Jhooth Bole Kaua Kaate: जान दी, न पागल हुई, गुड़िया तुम श्रद्धा नहीं

झूठ बोले कौआ काटे: जान दी, न पागल हुई, गुड़िया तुम श्रद्धा नहीं

आज ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस’ है। तो, क्यों न तुम्हारी बात करूं गुड़िया। तुम श्रद्धा, शुभलक्ष्मी, मनमोहिनी, पल्लवी, राधा, सीता या कोई और भी हो सकती हो, पर तुम हो एक स्त्री के कदम-कदम पर उत्पीड़न की ही कहानी। तुम कहां, किस हाल में हो, नहीं मालूम, पर घर में रह कर तुम्हें आवाज उठाने पर श्रद्धा जैसे हश्र की आशंका थी। आत्महत्या को विवश होने या पागलपन की स्थिति तक पहुंचने के हालात थे। तुमने अपनों के द्वारा पैदा की गई चुनौती को अंततः स्वीकार कर लिया है, तो तुम्हें सैल्यूट तो बनता ही है।

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गुड़िया, तुम्हारी कहानी इन सबको सुनाऊं, उससे पहले बता दूं कि संयुक्त राष्ट्र (यू.एन. वूमेन) के आंकड़ों के अनुसार वैश्विक स्तर पर 2020 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के 74 करोड़ से भी अधिक मामले प्रकाश में आये, 81,000 महिलाओं और लड़कियों की हत्या की गई, उनमें से लगभग 47,000 (58 प्रतिशत) की मृत्यु एक अंतरंग साथी या परिवार के किसी सदस्य के हाथों हुई, जो हर 11 मिनट में एक महिला या लड़की को उनके घर में मारे जाने के बराबर है।

भारत के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीबी) के आंकड़ों के अनुसार 2021 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के देश में 4,28,278 अपराध दर्ज हुए। इनमें बलात्कार, बलात्कार और हत्या, दहेज उत्पीड़न, अपहरण, जबरन शादी, तस्करी और ऑनलाइन उत्पीड़न शामिल हैं।

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मालूम, 25 नवंबर, 1960, को डोमिनिक शासक रैफेल ट्रुजिलो के आदेश पर तीन बहनों पैट्रिया मर्सिडीज मिराबैल, मारिया अर्जेंटीना मिनेर्वा मिराबैल तथा एंटोनिया मारिया टेरेसा मिराबैल की हत्या कर दी गई थी। इन तीनों बहनों ने ट्रुजिलो की तानाशाही का कड़ा विरोध किया था। महिला अधिकारों के समर्थक व कार्यकर्ता वर्ष 1981 से इस दिन को इन तीनों बहनों की मृत्यु की वार्षिकी के रूप में मना रहे थे। फिर, 20 दिसंबर 1993 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में एकमत से यह निर्णय लिया गया कि 25 नवंबर को महिलाओं के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय हिंसा उन्मूलन दिवस के रूप में मनाया जाएगा।

महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा दुनिया भर में मानवाधिकारों का सबसे व्यापक उल्लंघन है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 2021 में हत्या के 454 मामले आए थे। आंकड़ों के अनुसार, दर्ज किए गए हत्या के ज्यादातर मामले विभिन्न विवादों का नतीजा थे, जिनमें संपत्ति और परिवार से जुड़े विवाद शामिल हैं। हत्या के 23 मामलों में प्रेम प्रसंग के कारण खूनखराबा हुआ और 12 हत्याएं अवैध संबंधों के कारण हुई हैं।

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देश में 2021 में 1 लाख 64 हजार 33 लोगों ने आत्महत्या की। इनमें सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में 22,207, तमिलनाडु में 18,925, मध्यप्रदेश में 14,965, पश्चिम बंगाल में 13,500 और कर्नाटक में 13,056 आत्महत्या की घटनाएं सामने आईं। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में पूरे देश के मुकाबले सबसे कम आत्महत्या की घटना दर्ज हुईं, उप्र में पूरे देश की तुलना में 3.6 फीसदी आत्महत्या की घटनाएं सामने आई, जबकि केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली की आत्महत्या दर चौंकाने वाली रही। यहां साल 2021 में 2,840 लोगों ने आत्महत्या की।

गुड़िया, अच्छा हुआ तुमने इच्छाशक्ति दिखाई। वर्ना, हम दोस्तों को डर लगता था कि तुम्हारे घरवाले मानसिक प्रताड़ना देकर, या तो तुम्हें विक्षिप्त करार करा देंगे, या आत्महत्या करने पर विवश कर देंगे, या फिर आवाज उठाने पर तुम्हारा हाल श्रद्धा जैसा कर देंगे, जैसी कि आशंका तुमने जताई थी। मैंने जब कहा कि इतना आसान नहीं, बच कर नहीं जा पाएंगे। तब तुमने यही कहा न कि मैं ही जब नहीं बचूंगी तो, आगे क्या होगा, किसने देखा। बात सही है। श्रद्धा के हत्यारे का क्या बिगड़ेगा, कितना बिगड़ेगा, ये तो सब वक्त की बात, श्रद्धा तो कभी नहीं लौटेगी।

