International Potato Day (May 30) :हमने उसे आलु कहा जो बोलते-बोलते आराम से आलू हो गया!

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International Potato Day
अंतर्राष्ट्रीय आलू दिवस (30 मई)

International Potato Day (May 30) :हमने उसे आलु कहा जो बोलते-बोलते आराम से आलू हो गया!

देवेन्द्र मेवाड़ी

2021 03 02

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस वर्ष से 30 मई का दिन हर साल ‘अंतर्राष्ट्रीय आलू दिवस’ के रूप में मनाने का निश्चय किया है। इसका मकसद है विश्व भर के लोगों का ध्यान आलू की ओर आकर्षित करना।
आलू? भला आज आलू को कौन नहीं जानता? आज भले ही हम सब जानते हैं लेकिन आज से 500 साल पहले तक हमारे देश में आलू के बारे में कोई कुछ नहीं जानता था क्योंकि आलू यहां होता ही नहीं था। हद है, होता ही नहीं था? तो यह आया कहां से?
पुर्तगाल से। पता है 1498 में दक्षिण भारत में मालाबार के तट पर पुर्तगाली नाविक वास्को- डि-गामा उतरा था? उसके साथ पुर्तगाली भारत पहुंच गए। वे अपने साथ कंद की एक अजीब-सी सब्जी लाए जिसे चाहो तो काट कर सब्जी बना लो या फिर उबालो और छील कर खा लो। पुर्तगाली उसे ‘बताता’ कहते। लेकिन हम क्यों कहते? हमारे यहां तो संस्कृत में कंद को ‘आलु’ कहते थे। इसलिए हमने उसे आलु कहा जो बोलते-बोलते आराम से आलू हो गया!
लेकिन, पुर्तगालियों के यहां कहां से आया होगा आलू? क्या वहां होता था? नहीं, वहां वह पड़ोसी देश स्पेन से पहुंचा। स्पेन के लोग उसे ‘ला पापा’ कहते थे। लो, यह कैसा नाम हुआ? आलू ‘ला पापा’ हुआ तो पापा यानी पिताजी क्या हुए?
स्पेनी लोग पिताजी को ‘एल पापा’ कहते हैं।
समझ में नहीं आता, वे आलू को कुछ और भी तो नाम दे सकते थे, पापा ही क्यों कहा?
क्योंकि दोस्तो, पेरू के निवासी कंद के अपने इस प्रिय भोजन को अपनी दुदबोली में ‘पापा’ कहते थे।
कहां पेरू,कहां पुर्तगाल!वहां से क्या मतलब ?
मतलब है दोस्तो क्योंकि आलू की जन्मभूमि वही है। वहां के मूल निवासी एंडीज पर्वतमाला में टिटिकाका झील के आसपास आज से आठ-दस हजार वर्ष पहले से आलू की खेती कर रहे थे। वहां के इंका निवासियों की यह प्रिय फसल थी। बहुत सुख-चैन से रह रहे थे वे।
तो?
तो, सोलहवीं सदी में स्पेनी बर्बर आक्रमणकारियों ने उन पर हमला कर दिया। खूब लूट-पाट की। कहते हैं उन्हीं आक्रमणकारियों के साथ आलू यानी पापा स्पेन पहुंचा और वहां ‘एल पापा’ बन गया।
लेकिन, पुर्तगाल में ‘बताता’?
बताता हूं दोस्तो, लेकिन यह बहुत लंबी दास्तान है। किस्सागोई में ज़रूर सुनाऊंगा यह दास्तान, कभी, किसी दिन आपसे रू-ब-रू होकर। बहुत अनोखे किस्से हैं इसमें, ऐसे कि आप सुनोगे तो सुनते रह जावोगे और पूछोगे कि..कि फिर क्या हुआ?
आपके पास, आपके दोस्तों के बीच सुनाऊंगा यह दास्तान उस दिन।
ठीक है?
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देवेन्द्र मेवाड़ी एक प्रसिद्ध विज्ञान लेखक और संचारक हैं जो पिछले 50 वर्षों से हिंदी में विज्ञान के बारे में लिख रहे हैं। कहानियों, उपाख्यानों और हास्य का उपयोग करके वैज्ञानिक अवधारणाओं और घटनाओं को सरल और आकर्षक तरीके से प्रस्तुत करने की उनकी एक अनूठी शैली है।