शिवगंगा की प्रेरणा से ग्रामीण जन चला रहे हैं वृक्षारोपण अभियान- 700 पौधे रोपकर लिया संरक्षण का संकल्प

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शिवगंगा की प्रेरणा से ग्रामीण जन चला रहे हैं वृक्षारोपण अभियान-
700 पौधे रोपकर लिया संरक्षण का संकल्प

झाबुआ से कमलेश नाहर की रिपोर्ट

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“चलो साथियों पेड़ लगाए, बनकर हम सब माली रे।
धरती माता मांग रही है, हमसे तो हरियाली रे।।”

रविवार को ग्राम लिमखोदरा की पवित्र बाबा देव विशिया डूंगर पहाड़ी पर शिवगंगा संस्था और स्थानीय ग्रामीणों के सामूहिक सहयोग से वृक्षारोपण किया गया। हलमा परंपरा के अंतर्गत इस प्रेरक अभियान में लिमखोदरा, धांधलपूरा, सालारपाड़ा, पारा एवं खरड़ू क्षेत्र के लगभग 70 कार्यकर्ताओं ने भाग लिया और 700 पौधों का रोपण कर उनके संरक्षण का संकल्प लिया।

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*मुख्य सहभागिता*
इस आयोजन में कालिया मावी, उकार डामोर, राजेन्द्र डिंडोड़, संजय कटारा, दिनेश चौहान, अर्जुन डामोर समेत कई युवाओं का उल्लेखनीय सहयोग रहा। विशेष उपस्थिति श्री राजाराम कटारा एवं हरिभाई सिंगाड़ की रही, जिनकी प्रेरणा से यह कार्यक्रम एक उत्सव में परिवर्तित हो गया।

*पर्यावरण के साथ भावनात्मक जुड़ाव*
इस अवसर पर संजय कटारा एवं भावेश जी वास्केल का जन्मदिन भी वृक्षारोपण के माध्यम से मनाया गया, जिससे प्रकृति के साथ भावनात्मक जुड़ाव की नई मिसाल प्रस्तुत हुई।

*हलमा परंपरा: जन आंदोलन का रूप लेता प्रयास*
स्थानीय मान्यता के अनुसार बाबा देव का निवास — यह जंगल — उजड़ चुका है, जिससे वे “दुखी” हैं। इस आस्था और पर्यावरणीय चेतना के संयोग से वर्ष 2017 से यहां हर वर्ष वृक्षारोपण और जल-संरक्षण के प्रयास हो रहे हैं। कुछ उल्लेखनीय पड़ाव:
• 2021 : लिमखोदरा में हलमा के ज़रिए 1700 पौधे लगाए गए।
• 2022 : रामा-पारा विकासखंड के 89 गांवों के 5000 लोगों ने हलमा कर 10,000 कंटूर ट्रेंचेज का निर्माण किया — उद्देश्य: “धरती माँ की प्यास बुझाना”।
• 2023 : 2,000 पौधे और 3 क्विंटल सीट बॉल्स का समर्पण।
आज यह परंपरा एक जागरूक जनआंदोलन बन चुकी है जिसमें आस-पास के गांवों के युवा स्वयं आगे बढ़कर भागीदारी कर रहे हैं।

*नई चेतना, नई पहल*
अब पारा नगर और खरड़ू के युवाओं ने अपने जन्मदिन, सालगिरह व अन्य मांगलिक अवसरों पर बाबा विशिया डूंगर पहुँचकर वृक्षारोपण करने की परंपरा शुरू की है। वे पौधों की नियमित देखभाल का संकल्प लेकर, प्राकृतिक पुनर्जीवन के वाहक बन रहे हैं।
यह पहल केवल एक अभियान नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक आंदोलन बन रही है, जो आनेवाली पीढ़ियों को हरित धरोहर सौंपने की ओर बढ़ रही है।