
संसद में मार्शल द्वारा जबरन बाहर निकालने की मिसालें
आलोक मेहता
राज्य सभा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने राज्यसभा के अंदर ( वेल ) में केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल ( CISF ) के कर्मचारियों की तैनाती को अत्यंत आपत्तिजनक। बताया।• 2–5 अगस्त तक राज्यसभा में विपक्ष लगातार इस मुद्दे पर हंगामा करता रहा, एवं मॉनसून सत्र में कई दिनों तक विपक्षी सांसद प्रदर्शन जारी रखा। उपसभापति हरिवंश ने स्पष्ट किया कि इस सुरक्षा बल के कर्मियों की तैनाती सरकार द्वारा नहीं, बल्कि सभामंडल सुरक्षा हेतु की गई है, और “राज्यसभा का संचालन गृह मंत्रालय या किसी बाहरी एजेंसी द्वारा नहीं किया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि सदन में सुरक्षा बल की मौजूदगी कोई नई बात नहीं है; वे “संसद की ही सुरक्षा व्यवस्था का अंग” हैं, और कवायद सदन की गरिमा बनाए रखने के लिए हुई है। केंद्रीय संसदीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि ये निर्णय सभापति द्वारा ही लिए गए थे, ताकि सदन कार्यवाही में शांति बनी रहे।उन्होंने विपक्ष की आपत्तियों को “गलत तथ्यों पर आधारित भ्रामक बयानबाजी” बताया। तथ्य यही है कि 13 दिसंबर 2022 के लोकसभा के अंदर बाहरी लोगों के घुसने के हंगामे के बाद, सम्पूर्ण संसद की सुरक्षा व्यवस्था केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल को सौंप दी गई। मई 2024 से संसद सुरक्षा बल की भूमिका बढ़ी और अंदरूनी कार्यक्षेत्र में सुरक्षा की जिम्मेदारी उन्हें दे दी गई।
इस बार के हंगामे और विवाद पर मुझे संसद में 1971 , 1973 , 1974 के दौरान प्रमुख सोशलिस्ट नेता राजनारायण सभापति के आदेश पर मार्शलों द्वारा कई बार बाकायदा कन्धों पर उठाकर सदन से बाहर निकाले जाने की घटनाएं याद आई। मैं 1971 से पत्रकार के रुप में संसद की कार्यवाही देखता और लिखता रहा हूँ। उस समय संसद की कार्यवाही का टीवी प्रसारण नहीं होता था। संसद के कर्मचारी विवरण शार्ट हेंड से लिखकर रिकॉर्ड करते थे। तब एजेंसी के संवाददाता होने से मुझे लगातार सदन की प्रेस दीर्घा में बैठना होता था। इसलिए उन बातों का ध्यान है। राजनारायण दवरा बार-बार राज्यसभा में आंदोलनात्मक, आक्रामक और अशोभनीय भाषा का प्रयोग करने से सदन की कार्यवाही में बाधा आई। वह सभापति की चेयर के सामने नीचे धरना देकर बैठ जाते थे। तब सदन के नियमों की अवहेलना के कारण उन्हें सभापति के आदेश पर मार्शलों द्वारा कई बार बाकायदा कन्धों पर उठाकर सदन से बाहर निकाला गया। जहाँ तक मुझे स्मरण है उस समय सभापति उप राष्ट्रपति गोपाल स्वरुप पाठक होते थे। राजनारायण एक प्रखर समाजवादी नेता थे, जो कांग्रेस सरकार की नीतियों और कार्यशैली के प्रबल विरोधी थे। उन्होंने बार-बार संसद में नियमों को चुनौती दी, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे उठे। उनके मामलों ने यह सवाल भी उठाया कि कब विरोध जायज होता है और कब वह संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाता है।उन्होंने बार-बार संसद में नियमों को चुनौती दी, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे उठे। उनके मामलों ने यह सवाल भी उठाया कि कब विरोध जायज होता है और कब वह संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाता है।उन्होंने बार-बार संसद में नियमों को चुनौती दी, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे उठे। उनके मामलों ने यह सवाल भी उठाया कि कब विरोध जायज होता है और कब वह संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाता है।