तुम्हारा क्या दोष ? तुमने पिता को असमय खोया, मां को असमय  पक्षाघात का शिकार होकर बिस्तर पकड़े पाया। पिता ने जिस अरमान से तुम्हें 18 की उम्र में विवाह बंधन में बांधा, उस पर भी किसी की नजर लग गई। सुहागरात पर पति की ईमानदार स्वीकारोक्ति कि उसे किसी और से प्यार है, वो तुम्हें स्पर्श नहीं करेगा। उसने यह विवाह अपनी मां की इस धमकी पर किया कि ऐसा न करने पर वो जान दे देंगी।

तुम भी जमींदार परिवार की, वे भी पैसे वाले। तुम्हारी सगी चाची की पहल पर उनकी बहन के बेटे से रिश्ता तय करने के लिए तुम्हारे नेक पिता तुरंत तैयार हो गए थे। दोनों परिवारो की नाक का सवाल था, तो तुम संस्कारी नारी की तरह विवाहोपरांत पति की नौकरी पर विदेश भी चली गई। समाज के लिए तुम ब्याहता थी, पर तुम तो एकाकी थी… कितना बड़ा दंश। कितने सालों से झेल रही।

तुम्हारे पति ने भी स्वयं कोई जोर-जबरदस्ती नहीं की, यहां तक कि एक बार तुम्हारी सास ने तुम दोनों को तीन दिन तक एक साथ कमरे में बंद कर दिया, तब भी नहीं। तुम उन्हें देवतातुल्य भले ही मानती हो, लेकिन मेरा मानना है कि अच्छा होना एक बात है, पर ऐसा कायर भी क्यों होना कि एक भोली भाली, संस्कारी लड़की की सारी जिंदगी चौपट कर दी। गुड़िया, इसी दौरान, सुबह-शाम पूजा-पाठ में लीन रहने वाली तुम्हारी मां ने, पक्षाघात की शिकार होकर, बिस्तरा पकड़ लिया और विषम पारिवारिक परिस्थितियों में एक दिन तुमने पिता को खो दिया। बड़े भाई, भाभी के साथ अलग हो चुके थे। मां की देखभाल के लिए दिखावे के दांपत्य जीवन को छोड़ कर तुम्हारा भारत लौटना अपरिहार्य था।

फिर, शुरू हुई घर की तथाकथित इज्जत बचाने और संपत्ति हड़पने के लिए तुम्हारे सुनियोजित उत्पीड़न की कहानी। तुमने सहारा मिलने की आशा में नजदीकी रिश्तेदारों की ओर कदम बढ़ाया। तुम्हें चाची-चाचा का तत्काल साथ मिला। धीरे-धीरे तुम्हारे पिता द्वारा तुम्हारे नाम की गई अचल संपत्ति और वित्तीय अधिकार लगभग सारे तुमने चाची-चाचा को सौंप दिये। भले ही क्लब-पार्टी, शान-शौकत में पैसा उड़ाने वाला चाची जैसा मिजाज तुम्हारा नहीं था, फिर भी तुम्हारे एक-एक पैसे के लेन-देन पर चाची का नियंत्रण था। चाची को अपने मायके और ससुराल दोनों की इज्जत भी बचानी थी, तुमको पालतू जानवर जैसा बना कर और धन-संपत्ति पर भी नियंत्रण रखना था। मां की बीमारी और बाद में एक बेटी को गोद लेकर पाल लेने के कारण दवा-दारू और पढ़ाई-लिखाई के बोझ तले ही तुम नहीं दबी, चाची-चाचा के अहसान तले भी दब गई। डिप्रेशन और अलप्रेक्स से तुम्हारा जैसे अटूट रिश्ता बन गया था। जबकि, खर्च की व्यवस्था तो तुम्हारी ही संपत्ति से हो रही थी।

चाची ने तो तुम्हारे बच्ची गोद लेने से पहले तुमसे बच्चा प्राप्त करने के लिए तुम्हें ओझा-सोखा-तांत्रिक के हवाले करने की कोशिश भी की। मसाज थेरैपी के नाम पर तुम्हें एक आईवीएफ फर्टिलिटी सेंटर तक में मेंबर बनाया। लेकिन, ये तो मानना पड़ेगा कि ईश्वर ने हर बार कुछ न कुछ ऐसा किया कि तुम प्रत्येक षणयंत्र में बच गई। हालांकि, अपनों ने ही एक-एक कर तुम्हारी आंखों के सामने ही कितनी संपत्ति हड़प ली, तुम त्यागी बनी रही।

