Is Congress Against Hindutva:राहुल गांधी का हिंदुत्व पर प्रहार फांस न बन जाये ?
वरिष्ठ पत्रकार रमण रावल का विश्लेषण
जो लोग कल तक राहुल गांधी को पप्पू,नासमझ या अराजनीतिक व्यक्ति समझते थे, गत तीन माह से राहुल की बयानबाजी और आचरण से उनके जाले साफ हो जाने चाहिये। लोकसभा में 1 जुलाई को बतौर नेता प्रतिपक्ष उन्होंने जो भाषण दिया,उसने तो जैसे एटम बम ही फोड़ दिया हो। ऐसा उनके समर्थक,विपक्षी साथी और भाजपा विरोधी तबका तो समझता ही है। भाजपा के लिये यह चुनौती भी है और अवसर भी। देश में आने वाले समय के लिये भाजपा व कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष के बीच महादंगल के लिये अखाड़ा सज चुका है, लाल मिट्टी बिछाई जा चुकी है। आशा करें कि इसमें पसीना तो बहे, लेकिन मिट्टी का रंग और लाल न हो तो बेहतर।
बीते कुछ समय से लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी की भाषण शैली खास ढांचे में ढली साफ नजर आती है। वे जो बोलते हैं,वैसा सोचते भी हों, जरूरी नहीं । अलबत्ता बोलते हैं पूरी आक्रामकता के साथ और उस पर टिके भी रहते हैं। याने उन्हें यह बताया गया है और उन्होंने भी मान लिया है कि लड़ाई आर-पार की लड़ना होगा। इसमें इस पार दलित,पिछड़े,अल्प संख्यक हैं तो दूसरी तरफ हिंदू, हिंदुत्व,भाजपा,संघ है। अब इस बहस से कोई मतलब नहीं कि दलित,पिछड़े भी तो हिंदू ही हैं। लोकसभा चुनाव में प्रहार की इस धार के एक हद तक असरकारी होने के बाद राहुल गांधी को यह बता दिया गया हो कि धार और वार लगातार जारी रखना ही सफलता की सीढ़ी साबित होगा।
अब बात कर लेते हैं राहुल के उस बयान की,जिसने इस समय फिजा में अंगारे उछाल रखे हैं। राहुल ने दमदारी के साथ कहा कि जो लोग खुद को हिंदू कहते हैं, वे चौबीसों घंटे हिंसा और नफरत फैलाने में लगे रहते हैं। इस बयान का वही अर्थ है, जो उन्होंने बताया है। संसद में भी बाद में या सड़क पर,टीवी बहस में किसी सफाई का मतलब नहीं रह जाता है। यह अनायास बोली हुई बात नहीं है, क्योंकि हिंदू या हिंदुत्व का कोई संदर्भ तो था ही नहीं । वे भाजपा,संघ पर हल्ला बोलना चाहते थे, लेकिन न जाने किस लमतरानी में वे हिंदुत्व पर आक्षेप कर बैठे। यह भी संभव है कि यही उनका एजेंडा भी रहा हो। अब तीर निशाने पर लगा या गलत जगह जा गिरा,यह आने वाले समय में तय होगा। ऐसा लगता है कि यह तीर चिड़िया की आंख की बजाय मधु मक्खी के छत्ते पर जा लगा है। इसके जहर बुझे दंश से कौन प्रभावित होगा, देखना होगा।
वैसे राहुल एंड कंपनी ने 2029 तक के अपने एजेंडे को साफ कर दिया है। उन्होंने यह मान लिया है कि वे हमेशा संविधान बदलने का डर दिखाकर और आरक्षण समाप्त करने का हौवा खड़ा कर दलित-पिछड़ों की सहानुभूति हासिल नहीं कर पायेंगे या स्थायी नहीं रख पायेंगे, तब उन्होंने सीधे हिंदुत्व को निशाने पर लिया। इससे उन्हें मुस्लिमों के थोकबंद वोट फिर से मिलने की उम्मीद है, जो अभी प्रांतवार अलग-अलग दलों में बंट गया है। राहुल का यह दांव अकेल भाजपा को निपटाने तक सीमित नहीं है। इस बहाने वे अपने उन प्रांतीय सहयोगियों के वोट बैंक में भी सेंधमारी करना चाहते होंगे, जो स्थानीय कारणों से भाजपा के खिलाफ क्षेत्रीय दलों के साथ हो जाता है। जैसे, तृणमुल कांग्रेस,वाईआरएस,डीएमके,राष्ट्रवादी कांग्रेस,आम आदमी पार्टी,राजद वगैरह। संभवत यही सोचकर राहुल गांधी ने खालिस निष्णात जुआरी वाला ब्लाइंड गेम खेला है।