राज्यसभा और लोकसभा में मार्शलों का प्रयोग केवल अत्यधिक असाधारण परिस्थितियों में किया जाता है, जब सदन की गरिमा, सुरक्षा और कार्यवाही को बनाए रखने में बाधा उत्पन्न होती है। भारतीय संसदीय इतिहास में कुछ उल्लेखनीय घटनाएं हैं जब सांसदों को सदन से बाहर निकालने के लिए मार्शलों का सहारा लिया गया।
लोकसभा में 1989 में जब बोफोर्स तोप घोटाले पर विपक्ष ने हंगामा किया, तब कई बार मार्शल्स बुलाए गए ।जनता दल और भाजपा के सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास जाकर नारेबाजी की। राज्यसभा में 2010
महिला आरक्षण बिल पर बहस के दौरान समाजवादी पार्टी और राजद के सांसदों ने भारी विरोध किया।7 सांसदों को मार्शलों द्वारा बाहर निकाला गया। यह एक अत्यंत दुर्लभ घटना थी जब इतने सांसदों को एकसाथ राज्यसभा से निकाला गया। मार्शल्स संसद भवन की सुरक्षा व्यवस्था और अनुशासन बनाए रखने के लिए होते हैं। सभापति (राज्यसभा) या अध्यक्ष (लोकसभा) के आदेश पर ही वे किसी सदस्य को बाहर निकाल सकते हैं। आमतौर पर सदस्य को पहले नाम लेकर चेतावनी दी जाती है, उसके बाद भी नियम तोड़ने पर सस्पेंड या सदन से बाहर करने का आदेश दिया जाता है।
CISF को संसद भवन की सुरक्षा सौंपने का निर्णय भारत सरकार का एक मजबूत कदम है। इससे संसद की सुरक्षा न केवल पहले से अधिक तकनीकी और सुसंगठित हुई है, बल्कि किसी भी आतंकी या आंतरिक खतरे से बचाव की क्षमता भी बढ़ी है। संसद के अंदर 2022 में हुई एक बड़ी सुरक्षा चूक की घटना ने पूरे देश को चौंका दिया था। जो कि 2001 के संसद हमले की 21वीं बरसी भी थी। इस दिन संसद के अंदर कुछ अज्ञात घुसपैठियों ने अचानक से विरोध प्रदर्शन किया और सुरक्षा प्रणाली को चुनौती दी।
संसद भवन में चल रही कार्यवाही के दौरान, 2 व्यक्ति दर्शक दीर्घा से अचानक नीचे कूद गए। उन्होंने अपने हाथों में धुआं छोड़ने वाले रंगीन गैजेट्स/कार्ट्रिज पकड़े हुए थे जिससे पीला और हरा धुआं निकलने लगा। साथ ही लोकसभा के बाहर (गेट नंबर 1) पर भी 2 अन्य प्रदर्शनकारी प्रदर्शन कर रहे थे और धुआं छोड़ने वाले यंत्रों का प्रयोग कर रहे थे।घटना ने संसद जैसी संवेदनशील जगह की सुरक्षा में गंभीर सवाल खड़े कर दिए। इसने यह भी स्पष्ट किया कि केवल बाहर की ही नहीं, अंदरूनी सुरक्षा प्रक्रिया में भी सुधार की आवश्यकता है। इसके बाद संसद की सुरक्षा को और अधिक हाई-टेक और सख्त बनाया गया है।मार्शल्स का उपयोग आमतौर पर उच्च स्तर पर सदन की गरिमा बनाए रखने, वेल में अनुशासन सुनिश्चित करने, और सदस्यीय गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए किया गया। जबकि नियम 256 (राज्यसभा) और नियम 374 (लोकसभा) के अंतर्गत सांसदों को सस्पेंड किया जा सकता है , लेकिन मार्शल्स को भीतर भेजना 2021 में कांग्रेस और अन्य दलों द्वारा अत्यधिक विरोध और हंगामे के कारण आवश्यक हुआ। सांसदों द्वारा—पेपर फाड़ना, वेल में आना, मार्शल्स से भिड़ना—इन घटनाओं ने यह दर्शाया कि संसदीय लोकतंत्र में विवाद और अनुशासन के बीच संतुलन आवश्यक है।हाँ कुछ संपादकों और राजनीतिक विशेषज्ञों का यह तर्क उचित है कि संसद की बाहरी सुरक्षा और अंदर की व्यवस्था में अंतर होना चाहिए । अंदर के सुरक्षा कर्मचारियों की ड्रेस पुलिस जैसी न रहे और उन्हें अति आधुनिक हथियारों से लैस न रखा जाए । सदन में उन्हें किसी हथियारों से मुक़ाबला नहीं करना होता है । बहरहाल उम्मीद की जाए कि संसद में नियमों का पालन हो , विरोध की लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन न हो और भविष्य में सदन में बहस , सहमति असहमति , विरोध , बहिर्गमन से आगे टकराव की नौबत न आए ।





