झूठ बोले कौआ काटे! यही तो था बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर का सपना

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झूठ बोले कौआ काटे! यही तो था बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर का सपना

राजस्थान के करौली ज़िले में मगरमच्छ के जबड़े से एक लाठी के बूते चंबल नदी में कूद कर अपने पति को हाल ही में जिंदा बचाने वाली विमल के साहस को सब सलाम कर रहे। टेसी थॉमस भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मिसाइल वुमन के नाम से मशहूर हैं। कैप्टन शिवा चौहान दुनिया की सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन में ऑपरेशनल रूप से तैनात होने वाली पहली महिला अधिकारी बन गईं। फिर, खेल हो या राजनीति या और कोई क्षेत्र बेटियां अलग-अलग रूपों में अपनी जिम्मेदारी निभा रही हैं… यही तो था बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर का सपना, जिनका जन्मदिन है आज!

भारत के संविधान निर्माता और प्रख्यात समाज सुधारक डॉ. अम्बेडकर का मानना था कि सही मायने में प्रजातंत्र तब आएगा जब महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा और उन्हें पुरुषों के समान अधिकार दिए जाएंगे। उनका दृढ़ विश्वास था कि महिलाओं की उन्नति तभी संभव होगी जब उन्हें घर-परिवार और समाज में बराबरी का दर्जा मिलेगा। शिक्षा और आर्थिक तरक्की उन्हें सामाजिक बराबरी दिलाने में मदद करेगी।

नारी शक्ति1

डॉ. अम्बेडकर का सपना सन् 2005 में तब साकार हुआ जब संयुक्त हिंदू परिवार में पुत्री को भी पुत्र के समान कानूनी रूप से बराबर का भागीदार माना गया। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि पुत्री विवाहित है या अविवाहित। हर लड़की को लड़के के ही समान सारे अधिकार प्राप्त हैं। संयुक्त परिवार की संपत्ति का विभाजन होने पर पुत्री को भी पुत्र के समान बराबर का हिस्सा मिलेगा चाहे वो कहीं भी हो। इस तरह महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में डॉ.अम्बेडकर ने बहुत सराहनीय काम किया। हिंदू विवाह कानून, हिंदू उत्तराधिकार कानून और हिंदू गुजारा एवं गोद लेने संबंधी कानून उन्हीं का सपना था। वयस्क मताधिकार भी डॉ. अम्बेडकर का ही विचार था जिसके लिए उन्होंने 1928 में साइमन कमिशन से लेकर बाद तक लड़ाई लड़ी।

डॉ. अम्बेडकर ने न्यूयार्क में पढ़ाई के दौरान अपने पिता के एक करीबी मित्र को लिख कर कहा था कि बहुत जल्द भारत प्रगति की दिशा स्वयं तय करेगा, लेकिन इस चुनौती को पूरा करने से पहले हमें भारत की स्त्रियों की शिक्षा की दिशा में सकारात्मक कदम उठाने होंगे। उन्होंने ‘मूकनायक’ व ‘बहिष्कृत भारत’ इत्यादि समाचार-पत्रों के माध्यम से महिलाओं को उनके अधिकारों की प्राप्ति के लिए प्रेरित किया।

उनका मानना था कि एक पिता का सबसे पहला काम अपने घर की स्त्रियों को शिक्षा से वंचित न रखने के संबंध में होना चाहिए। शादी के बाद महिलाएं गुलाम की तरह महसूस करती हैं, इसका सबसे बड़ा कारण निरक्षरता है। यदि स्त्रियां शिक्षित हो जाएं तो उन्हें ये कभी महसूस नहीं होगा।

झूठ बोले कौआ काटेः

किसी भी देश में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और जागरूकता उस देश के विकास का सूचक माना जाता है। इसी जागरूकता के चलते, उत्तराखंड में 20 साल की लंबी प्रतीक्षा, नेताओं, अफसरों से लगाई गई लगातार गुहार जब काम नहीं आई तो बागेश्वर के कांडा क्षेत्र के भंडारीगांव की महिलाओं ने खुद सड़क बनाने की ठान ली। महिलाओं ने सड़क बनाने के लिए फावड़े बेलचे उठा लिए, और जुट गई अपने पसीने से सड़क सींचने में। पुरुषों ने भी पूरा साथ दिया। ऐसे में विधायक जी को तो जागना ही था। उन्होंने अब सड़क बनवाने का भरोसा दिया है।

साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत की थी। इस पहल पर ही बड़ी संख्या में छोटे शहरों और गांवों की लड़कियां पढ़-लिखकर देश के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। वे विदेशों में पढ़कर नौकरी नहीं, अपने गांव का सुधार करना चाहती हैं। अब सिर्फ अध्यापिका, नर्स, बैंकों की नौकरी, डॉक्टर आदि बनना ही लड़कियों के क्षेत्र नहीं रहे, वे अन्य क्षेत्रों में भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रही हैं।

