झूठ बोले कौआ काटे: और बढ़ाओ जनसंख्या, झेलो अतिवृष्टि-सूखा

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* मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल समेत कई जिले पानी-पानी हो गए, सड़कें पानी में समा गईं। अनेक बांधों के गेट खोलने पड़े। और तो और, बड़ी झील का विकराल स्वरूप देख लोग थर्रा उठे। खराब मौसम के चलते फ्लाइट कैंसिल और डायवर्ट करनी पड़ीं। झमाझम बारिश के बीच प्रदेश में सात जिले ऐसे भी रहे जहां पर सूखा था।

* उत्तर प्रदेश के दो दर्जन से अधिक जिलों में सूखे की स्थिति है। 68 जिलों सें सामान्य से कम बारिश के चलते खरीफ की फसल का बुरा हाल है।

* उत्तराखंड में बारिश आफत बनकर बरसी, भूस्खलन के चलते 257 रास्ते बंद करने पड़े। 117 गांवों की बिजली और 25 पेयजल योजनाएं ठप हो गईं। कमो-बेस राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और बिहार से भी ऐसे ही सूचनाएं आईं।

* पूर्वोत्तर भारत में बारिश में कमी आ रही है। एनवायरनमेंटल रिसर्च लेटर्स नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के परिणाम चौकाने वाले हैं, क्योंकि भारत का पूर्वोत्तर अतिवृष्टि वाले क्षेत्र में शामिल है। पर, वर्ष 1973 के बाद के आंकड़ों से स्पष्ट हुआ है कि बारिश में लगातार कमी आई है। इस अध्ययन में जंगल काटकर खेत बनाना और समुद्र का तापमान बढ़ना वर्षा में कमी होने की बड़ी वजह मानी जा रही है। अध्ययन के मुताबिक पूर्वोत्तर भारत में स्थित हर वर्षा मापने वाला केंद्र साल-दर-साल बारिश में कमी की तरफ ही इशारा कर रहा है।

* भारत सरकार के आंकड़ों पर आधारित विश्व बैंक के एक अध्ययन में अंदेशा जताया गया है कि 2040 तक देश के ढाई करोड़ लोग भीषण बाढ़ की चपेट में होंगे। अर्थात, बाढ़ प्रभावित आबादी में छह गुना उछाल!

* दूसरी ओर, भारत वर्ष 2030 में एक रिकॉर्ड बनाने की ओर अग्रसर है। हम एक अरब, 52 करोड़, 80 लाख की जनसंख्या के साथ चीन को पछाड़कर पहले नंबर पर आ जाएंगे।

झूठ बोले कौआ काटेः

बोले तो, जनसंख्या और पर्यवरणीय असंतुलन का सीधा संबंध है। वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों की वृद्धि का कारण बढ़ती हुई जनसंख्या की निरंतर बढ़ रही आवश्यकताओं से जुड़ा हुआ है। जब एक देश की जनसंख्या बढ़ती है तो वहां की आवश्यकताओं के अनुरूप उद्योगों की संख्या बढ़ जाती है। आवास समस्या के निराकरण के रूप में शहरों का विस्तार बढ़ जाता है। फिर, शहरी विस्तार के सबसे बड़े शिकार होते हैं वन और हरियाली।

