लड़कियों का खतना क्या POCSO एक्ट का उल्लंघन है?- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब 

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लड़कियों का खतना क्या POCSO एक्ट का उल्लंघन है?- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब 

 

New Delhi: लड़कियों में होने वाले खतने या फीमेल जननांग विकृति को लेकर देश में एक बार फिर गंभीर बहस शुरू हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रथा की वैधानिक स्थिति पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और विधि मंत्रालय को नोटिस जारी कर विस्तृत जवाब मांगा है। अदालत ने कहा है कि यह मुद्दा बच्चों के अधिकारों और उनके शारीरिक स्वायत्तता से जुड़ा है इसलिए इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।

*▪️सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने क्यों लिया संज्ञान*

▫️सुनवाई न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की बेंच ने की। कोर्ट के सामने NGO चेतना वेलफेयर सोसायटी की वह याचिका आई जिसमें कहा गया है कि देश के कुछ समुदायों में बचपन में लड़कियों का खतना किया जाता है और यह सीधे तौर पर POCSO एक्ट तथा भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों का उल्लंघन है। कोर्ट ने याचिका की दलीलों को गंभीर मानते हुए केंद्र से विस्तृत जवाब मांगा है।

 

*▪️याचिका में क्या कहा गया*

▫️याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि लड़कियों का खतना न तो धर्म का अनिवार्य हिस्सा है और न ही किसी तरह की चिकित्सकीय आवश्यकता। इसे बचपन में किया जाना बच्चों के अधिकारों का सीधा हनन है। याचिका में कहा गया कि खतना के दौरान गैर चिकित्सकीय हस्तक्षेप के कारण संक्रमण, स्थायी दर्द, मानसिक आघात और जीवनभर चलने वाली शारीरिक समस्याएं होती हैं जिनका उल्लेख विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित कई वैश्विक अध्ययनों में है।

याचिका के अनुसार यह प्रथा नाबालिग बच्चियों के जननांगों से जुड़े संवेदनशील अंगों को काटने या क्षति पहुंचाने से संबंधित है इसलिए POCSO एक्ट की कई धाराएं स्वतः लागू होती हैं।

 

*▪️किन समुदायों में बताया जाता है चलन*

▫️याचिका में विशेष रूप से दाऊदी बोहरा समुदाय का उल्लेख किया गया है जहां कुछ रिपोर्टों के अनुसार बच्चियों में FGM की प्रथा पाई जाती है। हालांकि समुदाय के एक बड़े वर्ग का तर्क है कि यह धार्मिक परंपरा का हिस्सा है जबकि विरोध करने वाले इसे महिला अधिकारों का खुला उल्लंघन बताते हैं। अदालत ने इस सामाजिक और धार्मिक मतभेद को देखते हुए सभी पक्षों को कानून के संदर्भ में सुना जाना आवश्यक बताया है।

 

*▪️अदालत ने क्या कहा और आगे की प्रक्रिया*

▫️सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया है कि वह यह स्पष्ट करे कि क्या मौजूदा कानून लड़कियों के खतना पर प्रभावी कार्रवाई के लिए पर्याप्त हैं या इस विषय पर अलग से कोई समर्पित कानून बनाने की आवश्यकता है। केंद्र का जवाब मिलने के बाद अगली सुनवाई की तारीख तय की जाएगी। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि यदि यह बच्चों की सुरक्षा के दायरे में आता है तो न्यायालय अपने स्तर पर भी आवश्यक दिशानिर्देश दे सकता है।

 

*▪️स्वास्थ्य और मानवाधिकार का कोण*

▫️स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार फीमेल जननांग विकृति न केवल तत्काल पीड़ा और संक्रमण का कारण बनती है बल्कि जीवनभर के लिए यौन स्वास्थ्य, प्रजनन क्षमता और मानसिक संतुलन पर दुष्प्रभाव छोड़ती है। WHO और यूनिसेफ इसे मानवाधिकार उल्लंघन की श्रेणी में रखते हैं। याचिका में इन्हीं अंतरराष्ट्रीय मानकों का उल्लेख किया गया है और कहा गया है कि भारत जैसे बड़े देश में इस प्रथा पर स्पष्ट नीति जरूरी है।

*▪️पुरानी याचिकाओं की पृष्ठभूमि*

▫️इस मुद्दे पर 2018 में भी सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल हुई थी जिसमें संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के उल्लंघन का मुद्दा उठाया गया था। अब जबकि नया मामला फिर अदालत में आया है, न्यायालय ने पुराने रेकॉर्ड और बहसों को देखते हुए इसे संवैधानिक महत्व का विषय माना है।