Indian Language Satyagraha: परस्पर सम्मान, समन्वय, सामंजस्य का राष्ट्रीय जन जागरण अभियान

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Indian Language Satyagraha:परस्पर सम्मान, समन्वय, सामंजस्य का राष्ट्रीय जन जागरण अभियान

भारत की स्वाधीनता को संपूर्णता प्रदान करने के लिए भारत में भाषा- स्वराज अपरिहार्य है। ‘अपनी भाषा पर अभिमान, सब भाषाओं का सम्मान’ के सामंजस्यपूर्ण उद्घोष के साथ भोपाल से भारतीय भाषा सत्याग्रह का राष्ट्रीय अभियान आरंभ होगा। माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान, भोपाल की इस पहल को अखिल भारतीय स्तर पर हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग और राष्ट्रभाषा प्रचार समितिए वर्धा का समर्थन और सहभागिता प्राप्त है। मध्यप्रदेश में श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति इंदौर, मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, भोपाल, तुलसी मानस प्रतिष्ठान, भोपाल, गांधी भवन न्यास, भोपाल और मध्यप्रदेश लेखक संघ, भोपाल इस अभियान में सहभागी हैं। हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के आणन्द में संपन्न 76वें अधिवेशन में 23 मार्च, 2025 को सर्वसम्मति से भाषा-स्वराज का प्रस्ताव स्वीकार किया गया है। इसका मूल मंत्र है- संकल्प का विकल्प नहीं होता। अर्थात मूल राजभाषा अधिनियम का अनुपालन हो।

सप्रे संग्रहालय के संस्थापक विजयदत्‍त श्रीधर ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में शिक्षा में भाषा विषयक प्रावधान बहुत स्पष्ट हैं। इसमें मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा तथा समुन्नत प्रादेशिक भाषाओं और हिन्दी में उच्चतर शिक्षा की व्यवस्था है। यह सभी भारतीय भाषाओं को महत्व और समतुल्य सम्मान देती है। राजनीतिक स्वार्थ और सत्‍ता के दुष्चक्र में भाषा के सवाल को जिस तरह उलझाया गया है, उसमें समाधान का मार्ग राष्ट्रीय संकल्प से ही निकल सकता है। भारतीय भाषाओं के बीच परस्पर सम्मान और सौहार्द्र से यह गुत्थी सुलझ सकती है। टालमटोल की रीति-नीति से गुत्थी और अधिक उलझ रही है। ‘स्किल’ के रूप में अंग्रेजी और अन्य प्रमुख विश्व भाषाओं के पठन-पाठन से कोई असहमति नहीं है। परंतु राजभाषा के रूप में अंग्रेजी कतई स्वीकार्य नहीं हो सकती। अपनी राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा होता है। जबकि विदेशी राजभाषा का होना गुलामी का कारक होता है। शिक्षा के माध्यम, प्रशासनिक काम-काज, संसदीय कार्य व्यवहार और न्यायालयों की भाषा के रूप में अंग्रेजी का प्रयोग तत्काल प्रभाव से समाप्त किया जाए।