झूठ बोले कौआ काटे: और बढ़ाओ जनसंख्या, झेलो अतिवृष्टि-सूखा

अकेले भारत में ही प्रतिवर्ष 16 लाख हेक्टेयर वन उजड़ रहे हैं। यद्यपि सरकारी नीति के अनुसार देश में कुल भूभाग का 33 प्रतिशत भाग वन होना आवश्यक है लेकिन फिर भी कुल 21 प्रतिशत भाग ही वनों से आच्छादित है। राजस्थान में तो केवल 9 प्रतिशत भू-भाग पर ही वन बचे रह गये हैं। पेड़-पौधे कुछ औद्योगिक अवशेष जैसे सीसा, पारा, निकिल इत्यादि कणों को छानने का कार्य भी करते हैं इसके अतिरिक्त वनों द्वारा ही हमारी पृथ्वी पर जलीय संतुलन बना रह पाया है। वनों के कटने से जहां एक ओर वृक्षों द्वारा प्रकाश संश्लेषण के लिये कार्बन डाईऑक्साइड का उपयोग कम हो जाता है
वहीं दूसरी ओर जब वन कटते हैं तो पृथ्वी के भीतर कुछ कार्बन ऑक्सीकृत होकर वायु मण्डल में प्रवेश कर जाता है, जिससे वायुमण्डल में कार्बनडाईऑक्साइड की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है और वातावरण का ताप बढ़ जाता है।

आज सबसे बड़ा संकट ग्रीन हाउस प्रभाव से उत्पन्न हुआ है, जिसके प्रभाव से वातावरण के प्रदूषण के साथ पृथ्वी का ताप बढ़ने और समुद्र जल स्तर के ऊपर उठने की भयावह स्थिति उत्पन्न हो रही है। ग्रीन हाउस प्रभाव वायुमण्डल में कार्बन डाईऑक्साइड, मीथेन, क्लोरोफ्लोरो कार्बन (सी.एफ.सी.) आदि गैसों की मात्रा बढ़ जाने से उत्पन्न होता है। ये गैस पृथ्वी द्वारा अवशोषित सूर्य ऊष्मा के पुनः विकरण के समय ऊष्मा का बहुत बड़ा भाग स्वयं शोषित करके पुनः भूसतह को वापस कर देती है जिससे पृथ्वी के निचले वायुमण्डल में अतिरिक्त ऊष्मा के जमाव के कारण पृथ्वी का तापक्रम बढ़
जाता है। तापक्रम के लगातार बढ़ते जाने के कारण आर्कटिक समुद्र और अंटार्कटिका महाद्वीप के विशाल हिमखण्डों के पिघलने के कारण समुद्र के जलस्तर में वृद्धि हो रही है जिससे समुद्र तटों से घिरे कई राष्ट्रों के अस्तित्व को संकट उत्पन्न हो गया है। हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार आज से पचास वर्ष के बाद मालद्वीप देश समुद्र में डूब जाएगा। भारत के समुद्रतटीय क्षेत्रों के सम्बंध में भी ऐसी ही आशंका व्यक्त की जा रही है।

दूसरी ओर, सूखा भले ही एक मौसम संबंधी घटना है पर, सूखे की समस्या के पीछे भी अनेक मानवजनित कारण हैं। अतिवृष्टि, वनों की कटाई, खनन आदि के कारण अधिक क्षेत्रों को सूखा प्रभावित क्षेत्रों में परिवर्तित करने के लिए मरुस्थल फैल रहा है। जब वार्षिक वर्षा सामान्य से कम और वाष्पीकरण से कम होती है, तो सूखे की स्थिति पैदा हो जाती है। विडंबना यह है कि इन सूखा प्रभावित क्षेत्रों में अक्सर उच्च जनसंख्या वृद्धि होती है जिससे भूमि का खराब उपयोग होता है और स्थिति और खराब हो जाती है।

ग्रीन हाउस प्रभाव

ग्रीन हाउस प्रभाव के अतिरिक्त औद्योगीकरण का एक और हानिकारक परिणाम सामने आया है, वह है अम्ल वर्षा। कुछ उद्योगों के कारण वातावरण में सल्फर डाईऑक्साइड गैसें पहुंचती हैं जो वायुमण्डलीय गैसों से संयोग करके अम्ल में परिवर्तित हो जाती हैं और फिर वर्षा के साथ पृथ्वी पर पहुंचकर कई जैविकीय व्याधियों को जन्म देती हैं।

