बड़ी खुशी और बड़े गम का है यह दिन…

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बड़ी खुशी और बड़े गम का है यह दिन…

सात अगस्त की तारीख को देश के इतिहास में बड़ी खुशी और आंखें नम करने वाले बड़े गम के रूप में देखा जाएगा। आज बड़ी खुशी की बात यह है कि देश में कृषि क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन का जन्म हुआ था। जिन्होंने देश की भुखमरी और अकाल से दु:खी होकर आईपीएस की नौकरी को छोड़कर कृषि के क्षेत्र में काम करने का फैसला किया था। और उनकी मेहनत रंग लाई और भारत गेहूं उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया। आंखें नम करने वाले बड़े गम वाली बात यह है कि नोबल पुरस्कार विजेता भारत के महान व्यक्तित्व रवींद्रनाथ टैगोर ने आज के दिन ही अंतिम सांस ली थी। और राजनैतिक आकाश में अपनी धमक और चमक बिखेरने वाली प्रखर व्यक्तित्व सुषमा स्वराज का निधन भी 7 अगस्त को ही हुआ था। राष्ट्र को हुई यह दोनों क्षति अपूरणीय हैं। तो बड़ी खुशी और बड़े गम वाली इस तारीख को मन मस्तिष्क में किस स्वरूप में सहेजा जाए, यह एक दुविधा की बात है। आइए इसी बहाने इन महान व्यक्तित्वों को याद करते हैं।

हरित क्रांति के अगुवा एमएस स्वामीनाथन का जन्म तमिलनाडु के कुम्भकोडम में 7 अगस्त 1925 को हुआ। उनके पिता डॉ. एमके सम्बशिवन एक सर्जन थे और चाहते थे बेटा भी डॉक्टर बने, लेकिन एक घटना ने उन्हें खेती-किसानी की ओर मोड़ दिया। एमएस स्वामीनाथन देश की ऐसी शख्सियतों में शामिल हैं, जो देश में बड़ा बदलाव लेकर आए। दूसरे देशों पर भारत की अनाज निर्भरता को खत्म कर दिया और हरित क्रांति के अगुवा बने। एक दौर ऐसा था कि जब देश गेहूं के संकट से गुजर रहा था। उनका IPS के लिए चयन हो चुका था, लेकिन एक घटना ने उनके मन को बदल दिया। वह आईपीएस की नौकरी को छोड़ खेती-किसानी की ओर मुड़ गए। उनकी नीतियां किसानों के लिए इतनी फायदेमंद साबित हुईं कि सिर्फ पंजाब में ही पूरे देश का 70 फीसदी गेहूं उगने लगा। हालांकि पिता की मौत के बाद उनके सपने को पूरा करने के लिए स्वामीनाथ ने मेडिकल की पढ़ाई शुरू की।पर मेडिकल स्कूल में एडमिशन लेने के बाद 1943 में बंगाल में अकाल पड़ा। अकाल की तस्वीरों ने उन्हें बुरी तरह से झकझोर दिया। उन्होंने देश से अकाल को खत्म करने के लिए एग्रीकल्चर कॉलेज में दाखिला लिया। दिल्ली के इंडियन एग्रीकलचर रिसर्च इंस्टीट्यूट से पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद यूपीएससी की परीक्षा में शामिल हुए. वो सफल रहे और उनका सेलेक्शन भी हुआ। इसी दौरान उन्हें यूनेस्को की एग्रीकल्चर रिसर्च फेलोशिप मिली। उन्होंने अकाल को खत्म करने के लिए अहम कदम उठाया।

उन्होंने आइपीएस की नौकरी छोड़ दी और खेती-किसानी की ओर मुड़ गए। वो रिसर्च करने के लिए नीदरलैंड के इंस्टीट्यूट ऑफ जेनेटिक्स पहुंचे। इसके बाद यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर के प्लांट ब्रीडिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ाई की। भारत लौटने के बाद 1972 में उन्हें इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट का डायरेक्टर बनाया गया। इस दौरान उन्होंने पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में गेहूं के ऐसे बीजों की बुआई की जो अधिक उपज देते थे। इसके अलावा उन्होंने खेती में उर्वरकों, कीटनाशकों और ट्रैक्टरों का इस्तेमाल करने का चलन शुरू किया। इसकी शुरुआत पंजाब में हुई और इसके कई चौंकाने वाले नतीजे सामने आए। इसलिए स्वामीनाथन को “भारत में हरित क्रांति का अगुआ” माना जाता है। स्वामीनाथन के प्रयत्नों का परिणाम यह है कि भारत की आबादी में प्रतिवर्ष पूरा एक ऑस्ट्रेलिया समा जाने के बाद भी खाद्यान्नों के मामले में वह आत्मनिर्भर बन चुका है। भारत के खाद्यान्नों का निर्यात भी किया है और निरंतर उसके उत्पादन में वृद्धि होती रही है। एम एस स्वामिनथन पर दो भागों में लिखी गयी पुस्तक का अनावरण भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया है। एम०एस०स्वामीनाथन एक बहुत बड़े वनस्पतिक वैज्ञानिक थे। जिन्हें हरित क्रांति का जनक कहे जाने का एक मुख्य कारण है। क्योंकि इन्होंने वनस्पति जीवन मे अपना बहुत बड़ा योगदान दिया जिससे इन्हें वनस्पतिक जगत का जनक,दाता भी कहा जाता है। कामना यही कि शतायु हों एमएस स्वामीनाथन।

रबीन्द्रनाथ ठाकुर (7 मई,1861–7 अगस्त,1941) विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा वे ही थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं – भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बांङ्ला’ गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।

सुषमा स्वराज (14 फरवरी,1952- 6 अगस्त,2019) एक भारतीय महिला राजनीतिज्ञ और भारत की पूर्व विदेश मंत्री थीं। वे वर्ष 2009 में भारत की भारतीय जनता पार्टी द्वारा संसद में विपक्ष की नेता चुनी गयी थीं, इस नाते वे भारत की पन्द्रहवीं लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता रही हैं। इसके पहले भी वे केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में रह चुकी हैं तथा दिल्ली की मुख्यमन्त्री भी रही हैं। वे सन 2009 के लोकसभा चुनावों के लिये भाजपा के 19 सदस्यीय चुनाव-प्रचार-समिति की अध्यक्ष भी रही थीं।

यह सभी महान व्यक्तित्व अतुलनीय, अद्वितीय और प्रेरक हैं। जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में सर्वोच्चता को छुआ है। एमएस स्वामीनाथन की बराबरी कोई नहीं कर सकता। दूसरा रवींद्रनाथ टैगोर दुनिया को नहीं मिल सकता और सुषमा स्वराज आज भी चहेतों के दिल में बसी हैं। तीनों महान शख्सियतों को नमन…।