तुम कितनी भोली थी, इसी बात से पता चलता है कि तुम्हारे लिए अंडरगार्मेंट्स तक चाची ही लाती थीं, वो भी खूब टाइट। पारिवारिक समारोहों ही नहीं गैर-पारिवारिक समारोहों तक में न चाहते हुए भी तुम्हें भारी-भरकम कपड़ों में सज-धज कर जाना पड़ता था, क्योंकि चाची को क्रेडिट लेनी होती थी। लोग कहते कि कितना अच्छी तरह रखा है। जब भी तुमने किसी बात पर विरोध जताया, चाची कस कर कान घुमा देती थीं। कितने जख्म बरदाश्त किये तुमने। कितनी जलील हुई हो, ये सब तो मुझसे अधिक तो तुम्हारी खास सहेली को मालूम है। उस जैसे दोस्त मैंने तो नहीं देखे, जो आधी रात में भी तुम्हारे लिए संकट मोचक सिद्ध हुई। पति ने चाची के दबाव में मारा-पीटा और सार्वजनिक तौर पर जलील किया फिर भी तुम्हारे लिए हमेशा खड़ी रही। एक दूसरी सहेली ने भी अत्यंत व्यस्त जीवन होते हुए भी तुम्हारा साथ दिया।

लिखने को बहुत कुछ है, तुम्हारी जिंदगी तो एक निरंतर चलने वाला उपन्यास है। कभी तुम श्रद्धा, कभी निर्भया तो कभी गुड़िया के रूप में आ जाती हो। अब साहस दिखाया है, मां-बेटी को लेकर इस दुष्चक्र से निकलने का, तो हिम्मत मत हारना।

झूठ बोले कौआ काटेः

महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध हिंसा का स्वरूप विश्वव्यापी है। दुर्भाग्य से, इस तरह की हिंसा के अधिकांश पीड़ित विभिन्न सामाजिक-आर्थिक कारकों के कारण चुप रहते हैं। अधिकांश घटनाएं प्रतिष्ठा, मौन, चुप्पी, कलंक और शर्म के कारण रिपोर्ट ही नहीं होती हैं। महिलाओं को जिस हिंसा का सामना करना पड़ता है, उसका उनके जीवन पर स्थायी प्रभाव पड़ता है, जिसका वे विभिन्न चरणों में सामना करती हैं। यह महिलाओं के सशक्तिकरण में एक बड़ी बाधा बनती है, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा और नौकरियों तक उनकी पहुंच को प्रतिबंधित करने जैसे परिणाम सामने आते हैं।

घरेलू हिंसा कानून

घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के अनुसार शारीरिक दुर्व्यवहार, जिसमें शारीरिक पीड़ा, स्वास्थ्य को खतरा, लैंगिक दुर्व्यवहार अर्थात महिला की गरिमा का उल्लंघन अपमान, अतिक्रमण करना या मौखिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार करना, गाली देना, आर्थिक या वित्तीय संसाधनों से वंचित रखना जिसकी वह हकदार है, यह सभी घरेलू हिंसा की श्रेणी में आते हैं ।

घरेलू हिंसा किया जा चुका हो या किया जाने वाला हो, या फिर किया जा रहा हो तत्काल इसकी सूचना कोई भी व्यक्ति अपने नजदीकी संरक्षण अधिकारी को दे सकता है। जिसके लिए सूचना देने वाले पर किसी प्रकार की कोई जिम्मेदारी नहीं तय की जाएगी । साथ ही इस प्रकार के प्रकरणों पर तत्काल कार्रवाई की जाएगी।

और ये भी गजबः

जब मैंने उस भयानक ट्रेन हादसे का सामना किया तो एक पल के लिए लगा की सब कुछ खो चुकी हूं। ट्रेन से मेरे पैर कट गये थे और जब आंखें खुली, तो गांववालों की भीड़ मदद के लिए खड़ी थी। उस हादसे से उबरते हुए अस्पताल से डिस्चार्ज होकर मैं सीधा जमशेदपुर आयी, क्योंकि अब मेरे लिए एवरेस्ट पर चढ़ाई एक चुनौती थी। इस मंजिल को मैंने तय किया और जब सफलता हासिल कर लौट रही थी, तो मेरे कटे पैर से खून का रिसाव हो रहा था और असहनीय दर्द हो रहा था। किसी तरह मैंने स्थिति को संभाला और काफी देर बाद उसका उपचार किया।

अरूणिमा सिन्हा

 

लेकिन कहते हैं कि न कि मंजिल यूं ही नहीं मिलती, उसके लिए खून का कतरा-कतरा जलाना पड़ता है। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। एक दर्द से छुटकारा मिला तो दूसरा दर्द सामने आ गया। ऑक्सीजन सिलिंडर में गैस खत्म हो गई। किसी और की मदद से मैं नीचे आयी। आज जब उन दृश्यों को याद करती हूं तो लगता है कि काली अंधेरी रात के बाद ही सवेरा आता है पर वह सबेरा वही देख पाता है जिसमें सहने, लड़ने की क्षमता होती है। इसलिए तब तक कोशिश करते रहना है जब तक सफलता आकर आपके कदमों को न चूमें। कहना है पर्वतारोही (एवरेस्ट विजेता) अरुणिमा, का। जय हो !