कल तक वह भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री थे। अब वह सांप और पलटूराम जैसे विशेषणों से नवाजने वाले राजद के साथ सत्तासीन हो गए हैं, अर्थात् 2015 के महागठबंधन का एक नया संस्करण। आठवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद, नीतीश कुमार ने अगले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा, “वह 2014 में जीते, लेकिन क्या वह 2024 में होंगे?” लेकिन, जब राष्ट्रीय स्तर पर सियासी पसंद की बात आती है, तो सवाल “मोदी बनाम कौन” से आगे नहीं बढ़ पाता है।
नीतीश कुमार ने केंद्र में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए बार-बार “विपक्षी एकता की दिशा में काम करने” की बात कही, लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या वह पीएम उम्मीदवार बनना चाहते हैं, तो उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि वह “किसी भी चीज़ के दावेदार नहीं हैं”। लोकसभा चुनाव के एक साल बाद, बिहार में 2025 चुनाव होने हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भाजपा से नाता तोड़ने के बाद, एक बार फिर उन्हें कुछ लोगों द्वारा 2024 के आम चुनाव में विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कहा जाने लगा है। हालांकि, ज्यादातर विपक्षी दल अब भी जदयू नेता को उनके कई ‘यू-टर्न’ के मद्देनजर संदेह की नजर से देखते हैं। डिप्टी सीएम और राजद नेता तेजस्वी यादव ने तो नीतीश कुमार को ‘पलटू राम’ तक कहा था, जब वह 2017 में राजद-जदयू-कांग्रेस महागठबंधन से बाहर हो गए थे और भाजपा से हाथ मिला लिया था।
नीतीश कुमार की इस पाला-बदल शैली को भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और बिहार के उद्योग मंत्री रहे शाहनवाज हुसैन के बयान से आसानी से समझा जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘मैंने टेक ऑफ किया था, बिहार के उद्योग मंत्री के तौर पर और जब (पटना) लैंड किया तो पता चला कि मैं उद्योग मंत्री ही नहीं हूं। सरकार बदल गई है।’ इसके बाद शाहनवाज हुसैन ने कहा कि आज ही (मंगलवार को) हमने इनवेस्टर भवन का दिल्ली में उद्घाटन किया। हम काम में लगे थे। हमें तबतक कोई ऐसा अंदाजा नहीं था कि बिहार की सियासत में क्या होने वाला है।
बोले तो, नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने की आकांक्षा रखने वाले नेताओं में से एक हैं और इनमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अतिरिक्त कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी शामिल हैं।
जनता दल (यू) के राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा, ‘यदि आप देश में शख्सियतों का आकलन करें, तो नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने के योग्य हैं। हम आज कोई दावा नहीं कर रहे हैं, लेकिन उनमें प्रधानमंत्री बनने के सभी गुण हैं।’ राष्ट्रीय जनता दल के नेता शरद यादव ने भी कहा कि नीतीश कुमार 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं।
शिवसेना नेता और राज्यसभा सदस्य प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, ‘नीतीश कुमार एक ऐसे सहयोगी रहे हैं, जो अक्सर अपना मन बदलते रहते हैं। एक चीज उनके खिलाफ है, वह है भरोसा…’ उन्होंने कहा कि उद्धव ठाकरे भी भाजपा के खिलाफ मजबूती से खड़े रहे और बतौर मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल के दौरान खासकर कोविड-19 महामारी के समय स्वच्छ प्रशासन दिया। उन्होंने कहा, ‘विपक्ष में कई योग्य नेता हैं और यह 2024 में देखा जाएगा कि चीजें किस प्रकार आकार लेती हैं।’
वाम और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने बिहार के घटनाक्रम का स्वागत किया, लेकिन नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने की संभावनाओं पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। राकांपा नेता मजीद मेमन ने कहा कि नीतीश कुमार, शरद पवार और ममता बनर्जी सहित उन कुछ लोगों में से एक हो सकते हैं, जिन्हें 2024 में प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार के रूप में देखा जा सकता है। लेकिन अंतत: यह एक सर्वसम्मत फैसला होगा कि भाजपा को कौन चुनौती देगा।’ कांग्रेस से निलंबित नेता संजय झा ने कहा कि 2024 में ममता बनर्जी की तुलना में नीतीश कुमार संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार के तौर पर अधिक स्वीकार्य चेहरा होंगे।
सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में मात खाने के बाद इस कहावत को चरितार्थ करते हुए कि दुश्मन का दुश्मन भी दोस्त होता है, नीतीश कुमार ने 2015 के विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का विजय रथ रोकने के लिए लालू से हाथ मिला लिया और प्रदेश की सत्ता हासिल की। पहली बार 24 नवंबर 2005 को बिहार के मुख्यमंत्री का पद संभालने वाले नीतीश ने 20 नवंबर 2015 को पांचवीं बार इस पद की शपथ ली थी। लेकिन राजद प्रमुख लालू प्रसाद के परिजन के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद यह असहज गठबंधन महज दो साल ही चल पाया। समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन से निकले लालू और नीतीश कुछ समय बाद राज्य की राजनीति में दोस्त से दुश्मन बन गए।