भारतीय भाषा सत्याग्रह के सूत्र इस प्रकार हो सकते हैं-

1. भाषा राष्ट्र की अस्मिता, संस्कृति की संवाहक और नागरिकों का स्वाभिमान होती है। वस्तुतः
भाषा समाज की सामूहिक थाती होती है। अतः समाज का ही दायित्व होता है कि वह अपनी भाषा के गौरव पर आँच न आने दे।
2. हर भारतीय अपनी भाषा पर अभिमान रखे। अन्य भारतीय भाषाओं का सम्मान करे।
3. राजभाषा का प्रावधान निम्नलिखित अनुसार कार्यान्वित होना चाहिए-
3.1 भारत की राजभाषा संविधान में मूलरूप से किए गए प्रावधान के अनुसार हिन्दी हो।
3.2 अंग्रेजी का राजभाषा के रूप में स्थान न हो।
3.3 सभी हिन्दी प्रदेशों की राजभाषा हिन्दी हो।
3.4 आठवीं अनुसूची में सम्मिलित अन्य भारतीय भाषाएँ अपने-अपने प्रदेशों की राजभाषा हों।
ऐसे राज्यों में द्वितीय भाषा के रूप में हिन्दी का स्थान हो।
3.5 भारत सरकार के राजभाषा विभाग में सभी भारतीय भाषाओं के अनुवाद की सक्षम व्यवस्था
हो। हिन्दीतर प्रदेशों से उनकी राजभाषा में आने वाले पत्रों और सभी पत्रकों, प्रस्तावों,
प्रतिवेदनों आदि के त्वरित और प्रामाणिक अनुवाद की प्रभावी प्रणाली विकसित की जाए।
तात्पर्य यह कि भारतीय भाषाओं के बीच संपर्क और संवाद के रूप में अंग्रेजी की घुसपैठ
की गुंजाइश न छोड़ी जाए।
3.6 सभी राज्यों में राजभाषा विभाग की स्थापना हो। उनमें हिन्दी और प्रमुख हिन्दीतर भारतीय
भाषाओं के त्वरित और प्रामाणिक अनुवाद प्रभावी प्रणाली विकसित की जाए।
3.7 अनुवाद में कृत्रिम भाषा का प्रयोग वर्जित हो। सामान्य भाषा का प्रयोग किया जाए।
3.8 बिन्दु क्रमांक 3.5 और 3.6 के क्रियान्वयन के लिए वित्‍तीय संसाधन का व्यवधान नहीं
आए, इसके लिए यथा आवश्यकता बजट प्रावधान किए जाएँ।
3.9 प्रतिवर्ष 14 सितंबर को राजभाषा दिवस मनाया जाए।
4. नागरिक दैनन्दिन जीवन के प्रत्येक क्रियाकलाप में अपनी भाषा का प्रयोग करें। शुद्ध वर्तनी
और सही उच्चारण पर ध्यान दें। अपनी भाषा के अंकों को व्यवहार में लाएँ।
5. जिनकी मातृभाषा कोई जनपदीय लोकभाषा हो, वे घर-परिवार और विवाह आदि सामाजिक कार्यों
में उसी का प्रयोग करें।
6. भारतीय भाषाओं के बीच शब्दों का आदान-प्रदान बढ़ाएँ। हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाएँ
परस्पर शब्दों की ग्राह्यता बढ़ाएँ। सबसे पहले ऐसे शब्द संकलित किए जाएँ जो समान रूप से
सभी भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त हो रहे हैं।
7. भाषाओं में शब्दों की आवाजाही सामान्य प्रक्रिया है। हिन्दी में सैकड़ों ऐसे शब्द प्रचलित हैं जो
अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, पोर्तगीज, अरबी इत्यादि भाषाओं से आए हैं। वे हिन्दी भाषा में रच बस गए
हैं। अन्य भारतीय भाषाओं में भी ऐसा हुआ है। आगे भी होता रहेगा।
8. हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के बीच श्रेष्ठ साहित्य का आदान-प्रदान बढ़े। अनुवाद के
माध्यम से सभी भारतीय भाषाओं की उŸाम पुस्तकों का रसास्वादन हिन्दी पाठकों को सुलभ
हुआ है। साथ ही, प्रदेश तक सीमित भाषा-साहित्य को विशाल हिन्दी पाठक समाज मिला है।
अखिल भारतीय पहचान मिली है।
9. शिक्षा का प्रकट उद्देश्य और लक्ष्य ज्ञानार्जन होता है। शिक्षा मनुष्य को अच्छा मनुष्य, नागरिक
को विवेक संपन्न उŸारदायी नागरिक और सुसभ्य एवं सुसंस्कृत मानव बनाने का आधार
रचती है। यह भाषा नीति व्यावहारिक और राष्ट्रीय हितों की पोषक हो सकती है-
9.1 प्राथमिक शिक्षा का माध्यम केवल मातृभाषा हो।
9.2 माध्यमिक विद्यालयों से विश्वविद्यालयों तक हिन्दी का पठन-पाठन पूरे देश में हो।
9.3 जिन प्रदेशों की अपनी समुन्नत भाषाएँ हैं, वहाँ वही भाषाएँ शिक्षण का माध्यम हों। त्रिभाषा
सिद्धांत के अनुरूप दूसरी भाषा के रूप में हिन्दी अवश्य पढ़ाई जाए।
9.4 हिन्दी क्षेत्रों में विशेष भाषा के रूप में विश्वविद्यालयों में किसी न किसी भारतीय भाषा का पठन-पाठन आवश्यक हो। प्रदेश शासन के अधीन आने वाले विश्वविद्यालय विशेष भाषा के रूप में एक-एक भाषा चुन लें। यथा- तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड, बांग्ला, ओडिया, मराठी, गुजराती आदि। जब हिन्दी क्षेत्रों में अन्य भारतीय भाषाओं को अपनाया जाएगा, तब उन भाषा क्षेत्रों में हिन्दी के प्रति रुझान बढ़ेगा।
9.5 हिन्दी प्रदेशों के अंतर्गत आने वाली लोकभाषाओं, यथा, भोजपुरी, अवधी, ब्रज, बुंदेली, बघेली, मालवी, निमाड़ी, राजस्थानी, कुमाँउनी, गढ़वाली, हिमाचली, कौरवी, मध्यदेशी आदि; संबंधित लोकभाषा के क्षेत्र में आने वाले विश्वविद्यालयों में हिन्दी के एक विशेष प्रश्नपत्र के रूप में उनका अध्ययन आवश्यक हो। उनमें शोध का प्रावधान भी रहे।
9.6 ज्ञान-विज्ञान के वैश्विक संपर्क के लिए अँगरेजी भाषा का अध्ययन कराया जाता है। इसके साथ-साथ फ्रेंच, जर्मन, जापानी, रूसी, मंदारिन, अरबी आदि भाषाओं के शिक्षण की व्यवस्था रहे। परंतु विदेशी भाषाओं को केवल ‘स्किल’ के रूप में अपनाया जाए।