यही नहीं, जनसंख्या बढ़ने से खेती के लिए जमीन बेहद कम होती जा रही, और खाने पीने की चीजों, रहने की जगह की कमी। 20 से 50 मंजिल तक के फ्लैट, ज्यादा संसाधनों का दोहन, रोजगार का अभाव, अपराध में बढ़ोत्तरी, बिजली की किल्लत आदि-इत्यादि। दूर-दूर बस रहे शहरों के बीच सामंजस्य स्थापित करने के बहाने वाहनों का प्रयोग बहुत अधिक बढ़ जाता है जिससे वायु प्रदूषण की समस्या भी उतनी ही अधिक बढ़ जाती है।

झूठ बोले कौआ काटे: और बढ़ाओ जनसंख्या, झेलो अतिवृष्टि-सूखा

हिमालयी क्षेत्र में जंगल धधकने के कारण मौसम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की बात सामने आई है। एचएनबी केंद्रीय विवि और आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों ने हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों का अध्ययन कर जंगलों में लगने वाली आग की घटना से अतिवृष्टि होने का चौंकाने वाला खुलासा किया है। विशेषज्ञों ने जंगलों में आग भड़कने के दौरान क्लाउड कंडेनसेशन न्यूक्लियर (सीसीएनएस) कणों की मात्रा में बदलाव दर्ज किया है। शोध में पाया गया कि आग लगने पर वातावरण में सीसीएन के ज्यादा कण भारी बारिश का कारण बन रहे हैं।

झूठ बोले कौआ काटे, अतिवृष्टि-सूखा आदि-इत्यादि से बचना है तो जनसंख्या में नंबर वन बनने से बचना ही होगा।

और ये भी गजबः

कुछ देशों ने जनसंख्या को समस्या के रूप में नहीं बल्कि संसाधन के रूप में अपनाया है। जैसे जापान, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया इत्यादि। इन देशो का जनसंख्या घनत्व भारत के जनसंख्या घनत्व से अधिक है।

20 01 2019 jhunjhun 18872979

आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्णीकार डॉ०भरत झुनझुनवाला के अनुसार यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेरीलैंड के प्रोफेसर जूलियन साइमन का कहना है कि हांगकांग, सिंगापुर, हॉलैंड और जापान जैसे जनसंख्या सघन देशों की आर्थिक विकास दर अधिक है, जबकि विरल आबादी वाले अफ्रीका में आर्थिक विकास दर धीमी है। सिंगापुर के प्रधानमंत्री के अनुसार जनता को अधिक संख्या में संतान उत्पन्न करने को प्रेरित करना देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। उनकी सरकार ने फर्टिलिटी ट्रीटमेंट, हाऊसिंग अलाउंस तथा पैटर्निटी लीव में सुविधाएं बढ़ाई है। दक्षिण कोरिया ने दूसरे देशों से इमिग्रेशन को प्रोत्साहन दिया है। इमिग्रेटर्स की संख्या वर्तमान में आबादी का 2.8 प्रतिशत से बढ़कर 2030 तक 6 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है। इंग्लैण्ड के संसद के विड रुड ने कहा है की द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यदि इमिग्रेशन को प्रोत्साहित किया जाता तो इंग्लैण्ड की विकास दर न्यून नहीं रहती।

स्पष्ट है कि जनसंख्या वृद्धि का आर्थिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बात सीधी सी है कि उत्पादन मनुष्य द्वारा किया जाता है, जितने लोग होंगे उतना उत्पादन हो सकेगा और आर्थिक विकास दर बढ़ेगी। लेकिन ध्यान रहे कि उत्पादकता तभी बढ़ेगी जब एक ओर विकास का पहिया घूमता रहे तो दूसरी ओर निकम्मापन और भ्रष्टाचार पर लगाम भी मजबूती से लगे। जनसंख्या को संसाधन में बदलने के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं में अधिक मात्रा में निवेश अपरिहार्य है।