राजनीति के ‘शोले’ में झुलस रहे ‘जय-वीरू’…
राजनीति बड़ी बेरहम है। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में भी ‘जय-वीरू’ की एंट्री कुछ यही बयां कर रही है। फिल्म में जय-वीरू अपराधी हैं। अब मध्यप्रदेश में कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने जय-वीरू की कहानी शुरू की, जो अब शोले फिल्म की तरह ही मध्यप्रदेश की राजनीति में हिट हो गई है। कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने कहा था कि, “धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन (शोले में) के बीच संबंध दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बीच जैसा ही है। और फिर बात गब्बर सिंह तक पहुंच गई। और फिर फिल्म में हो गया राजनीति का घालमेल। खैर अब जय-वीरू पर लगातार बयानबाजी जारी है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने कहा कि सियासत में जो इन दिनों जय-वीरू की जोड़ी की चर्चा चल रही है, वो जोड़ी लुटेरी है। 15 महीने के शासन में यह साबित हो चुका है। अपने -अपने बेटों को स्थापित करने की चाहत में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस को गुटों और गिरोह में बांट दिया है। तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि कांग्रेस के जय और वीरू आपस में झगड़ रहे हैं। जय और वीरू तो लूटते ही थे, उनका झगड़ा ही लूट के माल के लिए होता है। ये लोग कभी भी प्रदेश और जनता का भला नहीं कर सकते हैं।
चलो तो शोले फिल्म को याद कर लेते हैं।शोले 1975 में रिलीज हुई एक भारतीय हिन्दी एक्शन फिल्म है। सलीम-जावेद द्वारा लिखी इस फिल्म का निर्माण गोपाल दास सिप्पी ने और निर्देशन का कार्य उनके पुत्र रमेश सिप्पी ने किया है। इसकी कहानी जय (अमिताभ बच्चन) और वीरू (धर्मेन्द्र) नामक दो अपराधियों पर केन्द्रित है, जिन्हें डाकू गब्बर सिंह (अमजद खान) से बदला लेने के लिए पूर्व पुलिस अधिकारी ठाकुर बलदेव सिंह (संजीव कुमार) अपने गाँव लाता है। जया भादुरी और हेमा मालिनी ने भी फिल्म में मुख्य भूमिकाऐं निभाई हैं। शोले को भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक माना जाता है। ब्रिटिश फिल्म इंस्टिट्यूट के 2002 के “सर्वश्रेष्ठ 10 भारतीय फिल्मों” के एक सर्वेक्षण में इसे प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था। 2005 में पचासवें फिल्मफेयर पुरस्कार समारोह में इसे पचास सालों की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी मिला।
फिल्म का कथानक इस तरह है कि रामगढ़ नामक एक छोटे से गाँव में सेवानिवृत पुलिस अधिकारी ठाकुर बलदेव सिंह दो चोरों को बुलाता है, जिन्हें उसने एक बार गिरफ्तार किया था। ठाकुर को यकीन है कि वे दोनों जय तथा वीरू कुख्यात डकैत गब्बर सिंह को पकड़ने में उसकी सहायता कर सकते हैं। गब्बर सिंह को जीवित या मृत पुलिस के हवाले करने पर पचास हज़ार रुपये का नगद इनाम तो था ही, साथ ही ठाकुर ने उन दोनों को गब्बर को जीवित पकड़कर उसके पास लाने पर बीस हजार रुपये के अतिरिक्त इनाम की पेशकश भी की। गब्बर के तीन साथी रामगढ़ के ग्रामीणों से अनाज लेने आते हैं, पर जय और वीरू की वजह से उन्हें खाली हाथ जाना पड़ता है। गब्बर उनके मात्र दो लोगों से हारने पर बहुत क्रोधित होता है और उन तीनों को मार डालता है। इसके बाद वह होली के दिन गाँव पर हमला करता है और एक लम्बी लड़ाई के बाद जय और वीरू को बंधक बना लेता है। ठाकुर उन दोनों की मदद करने की स्थिति में होते हुए भी उनकी मदद नहीं करता। जय और वीरू किसी तरह बच निकलते हैं और ठाकुर की इस अकर्मण्यता से क्षुब्ध होकर गाँव छोड़कर जाने का मन बना लेते हैं। तब ठाकुर उन्हें बताता है कि किस तरह कुछ वर्ष पहले उसने गब्बर को गिरफ्तार किया था पर वो जेल से भाग गया और फिर प्रतिशोध लेने के लिए उसने पहले तो ठाकुर के पूरे परिवार को मार डाला, और फिर ठाकुर के दोनों हाथ काट दिये। इसे छुपाने ठाकुर शाल ओढ़कर रहता था।
रामगढ़ में रहते हुये जय और वीरू धीरे धीरे गाँव वालों को पसंद करने लगे थे। जय को ठाकुर की विधवा बहू राधा (जया भादुरी) और वीरू को गाँव में तांगा चलाने वाली बसंती (हेमा मालिनी) से प्यार हो जाता है। इसी बीच जय-वीरू और गब्बर के बीच छोटी-मोटी तकरारें होती रहती हैं और एक दिन उसके आदमी बसंती और वीरू को पकड़ कर ले जाते हैं। जय उनको बचाने जाता है और वे तीनों वहां से बच निकलते हैं। इस लड़ाई में जय को गोली लग जाती है, जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है। जय की मृत्यु से आक्रोशित वीरू अकेले गब्बर का पीछा करता है और उसे पकड़ लेता है। दोनों के बीच हाथापाई होती है, जिसमें वीरू गब्बर को मारने ही वाला होता है कि ठाकुर वहां आ जाता है और गब्बर को जीवित उसके हवाले करने का जय का वायदा याद दिलाता है। वीरू गब्बर को ठाकुर को सौंप देता है, जो अपने नुकीले जूतों से गब्बर के हाथ कुचल देता है और फिर उसे पुलिस के हवाले कर देता है। वीरू अकेला गाँव छोड़कर रेलवे स्टेशन के लिए निकल जाता है, जहाँ बसंती उसका इंतजार कर रही होती है। राधा एक बार फिर अकेली ही रह जाती है।
तो फिल्म हिट थी और राजनीति में भी जय-वीरू की जोड़ी की चर्चा खूब हो रही है। पर राजनीति के इस शोले में असल फिल्म के जय वीरू बेवजह झुलस रहे हैं। फिल्म में हर किरदार को खूब सराहा गया था। पर अब राजनीति की आंच में उनको किरदार में मिली लोकप्रियता पर दाग लग रहा है…।