हिन्‍दी साहित्‍य सम्‍मेलन प्रयाग के 76वें अधिवेशन में विजयदत्‍त श्रीधर को ‘साहित्‍यवाचस्‍पति सम्‍मान’ 

10. हिन्दी और भारतीय भाषाओं को रोजगार परक स्वरूप दिया जाए। विज्ञान और प्रौद्योगिकी की
भाhttps://mediawala.in/folk-festival-gangaur-is-the-great-festival-of-nimar/षा के रूप में ढाला जाए।
11. जिस तरह कम्प्यूटर में अंग्रेजी की ‘स्पेल चैक’ की व्यवस्था है, उसी तरह हिन्दी और भारतीय भाषाओं के लिए भी सही शब्द/वर्तनी की जाँच का प्रावधान सूचना प्रौद्योगिकी में विकसित किया जाए।
12. सभी प्रदेशों में प्रतिष्ठानों पर लगाए जाने वाले नामपट पर सबसे ऊपर और प्रमुखता से उसी
प्रदेश की राजभाषा में प्रतिष्ठान का नाम अंकित किया जाना चाहिए।
भाषा-स्वराज के समर्थकों और भाषा अनुरागियों से अनुरोध-
भाषा स्वराज के लिए सकारात्मक भारतीय भाषा सत्याग्रह की सार्थक परिणति आपके सक्रिय सहयोग पर निर्भर करती है। समाज का साझा पराक्रम बड़ी से बड़ी बाधा को दूर कर सकता है। आपके समर्थन और सहभागिता का हार्दिक अनुरोध है। कृपया उपर्युक्त प्रस्ताव पर अपना समर्थन और सुझाव निम्नलिखित ई-मेल/वाट्सएप/पते पर भेजिए। अपना नाम, वाट्सएप और ईमेल जरूर लिखिए।

vijaydatt
विजयदत्‍त श्रीधर
संस्थापक-संयोजक
माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय
एवं शोध संस्थान, भोपाल-462003
मोबाइल नं. 9425011467, वाट्सएप 7999460151

मप्र साहित्य अकादमी का प्रतिष्ठित ‘ईसुरी पुरस्कार’ डॉ सुमन चौरे को देने की घोषणा