बेटी बचाओ

वे उन क्षेत्रों में जा रही हैं, जहां उनके जाने की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। वे टैक्सी, बस, ट्रक से लेकर जेट तक चला-उड़ा रही हैं। सेना में भर्ती होकर देश की रक्षा कर रही है। अपने दम पर व्यवसायी बन रही हैं। होटलों की मालिक हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की लाखों रुपये की नौकरी छोड़कर स्टार्टअप शुरू कर रही हैं। सिटी इंडेक्स की रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में अरबपती महिलाओं के मामले में भारत पांचवें स्थान पर है। पहले पर अमेरिका और दूसरे स्थान पर चीन बरकरार है।

मुंबई का माटुंगा स्टेशन भारत का ऐसा पहला स्टेशन है जहां सारी महिला कर्मचारी हैं, चाहे वाणिज्य विभाग हो, रेलवे पुलिस हो, टिकट चेकिंग हो, उद्घोषणा हो, प्वाइंट कर्मी हो, पूरा 40 से भी अधिक महिलाओं का स्टाफ है।

मोदी सरकार ने महिलाओं को सशक्त करने के लिए मातृत्व अवकाश को 12 हफ्तों से बढ़ाकर 26 हफ्ते किया, वर्क प्लेस पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाए। बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों पर फांसी जैसी सजा का प्रावधान किया। सैनिक स्कूलों में बेटियों के दाखिले की शुरुआत हुई। पीएम मोदी की पहल से पहली बार देश को महिला आदिवासी राष्ट्रपति मिली है।

बोले तो, वैदिक काल में महिलाओं को पुरुषों के बराबर के अधिकार प्राप्त थे, लेकिन उत्तर वैदिक काल में महिला की स्थिति में गिरावट आई और मध्यकाल में सती प्रथा, बाल विवाह, कन्या वध जैसी बुराइयां महिला समाज में पैदा हुई। महिलाओं की इस समस्या को देखते हुए इस उद्देश्य के लिए डॉ. अम्बेडकर बम्बई एसेंबली में प्रसूति अवकाश जैसे अनेक सुधार लेकर आए। उन्होंने भारतीय संविधान की रचना करते समय इस बात पर बल दिया कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार मिलें।

आज भी, यदाकदा-यहांवहां नारी अस्मिता और सम्मान को चुनौती देने वाली घटनाएं हमारे समाज में व्याप्त दूषित सोच एवं विकृत मानसिकता को भी उजागर करती रहती हैं। आखिर, ऐसे कौन से कारण है जिन से कोई किशोर या प्रौढ़ अपनी मानमर्यादा व आचारविचार छोड़ कर दुष्कर्म जैसा कुकृत्य कर बैठता है? दरअसल, औरत की अस्मिता छीन कर उसे निरीह बनाने की निकृष्ट सोच को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने के अतिरिक्त सोच बदलने की भी जरूरत है। जब महिलाओं के खिलाफ हिंसा समाज की देन है तो इसके लिए सबसे पहले समाज को सोचना एवं पहल करना होगा। कानून के बल पर स्थितियां नही बदल सकती हैं। समाज को ठीक करने में कानून मददगार हो सकता है लेकिन इस पर पूरी तरह रोक नही लगा सकता है।

डॉ. अम्बेडकर ने भी आधुनिक भारत की नींव रखते हुए भारतीय संविधान में महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के सिद्धांतों को शामिल किया था जो महिलाओं की गरिमा को बहाल करने की दिशा में अम्बेडकर के दर्शन को दिखाता है।

और ये भी गजबः

क्या आपको मालूम है कि सबरीमाला, ट्रिपल तलाक जैसी घटनाओं की वजह से ‘नारी शक्ति’ को सन् 2018 में ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी शामिल किया गया य़ा। यह पहचान दिलाने में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्यप्रदेश ने सबसे ज्यादा योगदान दिया।

आक्सफोर्ड

गूगल ट्रेंड्स के मुताबिक इन राज्यों में नारी शक्ति शब्द गूगल पर सबसे ज्यादा सर्च किया गया। लेकिन इन राज्यों में ही महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे।  ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस की डिजिटल मार्केटिंग हेड स्वाति नंदा के अनुसार, कई शब्द नारी शक्ति की तुलना में गूगल पर ज्यादा सर्च किए गए। लेकिन सबरीमाला, ट्रिपल तलाक जैसी घटनाओं की वजह से इस शब्द को मजबूती देने के लिए जूरी सदस्यों ने इसे 2018 का हिंदी शब्द चुना।

डिक्शनरी में शामिल होने के लिए 1050 शब्दों की एंट्री हुई थी, जिसमें से 50 शब्द छांटकर पैनल के सामने रखे गए। इसमें गठबंधन, आयुष्मान, गोत्र, प्रदूषण, पर्यावरण जैसे शब्दों ने नारी शक्ति को कड़ी टक्कर दी थी।