मध्यप्रदेश सरकार ने पेसा एक्ट के प्रावधानों के तहत अनुसूचित क्षेत्रों में सुविधाओं को सशक्त बनाने का फैसला कर लिया है। पेसा एक्ट की भावना के अनुरूप ग्रामसभा बनाने के लिए अधिसूचना जारी कर दी गई है। टंट्या मामा के बलिदान दिवस पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश के आदिवासियों को यह खास सौगात देने की जानकारी दी।
तो विपक्षी दलों पर निशाना साधा कि “पानी पी पीकर कोसने वालों, जब तुम्हारी सरकार आई थी तुमने पेसा एक्ट के लिए क्या किया बता तो दो?” कुछ विधायक बन गए, बात करते रहे, आंदोलन चलाते रहे, तुमने क्या किया? शिवराज सिंह चौहान और भारतीय जनता पार्टी की सरकार, आज ये लागू कर रही है ग्राम सभाएं सशक्त होंगी, ग्राम सभाओं को अधिकार दिए जा रहे हैं, ताकि इन गांव में रहने वाले हमारे भाइयों और बहनों की जिंदगी बदल सकें।
तो… “पेसा एक्ट” तुम्हें मध्यप्रदेश आते-आते पच्चीस बरस लग गए हैं। अब तुम्हारा मध्यप्रदेश के करीब पौने दो करोड़ आदिवासी भाई-बहन टंट्या मामा के बलिदान दिवस पर दिल खोलकर स्वागत करते हैं। उम्मीद है कि तुम्हारे आने के बाद तुम्हें जमीनी स्तर तक पहुंचाते-पहुंचाते सरकार वक्त जाया नहीं करेगी।
ग्राम सभाओं को अधिकार जल्दी मिल जाएंगे। वन संपदा पर तुम्हारे आने के बाद आदिवासियों का आजादी के पहले की तरह अधिकार हो जाएगा। आदिवासी आबादी भी तुम्हारे आने का पूरा फायदा उठाएगी और सशक्त व समृद्ध होकर आपस में लड़-भिडकर बर्बाद होने की बजाय नीति आयोग की आदिवासी जिलों में व्याप्त गरीबी की रिपोर्ट को झुठलाकर यह साबित करेगी कि “पेसा” ने हम आदिवासियों को “पैसा” से आबाद कर दिया है।
शुक्रिया मध्यप्रदेश, शुक्रिया पेसा एक्ट और शुक्रिया मामा शिवराज इसलिए भी क्योंकि पेसा एक्ट लागू करने के ऐलान के साथ ही यह भी कहा है कि जिन आदिवासियों पर छोटे-मोटे आपराधिक मामले दर्ज हैं, उन्हें भी सरकार वापस ले लेगी। और मध्य प्रदेश में पट्टा देना बंद नहीं होगा बल्कि दिसम्बर 2006 के पहले से जिनके कब्जे हैं, उन्हें पट्टा दिया जाएगा। इसलिए भी कि पहले ही घोषणा की जा चुकी है कि नई आबकारी नीति में आदिवासी को परंपरागत शराब बनाने का अधिकार होगा और वो शराब हेरिटेज के रूप में बेच सकेंगे।
हम भी अगर समझें कि “पेसा एक्ट क्या है”, तो बता दें कि आदिवासियों के साथ हो रहे अन्याय व अत्याचार से बढ़ते जन असंतोष और सरकार पर बन रहे दबाव के चलते संसद ने 1995 में गठित भूरिया रिपोर्ट की सिफारिश पर दिसम्बर 1996 में पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम पारित किया था और जनजातियों की विशेष स्थिति एवं आवश्यकताओं के अनुरूप आवश्यक परिवर्तन एवं अपवाद के साथ संविधान के भाग 9 को पाँचवी अनुसूची के अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित कर दिया।
इसलिए इसे विस्तार अधिनियम भी कहा जाता है। यह एक्ट आदिवासियों के रीति-रिवाजों, परंपराओं और जीवन-शैली को कायम रखते हुए सत्ता और विकास की बागडोर उसी के हाथ में सौंपने वाला एक्ट है। जहां यह पेसा एक्ट लागू है, देश के उन दस राज्यों में मध्य प्रदेश, छतीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं।
1996 में पेसा एक्ट बनने के 15 साल बाद सबसे पहले आंध्र प्रदेश में पेसा एक्ट के मुताबिक नियमों को बनाकर इसे प्रदेश में लागू किया गया। उसके बाद हिमाचल, महाराष्ट्र, राजस्थान राज्यों ने नियम बनाकर पेसा एक्ट लागू किया। और अब मध्यप्रदेश सहित अन्य राज्य भी इसका हिस्सा हैं।
मध्यप्रदेश में झाबुआ, अलीराजपुर, मंडला, डिंडोरी, बड़वानी, धार, खंडवा, खरगोन, सिवनी, बालाघाट, रतलाम, सीधी, श्योपुर, होशंगाबाद, शहडोल, बैतूल,उमरिया, छिंदवाड़ा जिले या इनमें से कुछ जिलों की कुछ तहसीलें शामिल हैं। और नीति आयोग की रिपोर्ट ने गरीब जिलों में इन आदिवासी जिलों का ही जिक्र किया है।
कुल मिलाकर राज्यों ने पेसा एक्ट के मुताबिक नियम बनाने में बहुत देर की लेकिन यही कह सकते हैं देर से ही सही आदिवासी अपनी परंपरागत आजादी के साथ समृद्धि का वरण करेंगे और देश के विकास के समृद्ध साझेदार बनेंगे। मध्यप्रदेश में अनुसूचित क्षेत्र में शुमार जिलों-तहसीलों के हमारे आदिवासी भाई-बहन गरीबी रेखा से आजादी पाकर देश-प्रदेश में टंट्या मामा के आदिवासी उत्थान के सपने को पूरा करेंगे। तो नीति आयोग को यह मौका नहीं देंगे कि आदिवासी जिलों को गरीबी का पर्याय समझा जाए।