हिंदी में चिकित्सा शिक्षा यानी शिक्षा में मातृभाषा के उन्नयन की अभिनव पहल! – डॉ मनोहर दास सोमानी
शिक्षा की व्यवस्था हो चाहे व्यवस्था की शिक्षा दोनों ही स्थिति में भाषा का महत्व सर्वविदित है। व्यावहारिक जीवन शैली हो चाहे अध्ययनशीलता का ककहरा सीखना हो, भाषा के बिना सब व्यर्थ है। बिना भाषा के सीखें, समझें और जानने के कुछ भी सीखना असंभव है। बात जब ककहरे की हो, तो मातृकुल परिवेश की भाषा यानी मातृभाषा का महत्व स्वीकारा गया हैं। मध्यप्रदेश में हिंदी में चिकित्सा शिक्षा इसी दिशा में एक पहल है।
भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में प्रसिद्ध, आधुनिक काल के हिन्दी कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र ने निज भाषा का महत्व बताते हुए लिखा है कि ‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल।’ इसके साथ भारत की निज भाषा से भारतेंदु का तात्पर्य हिंदी सहित भारतीय भाषाओं से रहा हैं। वे आगे लिखते भी हैं कि ‘अंग्रेजी पढ़के जदपि, सब गुण होत प्रवीन। पै निज भाषा ज्ञान के, रहत हीन के हीन।’ अर्थात अंग्रेजी जैसी विदेशी भाषाओं में प्राप्त शिक्षा से आप प्रवीण तो हो जाएंगे, किंतु देश की सांस्कृतिक विरासत एवं व्यावहारिक ज्ञान से अनभिज्ञ रहेंगे, परिणाम स्वरूप आपके द्वारा अर्जित शिक्षा का ज्ञान अपूर्ण ही रहेगा। भारतेंदु ने मातृभाषा में शिक्षा की अवधारणा को भी साकार करने का अनुग्रह किया हैं।
इसी तरह भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक वैभव की स्थापना का प्रथम पायदान निज भाषा यानी मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा में ही निहित हैं। बिना मातृभाषा के ज्ञान और अध्ययन के सब व्यवहार व्यर्थ ही माने गए हैं। आजादी के 75 वर्षों पश्चात स्वतंत्र भारत की पूर्णतः भारतीय परिवेश के अनुकूल हाल ही में एक वर्ष पूर्व घोषित नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी हिन्दी भाषा को प्रोत्साहित करने व शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही हो के लिए शिक्षा नीति में प्रावधान किए गए है। मध्यप्रदेश देश का पहला प्रदेश है, जो हिन्दी माध्यम से तकनीकी शिक्षा का निर्णय पूर्व में ही ले चुका है। साथ ही अब मेडिकल की शिक्षा भी हिन्दी में शुरू की जा रही है।
प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में हिन्दी माध्यम से इसी शैक्षणिक सत्र से शुरुआत करने का निर्णय लिया जाकर मेडिकल विषयों की पुस्तकों का प्रकाशन भी हिन्दी भाषा में.किया जा चुका है। चिकित्सा शिक्षा का हिन्दी भाषा में अध्यापन के क्षेत्र में मध्यप्रदेश देश का प्रथम राज्य बनकर एक और उपलब्धि करने जा रहा है। निश्चित ही प्रदेश शासन का हिन्दी को प्रोत्साहन देने का यह निर्णय केवल विद्यार्थियों के लिए ही नहीं, बल्कि हमारी मातृभाषा हिन्दी की सेवा का भी संकल्प है।
आज उपभोक्तावाद के दौर में आम जनों और अखबारों-किताबों से आगे बढ़कर हिंदी अब व्यापार-व्यवसाय और यूनिकोड के जरिए इंटरनेट की भी बड़ी भाषा बन गई है। किसी भी देश की मातृभाषा उस देश की अस्मिता की पहचान होती है एवं देश की संस्कृति को जीवित रखती है। वह बाहर से लाकर लगाया गया पौधा नहीं हो सकती। भाषा किसी भी राष्ट्र की प्राचीन काल से चली आती हुई, ऐसी वाग्धारा होती है, जिसके रूप तो बदलते रहते हैं, किंतु भाव और अर्थ सतत प्रवाहित होते हैं। हिंदी ऐसी ही एक वाग्धारा है, जो अब ‘हिंग्लिश’ के रूप में विविध माध्यमों से जन-जन की भाषा बनकर प्रवाहमय होकर लोकप्रिय हो रही है। जबकि, हिंदी अत्यंत सरल एवं सुबोध भाषा है। अपनी सरलता, ग्रहणशीलता और सहज अभिव्यक्ति के नैसर्गिक गुणों की वजह से हिंदी भाषा, अन्य भाषाओं की अपेक्षा संपूर्ण विश्व में उच्च स्थान की ओर अग्रसर हो रही है। समर्थ, समृद्ध एवं व्याकरण-सम्मत भाषा होने की वजह से ही हिंदी के माध्यम से ज्ञान-विज्ञान की बातों को विश्व मंच पर कुशलता से व्यक्त किया जा सकता है।
सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से हिंदी की विपुल एवं विविध आयामी शब्द-संपदा से समूचा विश्व तीव्र गति से परिचित हो रहा है। हिंदी की स्वीकार्यता और लोकप्रियता उत्तरोत्तर प्रगति पर है। अपनी वैज्ञानिकता के बल पर देवनागरी लिपि विश्व की अन्य लिपियों से अधिक सहज-सरल है तथा इसकी ध्वन्यात्मक विशेषता के कारण हिन्दी को विश्व की समस्त भाषाओं को लिपिबद्ध किया जा सकता है। जिसके प्रत्यक्ष उदाहरण दिनों दिन दृष्टिगत हो रहे हैं। स्वंतत्रता के पश्चात् से ही हमारी मातृभाषा हिन्दी को तकनीकी व मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में अध्यापन के लिए स्थापित नहीं किया जा सका। आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में देश के प्रथम राज्य की श्रेणी में मध्य प्रदेश में चिकित्सा शिक्षा के अध्यापन का माध्यम हिन्दी में किया जाने का निर्णय निश्चित ही हिन्दी भाषी विद्यार्थियों के लिए एक नए आयाम के साथ ही प्रदेश में चिकित्सा क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि करेगा। हिन्दी में अंतरराष्ट्रीय पदवी/स्तर प्राप्त करने के समस्त गुण हिंदी भाषा में तकनीकी शिक्षा के साथ ही चिकित्सा शिक्षा की पढा़ई का शुभारम्भ एक उज्ज्वल एवं गरिमामय भविष्य सुनिश्चित करेगा।