इंदौर की प्रेरणादायी शिक्षिका लीला काळे: 92 वर्ष की उम्र में किया देहदान, समाजसेवा का नया अध्याय रचा

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इंदौर की प्रेरणादायी शिक्षिका लीला काळे: 92 वर्ष की उम्र में किया देहदान, समाजसेवा का नया अध्याय रचा

इंदौर। जीवन भर शिक्षा और समाजसेवा को समर्पित रहीं अहिल्याश्रम विद्यालय की पूर्व शिक्षिका लीला काळे ने 92 वर्ष की आयु में भी समाज को एक अंतिम सीख दी – “देहदान, नेत्रदान और त्वचादान” का साहसिक संकल्प निभाकर।

उनका जीवन एक शिक्षिका के कर्तव्य, एक माँ की ममता और एक संवेदनशील नागरिक के आदर्श का अद्भुत उदाहरण रहा।

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**जीवन भर समाज के लिए समर्पित रहीं लीला काळे**

लीला काळे ने अपने पूरे जीवन में शिक्षा को केवल पेशा नहीं, बल्कि सेवा का माध्यम माना। सेवानिवृत्ति के बाद भी वे सामाजिक कार्यों, महिला शिक्षा और संस्कार निर्माण से जुड़ी रहीं।

उनके पुत्र मनीष काळे, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के पूर्व प्रचारक रहे हैं, ने बताया-

“माताजी हमेशा समाज को कुछ देने की बात कहती थीं। उन्होंने खुद तय किया था कि जीवन के बाद भी उनका शरीर समाज के काम आए। हम सिर्फ उनके संकल्प को पूरा कर रहे हैं।”

**परिवार ने निभाया वचन-पूरा किया अंतिम संकल्प**

शुक्रवार दोपहर लीला काळे ने अंतिम सांस लीं। उनके निधन के बाद परिवार ने तुरंत नेत्रदान और त्वचादान की प्रक्रिया पूरी की।

शनिवार, 18 अक्टूबर को उनका पार्थिव शरीर 78, वासुदेव नगर, कलेक्टर तिराहा, इंदौर स्थित निवास पर अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा।

सुबह 11 बजे अंतिम संस्कार और देहदान की प्रक्रिया संपन्न की जाएगी।

**शिक्षा से सेवा तक- एक आदर्श जीवन की कहानी**

लीला काळे, होलकर विज्ञान महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य स्व. प्रभाकर शंकर काळे की धर्मपत्नी थीं।

उनके परिवार में पुत्र मनीष काळे, सौमित्र काळे, पुत्री प्रतिभा (आरती) खेर, तथा दामाद अरुण खेर, जो स्वयं भी होलकर महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य रह चुके हैं, शामिल हैं।

उनका जीवन परिवार और समाज – दोनों के प्रति गहरी जिम्मेदारी की मिसाल था।

इंदौर के शिक्षा जगत में उन्हें “संस्कारों की शिक्षिका” के रूप में जाना जाता था, जिन्होंने अपनी सादगी, अनुशासन और संवेदनशीलता से कई पीढ़ियों को प्रेरित किया।

**अंतिम क्षणों तक समाजसेवा का जज़्बा**

अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी उन्होंने देहदान का संकल्प दोहराया। उन्होंने कहा था-

“शिक्षक का शरीर भी शिक्षा दे सकता है, अगर वह किसी विद्यार्थी की प्रयोगशाला में किसी ज्ञान का हिस्सा बने।”

उनके इस विचार ने देहदान को केवल एक सामाजिक कार्य नहीं, बल्कि ज्ञानदान का प्रतीक बना दिया।

**शहर और शिक्षा जगत में श्रद्धांजलि की लहर**

इंदौर के शिक्षाविदों, विद्यार्थियों और सामाजिक संस्थाओं ने लीला काळे को भावभीनी श्रद्धांजलि दी।

होलकर महाविद्यालय और अहिल्याश्रम विद्यालय परिवार ने उन्हें “शहर की शिक्षण चेतना” बताया।

सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षकों ने कहा- “वे सिर्फ पढ़ाती नहीं थीं, बल्कि जीवन जीना सिखाती थीं।”

**लीला काळे: एक नाम, जो अब आदर्श बन गया है**

92 वर्ष की आयु में भी समाजसेवा की मशाल थामे रहने वाली लीला काळे ने यह सिद्ध कर दिया कि-

“सेवा का कोई अंत नहीं होता, केवल रूप बदलता है।”

उनका यह निर्णय इंदौर शहर और समूचे शिक्षा जगत के लिए प्रेरणास्रोत है।

लीला काळे अब नहीं हैं, पर उनका विचार, उनका समर्पण और उनका शिक्षण आज भी समाज को रोशनी दे रहा है।