अब यह तो आने वाले समय में स्पष्ट होगा कि राहुल का वार सधा हुआ था या बूमरेंग बनकर उन पर आ लगा। भाजपा औऱ् संघ चुप बैठने वालों में से तो नहीं हैं और न ही यह मुद्दा खामोशी ओढ़ लेने वाला है। राहुल ने हिंदुत्व के मर्म पर ही चोट कर दी है कि उसे मानने वाले हिंसा व नफरत फैलाते हैं। अब सोशल मीडिया पर एक बार फिर से उन घटनाओं,संदर्भों की बाढ़ आ जायेगी, जिसमें यह बताया जायेगा कि स्वतंत्रता के बाद से किस तरह से कांग्रेस और नेहरू,गांधी परिवार ने अल्पसंख्यक तुष्टिकरण को बढ़ावा दिया,कैसे हिंदू हितों की बलि दी, कैसे वक्फ बोर्ड को सर्व शक्तिमान बनाया,कैसे देवस्थानों के चढ़ावे से मदरसे,मस्जिदें,मजारें रोशन की जाती हैं,वजीफे बांटे जाते हैं। शाहबानो प्रकरण से लेकर तो 2013 में वक्फ कानून में संशोधन की परतें फिर से खोली जायेंगी।
मुद्दा यह भी है कि राहुल गांधी ने क्या इस बहाने अगले पांच साल के लिये एक नई बहस का बीजारोपण किया है ? क्या इस तरह से वे यह दिखाना चाहते हैं कि वे तमाम सफाई को एक तरफ रखकर और जनेऊ,त्रिपुंड,धोती धारण कर चुनाव के दौरान हिंदू मंदिरों की परिक्रमा को पूरी तरह से तिलांजलि देकर केवल मुस्लिम हकों की बात करना चाहते हैं। क्या वे जातिवाद के नासूर को खाद-पानी देकर पोषित करना चाहते हैं? क्या यह उनकी खुद की दिमागी फितरत है या किन्हीं ऐसी विदेशी ताकतों से संचालित हो रहे हैं, ,जो किसी भी हाल में न तो भारत को आने वाले समय में तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनने देना चाहते हैं, न स्थिर सरकार वाला देश रहने देना चाहते हैं, न जातिगत सौहार्द कायम रहने देना चाहते हैं, न भाजपा का शासन रहने देना चाहते हैं,न ही नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बरदाश्त कर पा रहे हैं?
सवाल और शंकायें हिमालय जितनी विशाल हैं और तसल्ली एक टीले जितनी। देश में बनने वाले विषैले वातावरण के लिये दोष तो किसे भी दे दिया जायेगा, लेकिन भुगतेगी तो वह जनता जनार्दन,जिसने इस चिंगारी को नहीं भड़काया। अब यह भी संभव है कि हिंदू धर्माचायों,संस्थानों की तरफ से राहुल व गांधी परिवार का मंदिर,धर्म स्थलों पर प्रवेश वर्जित कर दिया जाये। उनके खिलाफ देश भर में हिंदू संगठन विरोध प्रदर्शन छेड़ दें। भाजपा उन्हें संसद व सड़क पर घेरे । इतना तो तय है कि इस मामले को अब ठंडा तो नहीं पड़ने दिया जायेगा। जो हिंदू समाज 2024 के लोकसभा चुनाव में बंटा हुआ या दुविधाग्रस्त लगा, वह संभवत इस घटनाक्रम के बाद काफी हद तक पास आ जाये। यदि ऐसा कर पाने में भाजपा,संघ सफल हुए तो जो नतीजे 2024 में नहीं मिल पायें, वे 2029 में हाथ लग जायें। यह अभी दूर की कौड़ी नजर आती है, लेकिन संघ प्रणीत भाजपा इसे दूर तक अवश्य ले जायेगी।