नीतीश कुमार ने 2017 में पीएम मोदी की पार्टी से गठबंधन किया और महागठबंधन को छोड़कर नई शपथ ली। वह 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ रहे और फिर उन्होंने मिलकर 2020 का बिहार चुनाव जीता। लेकिन, अब अपने मतभेदों को भुलाकर 40 साल बाद जदयू-राजद, दोनों ने फिर हाथ मिला लिया। इसके पहले, नीतीश कुमार ने पार्टी की बैठक में कहा कि बिहार में भाजपा हमारी पार्टी को कमजोर कर रही थी और हमें अपमानित कर रही है। उन्होंने पार्टी के विधायकों और सांसदों से यह भी कहा है कि भाजपा की ओर से हमें लगातार अपमानित किया गया है। इस बैठक में पैसों के लेनदेन और चिराग पासवान का मुद्दा भी उठा। इसी के साथ नीतीश कुमार एक बार फिर से पीएम मटेरियल के रूप में चर्चा के केंद्र बन गए।
दूसरी ओर, बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने आरोप लगाया कि नीतीश कुमार उपराष्ट्रपति पद प्रत्याशी न बनाये जाने से नाराज थे। इसीलिए, उन्होंने भाजपा से रिश्ता तोड़ लिया। भाजपा के राज्यसभा सदस्य विवेक ठाकुर ने नीतीश कुमार के राजग से निकलने को ‘छुटकारा मिलना’ करार दिया। उन्होंने कहा, ‘नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षा की कोई सीमा नहीं है। वह न तो बिहार और न ही अपनी पार्टी के लिए काम करते हैं, वह केवल अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए काम करते हैं। हालांकि, प्रधानमंत्री पद के लिए कोई रिक्ति नहीं है।’
झूठ बोले कौआ काटेः
नीतीश का भाजपा से अलग होना, विपक्ष को ‘ऑक्सीजन’ मिलने जैसा है। ऐसे में, कांग्रेस यदि अपनी दावेदारी छोड़ती है, तो नीतीश कुमार पीएम मोदी के खिलाफ विपक्ष के उम्मीदवार हो सकते हैं। हालांकि, अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस का मानना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी बनाम ममता की लड़ाई होगी। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, पवन के वर्मा के अनुसार, एक जीवंत लोकतंत्र में एक मजबूत विपक्ष का होना जरूरी है। विपक्ष का नेतृत्व कांग्रेस कर सकती थी। लेकिन हमारा आकलन है कि कांग्रेस अपने वर्तमान नेतृत्व के साथ उस चुनौती का सामना करने में असमर्थ है।
दूसरी ओर, आम चुनाव 2024 के लिए फिलहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पलड़ा भारी दिखाई पड़ता है। पांच राज्यों में चुनाव के बाद 2022 में ‘जन की बात’ के स्नैप पोल के अनुसार, उत्तर प्रदेश, बिहार, एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, असम, त्रिपुरा, हरियाणा और दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी की राष्ट्रीय स्वीकृति औसत 55% से अधिक है। यदि यह स्वीकृति जनाधार आने वाले महीनों में बरकरार रहता है, तो भाजपा उपरोक्त सभी राज्यों में अपने 2019 के प्रदर्शन को दोहरा सकती है या उसके करीब हो सकती है।
स्नैप पोल के अनुसार, वास्तव में, उत्तर प्रदेश में भाजपा 2019 की अपनी स्थिति को बेहतर बना सकती है। चुनाव 2022 के बाद, भाजपा पंजाब में कांग्रेस और अकाली की जगह ले रही है, और पंजाब 2019 की तुलना में भाजपा को अधिक सीटें दे सकता है। पश्चिम बंगाल का ग्रे क्षेत्र जहां पार्टी की स्थिति नाजुक है, सीटों की तुलना में 60% का नुकसान संभव है। इसकी भरपाई तेलंगाना, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश जैसे नए मोर्चों से की जा सकती है। ओडिशा में प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, दोनों परस्पर सम्मान का एक रिश्ता साझा करते हैं, जो भाजपा के अनुकूल प्रतीत होती है। हालांकि कर्नाटक में 2023 के विधानसभा चुनावों में कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है। पर, 2024 के लिए प्रधानमंत्री का स्वीकृति जनाधार 52% है, जो उन्हें राज्य की सबसे पसंदीदा पसंद के रूप में रखता है।
भारतीय मतदाता खंडित जनादेश या कमजोर जनादेश देने की आदत को तोड़ रहा है, एक अज्ञात, ठोस राजनीतिक विकल्प के लिए मतदाता अपना मन बदलेगा, इसकी संभावना कम है। मोदी आज अन्य राजनीतिक विरोधियों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर रहे हैं, मोदी मोदी के पिछले चुनावी कारनामों को मात देने के लिए स्वयं मोदी के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। जबकि, ममता बनर्जी को उम्मीद हैं कि “भाजपा को अकेली पार्टी का बहुमत नहीं मिलेगा और एक बार ऐसा नहीं होने पर अन्य (विपक्षी दल) एकजुट हो जाएंगे।” पिछले महीने ही कोलकाता में अपनी पार्टी के शहीद दिवस समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित एक विशाल सभा को संबोधित करते हुए, ममता बनर्जी यह बातें कही।
बिहार में जदयू-आरजेडी-कांग्रेस साथ भले आ गए। लेकिन मन में अतीत की कडुवाहटें हैं। एक-दूसरे पर अविश्वास की धुंध कैसे छंटेगी? महागठबंधन बन तो गया। लेकिन बुनियाद ‘अवसरवादिता’ की है। ये अभिशप्त रहेगा। भले ही, नीतीश कुमार को ‘सुशासन बाबू’ और ‘विकास पुरुष’ की उपाधि मिली हो, नीतीश अवसरवादी हैं, यह तमगा उन पर लग चुका है। फिर भी, कौन कितने पानी में 2024 में साफ हो जाएगा। पहले तय तो हो कि पीएम मोदी को चुनौती देगा कौन?