समर्थन का लाभ ले सकेंगे ?  तेलंगाना के मुख्यंमंत्री के चंद्रशेखर राव भी प्रधान मंत्री मोदी से खफा हैं। दिल्ली की शराब नीति का शिकार उनकी बेटी हो रही है। चूंकि वे खुद को मोदी के खिलाफ  प्रधान मंत्री के दावेदार बनने के प्रयास में लगे हैं, इसलिए कांग्रेस के साथ जाने का उल्टा असर हो सकता है। संभव है, इसी वजह से उनकी पार्टी ने कांग्रेस के अभियान में साथ देने से परहेज किया।ममता बनर्जी के बाद मुखर रूप से तेलंगाना के सीएम केसी राव ने पीएम मोदी के विरोध के लिए मोर्चा बनाने की कोशिश की, जो अब भी जारी है। इसके लिए सबसे पहले उन्होंने बिहार का दौरा किया। महागठबंधन की सरकार बनते ही सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव से मिलने वे पटना पहुंचे थे। उन्हें जब इस बात का आभास हुआ कि नीतीश कुमार को ही महागठबंधन पीएम फेस बनाना चाहता है तो उन्होंने दूसरी कोशिश शुरू की। अपनी पार्टी को राष्ट्रीय फलक पर लाने के लिए उन्होंने बीआरएस बनायी। बीआरएस के लांचिग समारोह में गैर भाजपा विपक्षी दलों के तीन सीएम और एक पूर्व सीएम को आमंत्रित किया। आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, आप के ही नेता और पंजाब के सीएम भगवंत मान, केरल के सीएम पिनाराई विजयन और समाजवादी पार्टी के नेता यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने केसी राव के मंच की शोभा भी बढ़ाई।बिहार में महागठबंधन की सरकार बनते ही सबसे बड़े सहयोगी आरजेडी ने कहना शुरू किया था कि नीतीश कुमार अब विपक्षी एकता के लिए देश का दौरा करेंगे। वे विपक्ष की ओर से पीएम का फेस होंगे। आरजेडी के सुर में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने भी सुर मिलाना शुरू किया। जेडीयू के नेता यह कहते नहीं थकते कि नीतीश कुमार पीएम मटेरियल हैं। हालांकि नीतीश अपनी ओर से हमेशा इस बात से इनकार करते रहे। अलबत्ता उन्होंने निःसंकोच यह स्वीकार किया कि वे विपक्षी एकता की मुहिम में जुटेंगे। पिछले महीनों में रेल भर्ती घोटाले पर तेजस्वी यादव और लालू परिवार के अन्य सदस्यों सहयोगियों पर सी बी आई , इ डी आदि की जांच तेज होने से नीतीश कुमार का नैतिकता का मुखौटा उतर गया और बिहार में फिर राजनैतिक संकट के आसार बन गए हैं | इसलिए विपक्ष की कमजोरियों , कांग्रेस में निरंतर बिखराव , कर्नाटक , राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेसियों के टकराव से भाजपा को अपने किले मजबूत करने का विश्वास होने लगा है | राजनैतिक लड़ाई अब अधिक तेज होती जाएगी |

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।